जीवन की चुनौतियों का सामना करना
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
हम सभी ऐसे क्षणों का सामना करते हैं, जो ताकतवर से ताकतवर पुरुषों और स्त्रियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण होते हैं। हो सकता है कि हमारे साथ कोई दुर्घटना हो जाए, जो हमें कमज़ोर या असहाय बना दे। हो सकता है कि हमारे बच्चे को कोई गंभीर बीमारी हो जाए, और जब वो दर्द में चिल्लाए तो हम उसकी पीड़ा को दूर करने में ख़ुद को असमर्थ महसूस करें। हो सकता है कि हम ऐसी संतान को जन्म दें जिसे कोई मानसिक समस्या हो, और उसे ज़िंदगी गुज़ारने में मदद करने के लिए हमें अपने पूरे धैर्य और हिम्मत की ज़रूरत हो। हो सकता है कि हमारे किसी रिश्तेदार को ख़बर मिले कि उन्हें कोई गंभीर रोग हो गया है, और हमें उनके अंतिम दिनों में उनके साथ खड़े रहना पड़े। हो सकता है कि आग, बाढ़, या तूफ़ान में हमारा घर और सारा सामान नष्ट हो जाए। हो सकता है कि जिस कम्पनी में हम तीस सालों से काम कर रहे थे, उससे हमें निकाल दिया जाए और अब हम इस परेशानी में हों कि इतने सालों बाद कौन सा नया करियर चुनें। बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं जो किसी भी तरह की बड़ी चुनौती या समस्या का सामना किए बिना ज़िंदगी बिता पाते हैं।
हम में से ज़्यादातर लोग जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। हम पाते हैं कि ऐसे समय में, हम उस कठिनाई के बोझ तले दबकर टूट जाते हैं। हम शुरू-शुरू के कुछ दिनों या हफ़्तों तक तो अपने बीमार रिश्तेदार की देखभाल ख़ुशी-ख़ुशी करते हैं, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जाता है और उनकी हालत में कोई सुधार नहीं होता, तो ज़िंदगी के तनाव हमारी शांति और धैर्य की परीक्षा लेने लगते हैं।
जीवन में लगातार रहने वाली मुसीबतें और समस्याएँ अक्सर हमें तोड़ देती हैं। अगर हमारी नौकरी छूट जाए, तो हो सकता है कि शुरू के कुछ हफ़्ते हम इस उम्मीद में उत्साहित रहें कि हमें जल्द ही दूसरी अच्छी नौकरी मिल जाएगी, लेकिन महीनों तक कोशिश करने के बाद भी अगर हमें नौकरी नहीं मिलती है, तो हम बेहद निराश हो जाते हैं। अगर हमारा बच्चा पढ़ाई में कभी-कभार बुरे अंक लाए, तो हमें थोड़ी निराशा हो सकती है, लेकिन अगर हमारा बच्चा लगातार, हर साल, बुरे अंक ही लाता रहे, तो हम बेहद दुखी हो जाते हैं। अपने जीवनसाथी की तलाश करते समय हम थोड़े व्याकुल हो सकते हैं, लेकिन अगर सालों बाद भी हमें अपनी पसंद का जीवनसाथी नहीं मिलता, तो हमारी बेचैनी बहुत बढ़ जाती है और हमें उसके शारीरिक दुष्प्रभाव भी झेलने पड़ सकते हैं। दूसरी ओर, जिन लोगों का शादीशुदा जीवन अच्छा नहीं चल रहा है और वे एक-दूसरे से अलग होना चाहते हैं, उन्हें भी बेहद तनावों और तकलीफ़ों से गुज़रना पड़ता है।
