लगावों को त्यागना

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

बाहरी संसार में लिप्त हो जाना स्वाभाविक ही है। इस लेख में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज समझा रहे हैं कि अगर हम अपना पूरा ध्यान इसी दिशा में लगा देंगे, तो हम उस सारी सुंदरता से वंचित रह जायेंगे जो प्रभु की ओर से हमारे लिए उपलब्ध है।

 

चोर की गलती

 

एक समय की बात है, एक आदमी था जो अकेला रहता था। वो अपना पैसा एक ख़ास मर्तबान में रखता था ताकि कोई उसे चुरा न पाए। एक दिन, जब वो आदमी अपने खेत में काम कर रहा था, तो एक चोर उसके घर में घुस गया। चोरी करने के लिए चीज़ें ढूंढते हुए, उसे पत्थर का एक भारी मर्तबान दिखाई दिया। बहुत ज़ोर लगाने पर भी वो उसे हल्का सा ही हिला पाया, लेकिन उसे अंदर सिक्कों की खनखनाहट सुनाई दे गई। अपना पूरा ज़ोर लगा देने पर भी वो मर्तबान को उठा नहीं पाया। तब उसने पैसे उठाने के लिए अपना हाथ मर्तबान के अंदर डाल दिया। उसका हाथ पूरी तरह से मर्तबान के अंदर चला गया। उसने खूब सारे सिक्के उठा लिए और उन्हें मुट्ठी में भर लिया।

 

लेकिन जब उसने हाथ बाहर निकालने की कोशिश की, तो वो बाहर नहीं आया। उसने बहुत कोशिश की, पर मुट्ठी बनी होने की वजह से उसका हाथ चौड़ा हो गया था। सिक्कों को पकड़े-पकड़े वो अपना हाथ मर्तबान से बाहर नहीं निकाल पा रहा था। उसने हाथ खोलकर सिक्कों को छोड़ दिया, और तब उसका हाथ मर्तबान से बाहर आ गया। लेकिन वो सिक्के लिए बिना जाना नहीं चाहता था, इसलिए वो बार-बार कोशिश करता रहा। हर बार जब वो अपनी मुट्ठी में सिक्के पकड़ता था, तो उसका चौड़ा हो जाता था और मर्तबान से बाहर नहीं आ पाता था।

 

अचानक उसे घर के मालिक के वापस आने की आहट सुनाई दी। उसे पता था कि अगर उसने अपना हाथ मर्तबान से बाहर नहीं निकाला, तो वो पकड़ा जाएगा। लेकिन उसके मन में पैसे का लालच इतना ज़्यादा था कि वो मुट्ठी में बंद पैसे बाहर निकालने की कोशिश में ही लगा रहा। घर का मालिक अंदर आया, उसने चोर को पकड़ लिया, और उसे गिरफ़्तार करवा दिया।

 

अपनी इच्छाओं का गुलाम होना

 

हम भी इस कहानी के चोर की तरह ही हैं। अपनी इच्छाओं के कारण हमारा हाथ हमेशा मर्तबान में ही फँसा रहता है। हमारी इच्छाएँ हमें इस संसार के साथ बाँधे रखती हैं। अगर हम इस दुनिया की चीज़ों के साथ जुड़े रहते हैं, उनसे लगाव रखते हैं, तो हम इस दुनिया के साथ बँधे रहते हैं। उदाहरण के लिए, अगर हमें एक बड़ा घर चाहिए, तो उसकी किश्तें चुकाने के लिए हमें ज़्यादा पैसा कमाना पड़ता है, और उसके लिए ज़्यादा घंटों तक काम करना पड़ता है।

 

स्थाई ख़ुशी को बाहरी संसार में पाया नहीं जा सकता। वो तो हमारे भीतर है।

 

– संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

 

घर ले लेने के बाद हमें उसमें सामान भरना होता है। उस सामान को ख़रीदने के लिए और बाद में उसकी देखरेख के लिए, हमें और ज़्यादा पैसा कमाना पड़ता है, जिसके लिए हमें और ज़्यादा काम करना पड़ता है। ऐसे में हमारे पास अपने परिवार के लिए, अपने बच्चों के लिए, और अपनी पसंद के उन कामों के लिए वक़्त ही नहीं बचता है जिनसे हमें ख़ुशी मिलती है। इससे पहले कि हम कुछ समझ पायें, वही घर जो हमें ख़ुशियाँ देने वाला था, हमें गुलाम बना चुका होता है।

 

ध्यानाभ्यास के द्वारा सीखना कि लगावों को कैसे त्यागें

 

हम इस बंधन को कैसे तोड़ सकते हैं? इसके लिए हमें मुट्ठी खोल देनी होगी और लगावों से, लालचों से, इच्छाओं से, मुक्त होना होगा। इस दुनिया की चीज़ों से लगाव ख़त्म करके ही हम मुक्ति की ख़ुशी का अनुभव कर सकते हैं। तब हमारी आत्मा उस प्रेम और सुंदरता का अनुभव कर पाती है जो प्रभु की ओर से हमारे लिए उपलब्ध है। सच्ची ख़ुशी हमें तभी मिलती है जब हम अपने अंतर में समस्त ख़ुशियों के स्रोत – अपनी आत्मा और परमात्मा – के साथ जुड़ जाते हैं। ऐसा करने के लिए, हमें अपने ध्यान को बाहरी दुनिया के आकर्षणों से हटाकर, अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनना होगा।

 

हमारे भीतर हर समय प्रभु का मधुर संगीत गूँज रहा है। हमारे भीतर हर समय प्रेम और प्रकाश जगमगा रहे हैं। भौतिक संसार से ध्यान हटाने पर, हम उन सिक्कों को छोड़ देते हैं जो हमारे हाथ को मर्तबान में फँसाए हुए हैं। लगावों को त्याग देने से हम सदा-सदा की मुक्ति को पा लेते हैं।

 

ध्यानाभ्यास में बैठने से, तमाम सांसारिक इच्छाओं और आकर्षणों से मुक्त होकर, हम अंततः सभी लगावों को त्याग देते हैं, और हमारी आत्मा समस्त बंधनों से मुक्त होकर प्रभु के पास वापस पहुँच जाती है।

 

 

लेखक के बारे में

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म व ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक व बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सम्मानित किया गया है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक अध्यक्ष होने के नाते, वे संसार भर में यात्राएँ कर लोगों को आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की प्रक्रिया सिखाते हैं, जिससे शांति, ख़ुशी, और आनंद की प्राप्ति होती है।

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें।

 

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