क्रोध पर काबू पाना

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

क्या क्रोध आपके जीवन का एक स्थाई अंग बन चुका है? संत राजिन्दर सिंह जी महाराज बता रहे हैं कि हम अपने क्रोध पर कैसे काबू पा सकते हैं, ताकि हम अधिक ख़ुशियों से भरपूर जीवन जी सकें।

हमारे मन की शांति को सबसे बड़ा ख़तरा क्रोध से होता है। कार्यस्थल पर, हम पाते हैं कि हमें अक्सर अपने बॉस, अपने सहकर्मियों, या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर गुस्सा आता रहता है। मुश्किल से ऐसा एक भी दिन गुज़रता होगा जब कार्यस्थल पर कोई व्यक्ति या कोई चीज़ हमारे मन की शांति को भंग नहीं करती है। हम देखते हैं कि घर में भी हमारी प्रतिक्रियाएँ अक्सर क्रोधपूर्ण होती हैं। किसी ने कोई बिल समय से नहीं भरा होता, या कोई और हमारी पसंदीदा मिठाई खा लेता है, या हमारे बच्चे लड़-लड़कर हमारे सिर में दर्द कर देते हैं, या हमारे पति या पत्नी ने हमारी ओर से कहीं पहुँचने का वादा कर लिया होता है जहाँ हम जाना नहीं चाहते हैं।

ये सूची इसी तरह चलती ही रहती है। यहाँ तक कि काम पर आते-जाते समय भी हमें क्रोध आने की संभावना बनी रहती है। कभी आराम से चलता ट्रैफ़िक अचानक, बिना किसी वजह के, रुक जाता है और हम पंद्रह मिनट तक वहीं खड़े रहते हैं। कभी कोई अन्य व्यक्ति लेन बदलने लगता है और हमें मुड़ने की जगह नहीं देता। कभी कोई दूसरा ड्राइवर अचानक तेज़ी से हमारे पास से निकलता है और दुर्घटना बस होते-होते बचती है। इस सबके बीच जब हम आख़िरकार कार्यस्थल पर पहुँचते हैं, तब तक हम गुस्से और चिड़चिड़ाहट से भरपूर हो चुके होते हैं।

ऐसा लगता है मानो ज़िंदगी हर वक़्त हमारा सामना ऐसी परिस्थितियों से करवाती रहती है जो हमें क्रोधित में रखती हैं। तो क्या क्रोध से बचने का कोई उपाय है? जितना अधिक हम क्रोध के शिकंजे में आते हैं, उतना ही ज़्यादा वो हमारे अंदर बढ़ता चला जाता है और हम पर पूरा नियंत्रण जमा लेता है। यहाँ तक कि हम अपने ऊपर पूरा नियंत्रण ही खो देते हैं, और ऐसा कुछ कह या कर बैठते हैं जो हमें और दूसरों को बहुत नुकसान पहुँचाता है।

क्रोध पर काबू पाने का तरीका यही है कि हम हर समय शांत बने रहें, चाहे परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो। घर में, ऑफ़िस में, ट्रैफ़िक में, जब हमारे सामने कोई समस्या आती है, तो हमें क्रोध में प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। हम देख सकते हैं कि समस्या तो है ही। हम उस समस्या को सुलझाने के लिए कदम उठा सकते हैं। सक्रिय ढंग से काम करते हुए हम बातचीत के द्वारा, या कोई अन्य समाधान ढूंढने के द्वारा, क्रोध के स्रोत को ख़त्म कर सकते हैं, और स्वयं भी क्रोध में आने से बच सकते हैं।

क्रोध से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता है। इससे तो केवल हमारा रक्तचाप बढ़ता है, हमारे शरीर में लड़ो-या-भागो हॉर्मोनों का संचरण होने लगता है जो हमारे स्वास्थ्य को ख़राब करते हैं, और हमारा मन हलचल की अवस्था में रहता है।

हमारे गुस्से से सामने वाले पर कोई असर नहीं पड़ता; वो जो कर रहे होते हैं, वही करते रहते हैं। हमारा गुस्सा तो कवल हमें ही बीमार और प्रभावहीन बनाता है। लेकिन अगर हम शांत रहें, तो हम पूरी समझदारी और नियंत्रण के साथ उस समस्या का सामना कर सकते हैं और एक अधिक प्रभावशाली समाधान ढूंढ सकते हैं। साथ ही, उस समस्या का समाधान करने के लिए हमारे पास ऊर्जा भी अधिक होगी।

एक-एक कदम

तो क्रोध पर काबू पाने के लिए हम क्या कदम उठा सकते हैं?

सबसे पहले, जब भी हमें लगे कि हमें गुस्सा आ रहा है, तो हमें फ़ौरन, उसी क्षण, कुछ भी कहना या करना नहीं चाहिए। इसके बजाय, हमें एक गहरी साँस लेनी चाहिए और थोड़ी देर ठहरना चाहिए।

दूसरे, हमें ध्यान में बैठ जाना चाहिए। हमें स्वयं को उस परिस्थिति से दूर कर लेना चाहिए, और अकेले में शांति से ध्यानाभ्यास करना चाहिए। हमें यह जानना चाहिए कि जितनी अधिक देर तक हम शांति से बैठेंगे, उतना ही हमारे क्रोध को कम ऊर्जा मिलेगी, और वो धीरे-धीरे ख़त्म हो जाएगा।

आइए, हम शांति, साम्यावस्था, और संतुलन से अपने क्रोध पर काबू पायें। ऐसे में हम पायेंगे कि रोज़ाना हमें गुस्सा दिलाने वाली परिस्थितियाँ तो वही हैं, लेकिन अब हम उनके गुलाम नहीं हैं। हम शांतिपूर्वक उन परिस्थितियों से गुज़रते हुए अपने शरीर, मन, और ऊर्जा का प्रयोग अधिक सकारात्मक कार्यों के लिए कर पायेंगे, तथा अधिक ख़ुशियों व शांति से भरपूर रहेंगे।

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