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आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

यह वसंत का मौसम है, और सर्दियाँ आख़िरकार विदा हो चुकी हैं। मौसम में थोड़ी गर्मायश आ चुकी है, फूल खिल चुके हैं, और पेड़ हरियाली से भरे हुए हैं। साल के इस समय में, हम ज़्यादातर अपने घरों की साफ़-सफ़ाई करते हैं और लंबी, ठंडी सर्दियों की याद दिलाने वाली हर चीज़ को हटा देते हैं। हम अपनी खिड़कियाँ खोलकर साफ़, ताज़ी हवा को अंदर आने देते हैं। हम ऐसे हर सामान को फेंक देना चाहते हैं जो हमारे घर को गंदा या अव्यवस्थित बना रही है। हम अक्सर इसे ‘स्प्रिन्ग क्लीनिंग’ या वसंत की साफ़-सफ़ाई कहते हैं। हम ऐसी हर चीज़ को हटा देना चाहते हैं जो हमें सर्दियों के ठिठुरन भरे महीनों की याद दिलाए, ताकि वसंत की सुंदरता को घर में आने का अवसर मिले।

Sant Rajinder Singh meditation

 

 

जिस तरह हम वसंत की साफ़-सफ़ाई करते हैं, उसी तरह हम इस समय आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई भी कर सकते हैं। यह समय है जबकि हम अपने आध्यात्मिक घर को साफ़ करें, ताकि हम प्रभु के प्रेम के प्रति ग्रहणशील बन सकें तथा अपने जीवन में ख़ुशियों का संचार कर सकें।

हमारा आध्यात्मिक घर है हमारा शरीर और मन, जिसमें हमारी आत्मा निवास करती है। तो हम अपने आध्यात्मिक घर की सफ़ाई कैसे कर सकते हैं? इसके लिए हमें मन और माया के अतिरिक्त सामानों को निकाल फेंकना होगा, ताकि आत्मा अंतर में निखर उठे।

वसंत की साफ़-सफ़ाई से पहले हम ज़्यादातर यह जायज़ा लेते हैं कि हमारे घर में कौन-कौन सा अतिरिक्त सामान भरा पड़ा है। हम पहले पूरे घर में घूमकर यह देखते हैं कि हमें कितनी साफ़-सफ़ाई करनी है। हम यह फैसला करते हैं कि हमें क्या रखना है और क्या फेंकना है। अगर कोई चीज़ इतनी भारी होती है जो हमसे अकेले न हटे, तो हम किसी को मदद के लिए बुलाते हैं।

इसी प्रकार, आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई के लिए भी हमें अपने अंतर में झाँककर देखना होता है कि हम कौन सी चीज़ें रखना चाहते हैं और कौन सी चीज़ें फेंक देना चाहते हैं। हमें देखना होता है कि हम अपने कौन-कौन से पहलुओं की सफ़ाई करना चाहते हैं। हमें यह समझना होता है कि हमारे मन और हृदय में कौन-कौन सी चीज़ें ग़ैर-ज़रूरी हैं और हमें प्रभु के प्रेम को अनुभव करने से रोक रही हैं।

उदाहरण के लिए, हमारे अंदर मौजूद कुछ ग़ैर-ज़रूरी चीज़ें हैं क्रोध और अहंकार। आइए देखें कि हम अपने जीवन से इन चीज़ों को कैसे निकाल सकते हैं।

क्रोध

क्रोध हमारे अंदर अक्सर किसी अन्य व्यक्ति के लिए पैदा होता है। जब हम क्रोधित होते हैं, तो हम क्या करते हैं? हम उस इंसान के बारे में सोचते रहते हैं। हम सोचते रहते हैं कि उस इंसान ने क्या बोला या क्या किया। हम अपने मन में उन चीज़ों को बार-बार दोहराते रहते हैं, जिस तरह एक फ़िल्म की डीवीडी को बार-बार देखना। फिर, हम कल्पना करने लगते हैं कि हम उस इंसान से बदला लेने के लिए क्या-क्या करेंगे। हम इन भविष्य के बोलों या कार्यों की फ़िल्म बनाने लगते हैं, कि हम बदला लेने के लिए ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे। यह हमारे लिए लाभदायी कैसे हो सकता है?

