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मानवता के द्वारा जवाबों की खोज

वैज्ञानिक तलाश

अपने स्रोत की हमारी तलाश को, इस भौतिक सृष्टि के हमारे अनुसंधानों और अन्वेषणों में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, बटाविया, इलिनोई, की एक बड़ी प्रयोगशाला में वैज्ञानिक पृथ्वी की गहराई में बनाए गए एक विशालकाय गोलाकार चैम्बर में परमाणुओं को बेहद तीव्र गति से छोड़कर एक-दूसरे के साथ टकराकर तोड़ा जाता है। इस क्रिया के द्वारा वैज्ञानिक “गॉड पार्टिकल” (प्रभु कण) को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं – ये नाम उन्होंने उस कण को दिया है जो उन्हें सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़े सवालों के जवाबों तक ले जाएगा।

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इस मार्ग पर चलते हुए, वैज्ञानिकों ने अन्य कई सब-अटॉमिक या उप-परमाण्विक कणों की खोज कर ली है, जैसे कि बोसॉन्स, क्वर्क्स, मेसॉन्स आदि। हालाँकि इससे उन्हें भौतिक पदार्थ और ऊर्जा के बारे में बहुत कुछ पता चला है, लेकिन फिर भी उन्हें अभी तक वो जवाब नहीं मिला है जिसे वो ढूंढ रहे हैं।

कुछ अन्य वैज्ञानिक अंतरिक्ष में अधिकतम दूरियों पर स्थित क्वाज़ार्स की दूरियाँ नापते हैं, ताकि यह जान सकें कि वो “बिग बैंग” कितने वर्ष पूर्व हुआ था, जिस सिद्धांत के अनुसार माना जाता है कि हमारी सृष्टि की उत्पत्ति धूल-कणों के प्रज्ज्वलन से हुई थी। वो समझते हैं कि उन्हें पता है कि बिग बैंग के बाद के पहले मिली-सैकेंड्स में क्या हुआ था, लेकिन वो जानना चाहते हैं कि ऐन बिग बैंग से पहले क्या हुआ था। वो पहले कण कहाँ से आए थे? विज्ञान अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं दे पाया है, लेकिन सबसे पहले इस रहस्य को सुलझाने की दौड़ अभी भी ज़ारी है।

आनुवांशिक कोड को सुलझाना

संसार भर की चिकित्सा अनुसंधान प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक इंसानी डी.एन.ए. के जेनैटिक या आनुवांशिक कोड को सुलझाने के प्रयास किए जा रहे हैं। कम्प्यूटर्स की मदद से, हमारी आनुवांशिकी के सभी भागों का विश्लेषण किया जा रहा है जोकि हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं, हमारे शरीर से लेकर हमारे मस्तिष्क तक, और विभिन्न रोगों के लिए हमारी प्रतिक्रियाओं तक। क्या इंसान होने के नाते हमारे आनुवांशिक कोड में ही वो रहस्य छुपा है जो हमें बताएगा कि हम वास्तव में कौन हैं?

क्या जीवन और सृष्टि को लेकर अपने सवालों की तलाश में हम अकेले हैं? वैज्ञानिक इस बात पर भी विचार कर रहे हैं कि क्या इस पूरी सृष्टि में केवल हम ही जीवित प्राणी हैं? कुछ वैज्ञानिक गहन अंतरिक्ष में दूर-दूर तक ज्योतिपुंज छोड़ते रहते हैं, इस उम्मीद में कि शायद एक दिन किसी दूर की आकाशगंगा से कोई जवाब वापस आएगा। अंतरिक्ष कितना बड़ा है? क्या वो सच में अंतहीन है, या कहीं जाकर इसके कोने आपस में मिल जाते हैं और यह अंतरिक्ष असल में एक विशालकाय गोला है? यदि यह एक गोला है, तो इस गोले के बाहर क्या है? ये सवाल इंसानों को अंतरिक्ष में ख़तरनाक और ख़र्चीली यात्राओं पर जाने के लिए उकसाते हैं, इस उम्मीद में कि एक दिन हम इतनी दूर तक यात्रा कर पायेंगे कि अपनी सृष्टि के असली स्वरूप का पता लगा सकें।

कृत्रिम बुद्धि

कम्प्यूटर प्रयोगशालाओं में, इंजीनियर कृत्रिम बुद्धि या आर्टिफ़िशियल इन्टैलीजेंस के साथ प्रयोग कर रहे हैं। क्या वो एक ऐसा कम्प्यूटर बना पायेंगे जो इंसान की तरह सोचता हो? क्या इंसान केवल जटिल कम्प्यूटर प्रोग्राम की तरह हैं जिनके द्वारा किए जाने वाले सभी कार्य रोबोट भी कर सकते हैं, या वे बेजोड़ प्राणी हैं, जिनके अंदर एक अमर आत्मा है, जिसकी नकल इंसानों द्वारा बनाई नहीं जा सकती है?

