अपनी आत्मा की बुद्धिमत्ता के साथ जुड़िए

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

आत्मा के अनेक बहुमूल्य गुणों में से एक है बुद्धिमत्ता। अपनी आत्मा और उसके गुणों के साथ जुड़ने से हमारा जीवन समृद्ध और परिवर्तित हो जाता है। हम अपनी आत्मा की शक्ति के साथ कैसे जुड़ सकते हैं, ताकि इसकी बुद्धिमत्ता से लाभ उठा सकें? ध्यानाभ्यास के द्वारा हम इस अंदरूनी बुद्धिमत्ता के साथ जब चाहे, किसी भी समय, जुड़ सकते हैं।

आपके अंदर असीम बुद्धिमत्ता है

असीम बुद्धिमत्ता या विवेक क्या है? ये वो बौद्धिक ज्ञान नहीं है जो हम व्याख्यानों या किताबों से ग्रहण करते हैं; यह चेतनता है। कहा जाता है कि प्रभु “चेतनता” हैं। हमारी आत्मा भी, प्रभु का अंश होने के नाते, चेतनता है। यह वो “अवस्था है जिसमें जो कुछ भी अस्तित्व में है, सब ज्ञात हो जाता है”।

जब हम इस दिव्य बुद्धिमत्ता के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम पूर्ण चेतनता की अवस्था में पहुँच जाते हैं, जिसमें हमें जीवन के सभी रहस्यों के हल मिल जाते हैं और हम जीवन में अपने उद्देश्य के बारे में जान जाते हैं। हम जीवन को अर्थहीन घटनाओं की लड़ी से अधिक कुछ समझने लगते हैं, और जो कुछ भी होता है, उसमें एक सबक और संदेश देखने लगते हैं।

जो लोग अपनी आत्मा के साथ जुड़ जाते हैं, वो जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देखने लगते हैं। जीवन के समुद्र पर इधर से उधर डोलने के बजाय, जिसमें आने वाली हर लहर हमें यहाँ से वहाँ पटकती रहती है, हम अपने जीवन को एक ऐसी फ़िल्म के रूप में देखने लगते हैं जिसके नीचे चल रहे सबटाइटल्स (उपशीर्षक) हमें घटनाओं के आध्यात्मिक अर्थ के बारे में बताते रहते हैं। हो सकता है कि लहरें अभी भी हमें पटकती रहें, लेकिन हमें अंदर से पता होता है कि उस स्थिति के पीछे असली कारण और उद्देश्य क्या है।

हम सभी अपने जीवन में होने वाली घटनाओं को अपनी अमर आत्मा की नज़र से देख सकते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तो हमें विभिन्न घटनाएँ एक शांत आकाश में से गुज़रते हुए क्षणिक बादलों की तरह ही लगने लगती हैं। हम शांतिपूर्वक जीवन की अस्थाई परिस्थितियों के गुज़र जाने की प्रतीक्षा करते हैं, यह जानते हुए कि यह वाला दृश्य अगले दिन किसी और दृश्य में बदल जाएगा, और वो दृश्य शांति, ख़ुशी, व प्रेम से भरपूर होगा।

ध्यानाभ्यास ही वो चाबी है जिससे हम अपनी आत्मा की बुद्धिमत्ता को खोल सकते हैं

हम अपनी आंतरिक बुद्धिमत्ता से अनजान रहते हैं, क्योंकि कई रुकावटें हैं जो हमें इससे जुड़ने से रोकती हैं। हम इन रुकावटों को कैसे हटा सकते हैं? जिसकी हमें तलाश है, उसे पाने के लिए हमें कौन सी प्रक्रिया का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है?

अपनी आत्मा की बुद्धिमत्ता से जुड़ने की कुछ सरल विधियाँ हैं। इनका इस्तेमाल करने के लिए हमें दुनिया के चारों कोनों में जाने की ज़रूरत नहीं है। हमें बाहरी अंतरिक्ष में यात्रा करने की ज़रूरत नहीं है। इन विधियों को हम अपने घर के आरामदायक वातावरण में बैठे-बैठे ही इस्तेमाल कर सकते हैं। हमें केवल ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने अंतर में ध्यान टिकाना है।

आंतरिक बुद्धिमत्ता

हमारे अंदर उससे कहीं अधिक बुद्धिमत्ता जितनी हम बाहरी दुनिया में प्राप्त कर सकते हैं। हमारे अंदर ज्ञान का एक ऐसा स्रोत है जिससे बाकी समस्त ज्ञान उत्पन्न होता है। यह बुद्धिमत्ता हमारे अंदर ही मौजूद है और ध्यानाभ्यास के द्वारा पाई जा सकती है।

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संत राजिंदर सिंह जी महाराज शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए ध्यानाभ्यास पर बेस्टसेलर पुस्तकों के लेखक हैं। वह साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक प्रमुख हैं और दुनिया भर में यात्रा करते हुए लोगों को आंतरिक प्रकाश और ध्वनि पर ध्यानाभ्यास सिखाते हैं।

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बास्केटबॉल कौशल को ध्यानाभ्यास में इस्तेमाल करना

ध्यानाभ्यास के लिए एकाग्रता की ज़रूरत होती है। इसका अर्थ है अपने शरीर को बिल्कुल स्थिर करके बैठना, जिस तरह खिलाड़ी अपने शरीर को उस स्थिति में रखते हैं जिसमें वो बॉल को पकड़ सकें। हमें भी आंतरिक बॉल के साथ जुड़ना है, इसीलिए हमारे शरीर का स्थिर होना ज़रूरी है।

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हमेशा अपनी ओर से बेहतर से बेहतर करिए

जीवन में ऐसा समय भी आता है जब अपनी ओर से बेहतरीन प्रयास करने पर भी हम परिणाम से संतुष्ट नहीं होते, या जब हमारे प्रयास उन लोगों के द्वारा ही सराहे नहीं जाते जिनकी हम सहायता करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जब ऐसा होता है, तो हम अपने प्रयासों में सतर्क हो जाते हैं, और परिस्थितियों या लोगों के अनुसार अपने प्रयासों में बढ़ोतरी या कमी लाते रहते हैं।

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लगावों को त्यागना

एक रोचक कहानी की मदद से हम जान पाते हैं कि कैसे हम अपनी इच्छाओं और दैनिक गतिविधियों के गुलाम बन जाते हैं, और इस प्रक्रिया में अपने जीवन के सच्चे उद्देश्य को पाने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते।

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सभी चीज़ों में कुछ न कुछ अच्छा ढूंढ लीजिए

हम अक्सर एक आधे-भरे गिलास को आधा-भरा हुआ नहीं, बल्कि आधा-खाली की नज़र से देखते हैं। किसी भी स्थिति को देखते समय, ज़्यादातर लोग उसके अच्छे पहलू के बजाय उसके बुरे पहलू की ओर ही देखते हैं। लेकिन, यदि हम इस बारे में ध्यान से सोचें, तो देखेंगे कि हमारे जीवन में बहुत सारी अच्छी चीज़ें भी हो रही हैं, और हमारे पास ऐसी कई देनें हैं जिनके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए।

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आत्मा बिना शर्त सबसे प्रेम करती है

यदि हम अपनी आत्मा के संपर्क में आएँगे और दुनिया को उसकी नज़रों से देखेंगे, तो हम न केवल बिना शर्त प्रेम करने लगेंगे, बल्कि अपने लिए प्रभु के बिना शर्त प्रेम को भी महसूस कर पाएँगे।

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