हम जीवन की चुनौतियों से बच नहीं सकते हैं। बाहरी परिस्थितियों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता है। हम निश्चित तौर पर नहीं कह सकते हैं कि हमारी नौकरी कभी नहीं जाएगी, या हमारा घर, हमारी दौलत, या हमारा कोई प्रियजन कभी हमसे नहीं छिनेगा। हम तूफ़ान, ज्वालामुखी, भूकम्प, सुनामी, या बवंडर को तबाही लाने से रोक नहीं सकते हैं। हम अपनी शारीरिक मृत्यु को भी आने से रोक नहीं सकते हैं। जो हम कर सकते हैं, वो यह है कि हम इन चुनौतियों का सामना निडर होकर कर सकते हैं, ताकि हम भय और निराशा के तले दबकर टूट ही न जाएँ।
डर को समझना
डर पैदा होता है संदेह या अनिश्चितता से, और किसी भी अनजानी चीज़ से। जब हमें निश्चित तौर पर पता नहीं होता है कि फ़लाँ चीज़ या परिस्थिति आगे चलकर कैसी निकलेगी, तो भय के लिए द्वार खुल जाता है। जब हम ख़ुद पर संदेह करते हैं, तो हम इस डर में जीते हैं कि हम कोई गलत निर्णय न ले लें या कोई गलती न कर बैठें। जब हमें अपनी काबिलियत पर संदेह होता है, तो हम डरने लगते हैं कि हम किसी प्रतियोगिता या परीक्षा में फ़ेल न हो जाएँ। जब हम किसी चीज़ के नतीजे को लेकर अनिश्चित होते हैं, तो हम परिणाम से डरने लगते हैं। अगर हम किसी उच्चतर सत्ता के अस्तित्व को लेकर संदेह में होते हैं, तो हम जीवन में अचानक सामने आ जाने वाली परिस्थितियों और दुर्घटनाओं के डर में जीते रहते हैं।
झूठ भी डर को जन्म देता है। अगर हम कोई झूठ बोलते हैं, तो हम पकड़े जाने के डर में जीते हैं। हमें उस पहले झूठ को छुपाने के लिए कई और झूठों का जाल बिछाना पड़ता है। कई बार तो इन झूठों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि यह याद रखना मुश्किल हो जाता है कि हमने किस से क्या कहा था और कब कहा था। सच बताकर उस परिस्थिति को ख़त्म करने के बजाय, हम हफ़्तों, महीनों, और कई बार तो सालों भी, अपने पहले झूठ को छुपाने के लिए कहानियाँ गढ़ते रहते हैं। जब भी कोई उस सच्चाई को जानने के करीब होता है तो हम बेहद डर जाते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि हमारा भेद खुल जाएगा और फिर हमें अपने उस कार्य का भुगतान करना पड़ेगा जिसे हम छुपाने की कोशिश कर रहे थे।
हमें अपनी कमज़ोरी का भी डर सताता रहता है। स्कूल के खेल के मैदान में बच्चे उन बच्चों से डरते हैं जो उन पर रौब जमाते हैं या उन्हें तंग करते हैं। हर रोज़ पैदल घर जाते समय छोटे बच्चों को यह डर होता है कि कहीं बड़े बच्चे उनसे मार-पीट न करें। ऑफ़िस में काम करने वाला व्यक्ति अपने बॉस से डरता है। हमारी तनख़्वाह, हमारी नौकरी का भविष्य, सब बॉस के हाथों में ही होता है। हम अपने ऑफ़िस में होने वाले अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाने से डरते हैं, कि कहीं हमारे वरिष्ठ अधिकारी हमसे नाराज़ होकर सज़ा न दे दें।