अपने घर से क्रोध को साफ़ करने के लिए हमें ख़ुद से कहना होगा, “क्या मैं उस इंसान के बारे में सोचने में, या उसे अपने शब्दों या कार्यों से तकलीफ़ पहुँचाने में, अपना वक़्त ज़ाया करना चाहता हूँ, या मैं प्रभु के प्रेम से मिलने वाली ख़ुशियों का अनुभव करना चाहता हूँ?” हमें सक्रिय रूप से यह चुनाव करना होगा कि हम अपने विचारों को उस दूसरे इंसान की ओर से हटाकर प्रभु की ओर मोड़ दें।

अहंकार

जब हम अहंकार से भरे होते हैं, तो हम केवल अपने बारे में ही सोचते रहते हैं। हम अपनी तुलना दूसरों से करते रहते हैं, और हमेशा यही मानते हैं कि हम दूसरों से बेहतर हैं। हम समझते हैं कि हम दूसरों से अधिक ताकतवर हैं। हमें लगता है कि जो कुछ भी हम चाहते हैं, उसे पाना हमारा अधिकार है। हमें सोचते हैं कि हम हर किसी से ज़्यादा बुद्धिमान हैं, ज़्यादा समझदार हैं।

अहंकार से छुटकारा पाने का उपाय है निष्काम सेवा। अगर हम दूसरों की मदद करने वाली गतिविधियों में समय बितायेंगे, तो हम अपने बजाय दूसरों की सेवा करेंगे। अगर हम अपने लिए किसी चीज़ की आशा किए बिना दूसरों की सेवा करेंगे, तो हम अपने बारे में नहीं सोचेंगे। इस तरह हम अपने अहंकार से छुटकारा पा लेंगे।

इस वीडियो में, संत राजिन्दर सिंह जी ध्यानाभ्यास के लाभों के बारे में बता रहे हैं, और समझा रहे हैं कि ध्यानाभ्यास हमारे दैनिक जीवन में सकारात्मक गुण कैसे लाता है।

चिंता से मुक्त होना

अपना रोज़मर्रा का जीवन जीते हुए, हम अतीत और भविष्य के विचारों से भी घिरे रहते हैं। ये विचार हम क्या कर चुके हैं और क्या करना चाहते हैं, इनके गिर्द घूमते रहते हैं। अक्सर ये विचार चिंता से भरे होते हैं। हम चिंता करते हैं कि अतीत में क्या हो चुका है, और हम चिंता करते हैं कि भविष्य में क्या होगा। अतीत में क्या हो चुका है, इससे जुड़े विचार अधिकतर पछतावे, शर्मिंदगी, और निराशा से भरे होते हैं। भविष्य में क्या होगा, इससे जुड़े विचार अधिकतर चिंता, भय, और व्यग्रता से भरपूर होते हैं। जब हम अतीत और भविष्य के बारे में ही सोचते रहते हैं, तो हम वर्तमान क्षण को खो देते हैं। मैं हमेशा वर्तमान (जिसे अंग्रेज़ी में ‘प्रेज़ेन्ट’ कहते हैं) को एक प्रेज़ेन्ट या उपहार ही मानता हूँ। यह प्रभु की ओर से दिया गया एक उपहार है।

हमें अतीत के विचारों को बाहर निकाल फेंकने की ज़रूरत है। जो बीत चुका है, वो बीत चुका है। जीवन में ऐसी कई बातें हो जाती हैं जो हमें लगता है कि नहीं होनी चाहिए थीं। कई बार दूसरों को हमारे बारे में गलतफ़हमी हो जाती है, या हमारी किसी बात का अर्थ गलत ले लिया जाता है, और फिर वो हमसे बदला लेते हैं, चाहे हमने असल में कुछ भी न किया हो। कई बार हमसे वास्तव में गलती हो जाती है, और कई बार लोगों को लगता है कि हमने कुछ गलत किया है। लेकिन जो भी हो, हम अतीत को बदल तो नहीं सकते हैं।

