क्या सांसारिक प्रेम से बढ़कर भी कोई प्रेम है?
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
एक जागृत आत्मा का प्रेम, उसके प्रेम से भरपूर रिश्तों में झलकता है। इस दुनिया में जो प्रेम सबसे महान् माना जाता है, वो है माँ-बाप का अपने बच्चे के लिए प्रेम। अगर हमें अपने माँ-बाप का प्रेम अनुभव करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, तो हमें याद होगा कि वे कितने प्यार से हमारी देखभाल करते थे। वो हमें खाना, कपड़े, घर, दवाई, शिक्षा, और खिलौने देने के लिए कितनी मेहनत से पैसे कमाते थे। वे हमारा पालन-पोषण करने में कितना अधिक समय व्यतीत करते थे। अगर हम किसी खेलकूद में भाग लेते थे, तो वे हमारा खेल देखने के लिए आते थे। अगर हम स्कूल के किसी नाटक आदि में भाग लेते थे, तो वो हमारा नाटक देखने के लिए समय निकालते थे। और यदि अपने माँ-बाप के साथ हमारा रिश्ता इतनी करीबी न भी रहा हो, तो भी हमारी माँ ने हमें नौ महीने अपने गर्भ में तो रखा ही था, और हमें इस संसार में लाने के लिए बहुत दर्द भी सहा था।
नौजवानी की अवस्था में हो सकता है कि हमने रोमानी प्रेम का अनुभव किया हो। हो सकता है कि हम किसी के प्रेम में पड़ गए हों और उस प्रेम के नशे में खो गए हों। ऐसे में, अपने प्रियतम की संगति में हम दुनिया के तमाम दुख-दर्द और चिंताएँ भूल जाते थे। समय को मानो पंख लग जाते थे, और हम घंटों एक-दूसरे के साथ बातें करते हुए या एक-दूसरे की आँखों में देखते हुए बिता देते थे। वो रोमानी प्रेम हमें एक-दूसरे की कमियाँ या गलतियाँ देखने नहीं देता था।
अगर जीवन में आगे चलकर हम माता-पिता बने, तो हमने एक अन्य तरह का प्रेम अनुभव किया होगा। अपने बच्चे को गोद में लेने पर और उसकी आँखों में देखने पर हम गहरे प्रेम की भावना से अभिभूत हो गए होंगे। उसकी छोटी-छोटी उँगलियों ने जब हमारे हाथ को पकड़ा होगा, तो हम अवर्णनीय प्रेम से भर उठे होंगे। तब आख़िरकार हम समझ गए होंगे कि हमारे माता-पिता हमसे कितना ज़्यादा प्रेम करते थे। अपने बच्चे को अच्छे से अच्छा खाना, कपड़े, और खिलौने मुहैया कराने के लिए हम बड़े से बड़ा त्याग करने को भी तैयार हो जाते हैं।
ये सभी बाहरी प्रेम उस महान् प्रेम की छोटी सी झलक भर हैं जो हमारी आत्मा के अंदर मौजूद है। इस दुनिया में हमने जो भी गहरे से गहरा प्रेम अनुभव किया हो, उसे यदि हम दस गुणा या सौ गुणा बढ़ा दें, तो शायद हमें उस प्रेम का हल्का सा अंदाज़ा मिल जाए जो अंतर में हमारी प्रतीक्षा कर रहा है।
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बास्केटबॉल कौशल को ध्यानाभ्यास में इस्तेमाल करना
ध्यानाभ्यास के लिए एकाग्रता की ज़रूरत होती है। इसका अर्थ है अपने शरीर को बिल्कुल स्थिर करके बैठना, जिस तरह खिलाड़ी अपने शरीर को उस स्थिति में रखते हैं जिसमें वो बॉल को पकड़ सकें। हमें भी आंतरिक बॉल के साथ जुड़ना है, इसीलिए हमारे शरीर का स्थिर होना ज़रूरी है।
हमेशा अपनी ओर से बेहतर से बेहतर करिए
जीवन में ऐसा समय भी आता है जब अपनी ओर से बेहतरीन प्रयास करने पर भी हम परिणाम से संतुष्ट नहीं होते, या जब हमारे प्रयास उन लोगों के द्वारा ही सराहे नहीं जाते जिनकी हम सहायता करने की कोशिश कर रहे होते हैं। जब ऐसा होता है, तो हम अपने प्रयासों में सतर्क हो जाते हैं, और परिस्थितियों या लोगों के अनुसार अपने प्रयासों में बढ़ोतरी या कमी लाते रहते हैं।
लगावों को त्यागना
एक रोचक कहानी की मदद से हम जान पाते हैं कि कैसे हम अपनी इच्छाओं और दैनिक गतिविधियों के गुलाम बन जाते हैं, और इस प्रक्रिया में अपने जीवन के सच्चे उद्देश्य को पाने के लिए समय ही नहीं निकाल पाते।
सभी चीज़ों में कुछ न कुछ अच्छा ढूंढ लीजिए
हम अक्सर एक आधे-भरे गिलास को आधा-भरा हुआ नहीं, बल्कि आधा-खाली की नज़र से देखते हैं। किसी भी स्थिति को देखते समय, ज़्यादातर लोग उसके अच्छे पहलू के बजाय उसके बुरे पहलू की ओर ही देखते हैं। लेकिन, यदि हम इस बारे में ध्यान से सोचें, तो देखेंगे कि हमारे जीवन में बहुत सारी अच्छी चीज़ें भी हो रही हैं, और हमारे पास ऐसी कई देनें हैं जिनके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए।
मानवता के द्वारा जवाबों की खोज
अपने स्रोत की हमारी तलाश को, इस भौतिक सृष्टि के हमारे अनुसंधानों और अन्वेषणों में देखा जा सकता है।
आत्मा बिना शर्त सबसे प्रेम करती है
यदि हम अपनी आत्मा के संपर्क में आएँगे और दुनिया को उसकी नज़रों से देखेंगे, तो हम न केवल बिना शर्त प्रेम करने लगेंगे, बल्कि अपने लिए प्रभु के बिना शर्त प्रेम को भी महसूस कर पाएँगे।