अगर हम अपने जीवन की ओर ध्यान से देखें, तो पाएँगे कि हम कई चीज़ों से डरते हैं। जब हम बच्चे होते हैं, तो डरते और चिंता करते हैं कि हमारे माता-पिता कब तक हमें सहारा देने के लिए मौजूद रहेंगे। जब हम विद्यार्थी होते हैं, तो हमें परीक्षा में फ़ेल हो जाने का डर लगा रहता है। जब हम माता-पिता बनते हैं, तो हम इस डर में जीते हैं कि हमारा बच्चा स्वस्थ रहेगा या नहीं, या वो बड़ा होकर अच्छा इंसान बनेगा या नहीं। यदि हम व्यवसाय करते हैं, तो हम इस चिंता में रहते हैं कि हमारे प्रतियोगी शायद हमसे आगे निकल रहे हैं। हम में से हरेक अपनी ज़िंदगी के किसी न किसी पहलू को लेकर डर में जीता है। इन सभी भयों के पीछे जो भय होता है, वो असल में हम में से हरेक के दिल में छुपा होता है, और वो होता है अनजान का भय।
भविष्य में क्या होना है, इस तरह के विचारों से हम बहुत डरे रहते हैं। जो लोग मौत से डरते हैं, उन्हें असल में अनजान का भय होता है। हम सभी जानते हैं कि एक न एक दिन हमारी मृत्यु हो जाएगी। ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि हमारी शारीरिक मृत्यु से हमारे अस्तित्व का अंत हो जाता है। ये डर हमेशा हमें किसी न किसी तरीके से अंदर से खाता रहता है। लोगों को अनजान से डर लगता है, क्योंकि वो अप्रिय या दुखद हो सकता है। क्योंकि उन्हें पता नहीं होता है कि वो क्या अपेक्षा रखें, इसीलिए उनके अंदर बेचैनी और डर पैदा हो जाता है। ऐसे भी कई लोग हैं जिन्हें विश्वास होता है कि मृत्यु के बाद भी जीवन है। उन्हें इस बात का डर होता है कि उनकी मृत्यु कैसे होगी और मृत्यु के समय उन्हें क्या अनुभव होगा। उन्हें मृत्यु की पीड़ा से डर लगता है। अनजान का भय जीवन भर हमारे मन में अचेतन रूप से लगातार बना रहता है।
आत्मा की निडरता
हमारी आत्मा, जोकि पूरी तरह से चेतन है, परमात्मा का अंश है और इसीलिए बिल्कुल निडर है। क्योंकि परमात्मा पूर्ण रूप से चेतन हैं, और आत्मा उनका अंश है, इसीलिए आत्मा भी छोटे पैमाने पर परमात्मा ही है। प्रभु निडर हैं, और आत्मा भी निडर है। हमारे अंदर डर इसीलिए है क्योंकि हम अपनी आत्मा के संपर्क में नहीं हैं। आत्मा सत्य है; आत्मा पूर्ण रूप से चेतन है। सत्य के साथ जुड़ने का अर्थ है किसी भी तरह का कोई डर न होना। इसीलिए आत्मा के अंदर कोई डर नहीं है।
चेतनता के गुण के कारण आत्मा के अंदर सृष्टि का समस्त ज्ञान मौजूद होता है। ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसके बारे में आत्मा को पता न हो। उसे पता है कि क्या है और क्या होगा। तो फिर उसे किस बात का डर? जो लोग अपनी आत्मा के संपर्क में आते हैं – संत, सत्गुरु, और जागृत महापुरुष – वे निजी अनुभव के द्वारा मृत्यु की प्रक्रिया को समझ लेते हैं। यह ज्ञान मिलने से मृत्यु का डर समाप्त हो जाता है।
संत हमें बताते हैं कि जो मरता है वो यह शरीर होता है, जो भौतिक पदार्थ से बना है। भौतिक पदार्थ से बने होने के कारण यह धीरे-धीरे ख़राब होता जाता है, और आख़िरकार नष्ट हो जाता है। लेकिन हमारा सच्चा आपा, जोकि हमारी आत्मा है, वो अमर है। वो हमेशा क़ायम रहती है। इस दुनिया में हम जिसे मृत्यु कहते हैं, वो केवल शारीरिक मृत्यु होती है। आत्मा के लिए वो केवल कपड़े बदलने के समान है। इसीलिए पहली चीज़ जो हमें समझनी चाहिए, वो यह है कि हमारी आत्मा अमर है। वो शुरुआत में भी थी, अभी भी है, और हमेशा रहेगी। आत्मा के नष्ट होने का सवाल ही नहीं उठता; वो अविनाशी है। यदि हम स्वयं इस चीज़ का अनुभव कर लें, तो हमारे जीवन का सबसे बड़ा भय – मृत्यु का भय – समाप्त हो जाएगा।