चाहे हमने कुछ गलत न किया हो, फिर भी हम अपने प्रति दूसरों के रवैये को बदल नहीं सकते हैं। हमें अपने अंतर की साफ़-सफ़ाई करनी चाहिए और अतीत की चिंताओं और निराशाओं को निकाल फेंकना चाहिए। हमें हर क्षण को प्रभु के प्रेम का अनुभव करने का एक नया अवसर बना लेना चाहिए।

हमें अतीत को पीछे छोड़ देना चाहिए और नए पलों का स्वागत करना चाहिए। हमारे पास एक आंतरिक वैक्युम क्लीनर होना चाहिए जो लगातार अतीत के लम्हों की धूल को साफ़ करता रहे, ताकि हमारा आध्यात्मिक घर हर वर्तमान क्षण में प्रभु के प्रवेश के लिए साफ़-सुथरा बना रहे।

इसी प्रकार, हमें भविष्य के अपने विचारों की भी साफ़-सफ़ाई करनी चाहिए। हम भविष्य की कल्पनाओं से अपने आध्यात्मिक घर को अव्यवस्थित बना देते हैं। हम इस डर में जीते रहते हैं कि कल क्या होगा। हम हमेशा इसी डर में डूबे रहते हैं कि भविष्य में क्या होगा, या इन इच्छाओं में डूबे रहते हैं कि हम भविष्य में क्या पाना चाहते हैं। अगर हम इन विचारों को रोक पायें कि अब से कुछ क्षणों या कुछ दिनों या कुछ हफ़्तों बाद क्या होगा, तो हम भविष्य के बारे में चिंता करना छोड़ देंगे और वर्तमान पल में जीने लगेंगे।

सच्चा माप

इस बात का सच्चा माप कि हमने अपना घर पर्याप्त रूप से साफ़ कर लिया है या नहीं, यह है कि हमारा ध्यान कहाँ रहता है। अगर हमने अपना काम ठीक से किया है, तो हमारे विचार स्थिर हो चुके होंगे। हम अतीत और भविष्य के विचारों से मुक्त हो चुके होंगे। हम क्रोध और अहंकार से मुक्त हो चुके होंगे। जब हम ध्यानाभ्यास करने के लिए बैठेंगे, तो हम आसानी से एकाग्र हो पायेंगे। हम एक खाली प्याले के समान दिव्य प्रेम से भर उठने के लिए तैयार होंगे। हमारा आत्मिक अस्तित्व प्रेम से भरपूर हो जाएगा, और वो प्रेम ऊर्जा की तरंगों की तरह हमसे प्रवाहित होने लगेगा। इस प्रेम से हमारी आध्यात्मिक तरक्की होने लगेगी। यह हमारे अंदर एक बेचैनी पैदा कर देगा। हम हरेक इंसान से और हरेक चीज़ से प्रेम करने लगेंगे। यही सच्चा माप है यह देखने के लिए कि हमारा घर पूरी तरह से साफ़ हुआ है या नहीं।

इस वसंत, आइए हम आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई की चुनौती लें, ताकि हम अपने मन और हृदय को साफ़-सुथरा बना सकें, और प्रभु-प्रेम की ताज़ी हवा से अपनी आत्मा को पोषित करें। ऐसा करने से हम न केवल अपनी सहायता करेंगे, बल्कि अपने आसपास वालों के लिए भी उदाहरण बन जायेंगे। यह गतिविधि पूरे साल के लिए और आने वाले सारे समय के लिए हमारे लिए लाभदायक सिद्ध होगी।

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लेखक के बारे में

Sant Rajinder Singh Ji sos.org

 

 

 

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म व ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक व बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सम्मानित किया गया है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक अध्यक्ष होने के नाते, वे संसार भर में यात्राएँ कर लोगों को आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की प्रक्रिया सिखाते हैं, जिससे शांति, ख़ुशी, और आनंद की प्राप्ति होती है।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें। Facebook YouTube Instagram पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को फ़ॉलो करें।

 

 

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