कुछ वैज्ञानिक, भौतिकशास्त्र के गणितीय नियमों का इस्तेमाल करके कागज़ पर आत्मा और परमात्मा के अस्तित्व को प्रमाणित करना चाहते हैं। इस सृष्टि के आँकड़ों के बारे में उनकी व्याख्या के अनुसार, एक परम सत्ता ने इस सृष्टि का निर्माण किया है और वही इसे चला रही है, और वही सत्ता सुदूर भविष्य में इस सृष्टि को वापस अपने आप में समेट लेगी।

विश्व के विभिन्न कोनों में भू-विज्ञानी और जीवाश्म-विज्ञानी, पृथ्वी को खोदते हैं तथा जीवाश्मों और पत्थरों का विश्लेषण कर आदिमानव व अन्य जीवों के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। हर नई खोज से धरती पर जीवन की शुरुआत होने का समय और पीछे खिसक जाता है। कुछ वैज्ञानिक यह उम्मीद करते हैं कि जीवन की उत्पत्ति संबंधी पुराने सिद्धांत पूरी तरह से प्रमाणित कर दिये जायेंगे, तो कुछ अन्य यह आशा करते हैं कि ये सिद्धांत पूरी तरह से नकार दिये जायेंगे, लेकिन इंसान जैसे अद्वितीय जीव की उत्पत्ति कैसे हुई, यह अभी तक पक्के तौर पर दोनों पक्षों को पता नहीं चल सका है।

जीवन के रहस्य को सुलझाना

शोधकर्ता और उनके तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन इस सारी खोज की गहराई में वही समान प्रश्न मौजूद हैंः यह संसार क्या है? यह अस्तित्व में कैसे आया? क्या प्रभु हैं? क्या हमारे अंदर आत्मा है? यह आत्मा कहाँ से आई है और हमारी शारीरिक मृत्यु के बाद यह कहाँ चली जाती है? क्या हमारे जीवन का कोई उद्देश्य है?

वैज्ञानिक, शोधकर्ता, इंजीनियर, और डॉक्टर, अपनी पूरी ज़िंदगी इस पहेली के अलग-अलग टुकड़ों को एक साथ जोड़ने में ही बिता देते हैं। यह पहेली इतनी बड़ी है कि कोई एक व्यक्ति इसके सभी भागों का अध्ययन नहीं कर सकता, केवल किसी एक हिस्से की ही विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकता है। कुछ लोग इस पहेली को जीव-विज्ञान के द्वारा सुलझाना चाहते हैं, तो कुछ खगोलशास्त्र या भू-विज्ञान या भौतिकशास्त्र के द्वारा। लेकिन सभी प्रकार के भौतिक विज्ञानों की अपनी सीमाएँ हैं। जीवन भर इस सृष्टि में अपनी जगह तलाश करने के बाद भी विज्ञान अभी तक किसी निश्चित नतीजे पर नहीं पहुँच पाया है। हमें अपनी बाहरी तलाश में सफलता इसीलिए नहीं मिल पाई है क्योंकि जीवन के रहस्यों के जवाब कहीं बाहर नहीं हैं, बल्कि हमारे भीतर ही हैं। इस विशाल सृष्टि का रहस्य हमारे अंदर सूक्ष्म में ही मौजूद है।

विज्ञान हमें बताता है कि यह संसार, भौतिक पदार्थ और ऊर्जा से बना हुआ है। लेकिन भौतिक पदार्थ और ऊर्जा से चेतनता को कैसे समझाया जा सकता है? हम जानते हैं कि एक जीवित और एक मृत व्यक्ति में फ़र्क होता है, लेकिन उन दोनों को बनाने वाला भौतिक पदार्थ तो एक ही है। एक मृत शरीर को बनाने वाला पदार्थ वही होता है जो उस शरीर के जीवित होते हुए भी उसका निर्माण कर रहा था। लेकिन उस इंसान का वो हिस्सा जो हमसे बातचीत करता था, और जो शरीर के अंगों को संचालित करता था, चला गया है। उस इंसान की चेतनता जा चुकी है।

हम जानते हैं कि इंसान एक चेतन प्राणी है। एक इंसान जिसका दिल और साँसें रुक जायें, उसे कहा जाता है कि इसकी “शारीरिक चेतनता जा चुकी है”। लेकिन भौतिक शरीर के अंदर यह चेतनता आती कहाँ से है? अगर हमारी आत्मा ही हमारी चेतनता है, तो यह आत्मा भी तो कहीं न कहीं से उपजी ही होगी।

क्या यह सृष्टि में मौजूद भौतिक पदार्थ और ऊर्जा से बनी है? हम जानते हैं कि भौतिक पदार्थ में चेतनता नहीं है। हम जानते हैं कि भौतिक ऊर्जा में चेतनता नहीं है।

वैज्ञानिक जितना अधिक विज्ञान के नियमों के बारे में जानकरी प्राप्त करते हैं, उतना ही अधिक वे इस बात की संभावना को स्वीकार करते जाते हैं कि इस सृष्टि को बनाने वाली कोई उच्चतर चेतन सत्ता अवश्य है। इंसानी शरीर के चमत्कार, इस पृथ्वी के आश्चर्य, और हमारी इस भव्य सृष्टि में मौजूद प्रत्यक्ष रूप से अनगिनत आकाशगंगाएँ, ये सब केवल प्रकृति की कोई संयोगवश घटना नहीं हो सकती। ज़ाहिर है कि रहस्यमयी परमाणु, इंसानों का जटिल आनुवांशिक कोड, और इस संपूर्ण सृष्टि का निर्माण, ये सब प्रभु के अस्तित्व का प्रमाण देते हैं।