सत्य को भय नहीं होता
आत्मा सत्य है। झूठ को हमेशा पकड़े जाने का डर होता है। जैसा कि महात्मा गांधी अक्सर कहा करते थे, “अंत में जीत हमेशा सत्य की होती है।” सत्य सब पर विजय पा लेता है। अगर हम सत्य में जियेंगे, तो हमें किसी चीज़ का भय नहीं होगा।
हम चाहे इस बात से अनजान हों, लेकिन यह सृष्टि कुछ नियमों के अनुसार चल रही है। नियमों से अनजान होना हमें उनसे मुक्ति नहीं दिला देता। हमें चाहे लगता हो कि हम दूसरों को धोखा देकर, ख़ुद को धोखा देकर, प्रभु को धोखा देकर, बच निकलेंगे, लेकिन हम बच नहीं सकते। देर-सवेर सच सामने आ ही जाएगा, और हमें अपने कर्मों का भुगतान करना ही पड़ेगा।
हो सकता है कि अख़बार पढ़ते समय हमें पता चले कि चोरों ने बैंक लूट लिया और बचकर भाग निकले। माता-पिता अपने बच्चों से झूठ बोलते हैं, और बच्चे अपने माता-पिता से झूठ बोलते हैं। हम अपने कार्यस्थल से शायद वो पैसे भी घर लाते हों जो हमारे नहीं हैं। हो सकता है कि हम अपने जीवनसाथी को धोखा दे रहे हों। हो सकता है कि हम झूठी ताकत या पहुँच का दिखावा करते हों, ताकि लोग वैसा करें जैसा हम चाहते हैं। हम दूसरों से झूठ बोलकर, उन्हें धोखा देकर, वो काम करवा लेते हैं जो हम चाहते हैं। हम लोगों से ऐसे वादे करते हैं जिन्हें निभाने का हमारा कोई इरादा नहीं होता। झूठ और धोखे के ऐसे कई प्रकार होते हैं जिनमें इंसान लिप्त हो जाता है। लेकिन अंत में सच हमेशा सामने आ ही जाता है, अगर इस जीवन में नहीं तो मृत्यु के बाद ही सही। हमें अपने कर्मों का भुगतान करना ही पड़ता है।
सच्चाई का जीवन जीने से हमारा डर ख़त्म हो जाता है। हमें न तो अपने झूठ या धोखे का भुगतान करने का डर होता है, और न ही पकड़े जाने का डर होता है। जो कैदी झूठ, धोखे, या बेईमानी से संबंधित बुरे कार्यों के लिए सज़ा भुगत लेता है, वो फिर सच्चाई से भरपूर साफ़-सुथरा जीवन बिताने का निर्णय ले लेता है। फिर जब वो हर सुबह उठकर, पकड़े जाने के डर के बिना, चैन की ज़िंदगी जीता है, तो उसे कितनी राहत महसूस होती है! जो व्यक्ति सड़क पर तेज़ गाड़ी भगाता है, वो हर पल तनाव में होता है; उसे हमेशा यह डर लगा रहता है कि कहीं पुलिस उसे ट्रैफ़िक नियमों को भंग करने के लिए पकड़ न ले। वो न तो बाहर के नज़ारों का आनंद ले पाता है और न ही गाड़ी में चल रही बातचीत का। लेकिन जो व्यक्ति निर्धारित गति-सीमा के अंदर रहकर गाड़ी चलाता है, उसे कोई डर नहीं होता। वो किसी भी तरह के डर के बिना बाहर के नज़ारों का आनंद भी ले सकता है, रेडियो पर गाने भी सुन सकता है, और गाड़ी में बैठे अन्य लोगों से आराम से बातचीत भी कर सकता है।
आत्मा का अस्तित्व सत्य है। अगर हम अपनी आत्मा का अनुभव कर लें, तो हमारा असली अस्तित्व, जोकि सत्य है, ही हमारे जीवन को संचालित करेगा और हमें सभी भयों से मुक्त कर देगा।
निडरता कैसे विकसित करें
चिकित्सा के क्षेत्र में, जब किसी व्यक्ति को ऐसे पदार्थ की आदत डालनी होती है जिससे उसे एैलर्जी हो, तो उसे उस पदार्थ की बहुत छोटी मात्रा बार-बार दी जाती है। जब उस व्यक्ति को छोटी मात्रा में उस पदार्थ को सहन करने की आदत पड़ जाती है, तो उसके शरीर में प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है, और वो उस पदार्थ की बड़ी मात्रा को सहने के भी लायक बन जाता है। अगर हम भी छोटी-छोटी परिस्थितियों में निडरता अपनाने लगेंगे, तो फिर हम धीरे-धीरे बड़ी चुनौतियों का सामना करने के भी लायक बन जाएँगे। निडरता का जीवन जीने के लिए हमें अपनी जागृत आत्मा के संपर्क में आना होगा।
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बास्केटबॉल कौशल को ध्यानाभ्यास में इस्तेमाल करना
ध्यानाभ्यास के लिए एकाग्रता की ज़रूरत होती है। इसका अर्थ है अपने शरीर को बिल्कुल स्थिर करके बैठना, जिस तरह खिलाड़ी अपने शरीर को उस स्थिति में रखते हैं जिसमें वो बॉल को पकड़ सकें। हमें भी आंतरिक बॉल के साथ जुड़ना है, इसीलिए हमारे शरीर का स्थिर होना ज़रूरी है।
हमेशा अपनी ओर से बेहतर से बेहतर करिए
जीवन में ऐसा समय भी आता है जब अपनी ओर से बेहतरीन प्रयास करने पर भी हम परिणाम से संतुष्ट नहीं होते, या जब हमारे प्रयास उन लोगों के द्वारा ही सराहे नहीं जाते जिनकी हम सहायता करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जब ऐसा होता है, तो हम अपने प्रयासों में सतर्क हो जाते हैं, और परिस्थितियों या लोगों के अनुसार अपने प्रयासों में बढ़ोतरी या कमी लाते रहते हैं।
लगावों को त्यागना
एक रोचक कहानी की मदद से हम जान पाते हैं कि कैसे हम अपनी इच्छाओं और दैनिक गतिविधियों के गुलाम बन जाते हैं, और इस प्रक्रिया में अपने जीवन के सच्चे उद्देश्य को पाने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते।
सभी चीज़ों में कुछ न कुछ अच्छा ढूंढ लीजिए
हम अक्सर एक आधे-भरे गिलास को आधा-भरा हुआ नहीं, बल्कि आधा-खाली की नज़र से देखते हैं। किसी भी स्थिति को देखते समय, ज़्यादातर लोग उसके अच्छे पहलू के बजाय उसके बुरे पहलू की ओर ही देखते हैं। लेकिन, यदि हम इस बारे में ध्यान से सोचें, तो देखेंगे कि हमारे जीवन में बहुत सारी अच्छी चीज़ें भी हो रही हैं, और हमारे पास ऐसी कई देनें हैं जिनके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए।
मानवता के द्वारा जवाबों की खोज
अपने स्रोत की हमारी तलाश को, इस भौतिक सृष्टि के हमारे अनुसंधानों और अन्वेषणों में देखा जा सकता है।
आत्मा बिना शर्त सबसे प्रेम करती है
यदि हम अपनी आत्मा के संपर्क में आएँगे और दुनिया को उसकी नज़रों से देखेंगे, तो हम न केवल बिना शर्त प्रेम करने लगेंगे, बल्कि अपने लिए प्रभु के बिना शर्त प्रेम को भी महसूस कर पाएँगे।