अपना उपचार करना और विश्व का उपचार करना

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

हमारे विश्व को उपचार की आवश्यकता है, और ऐसे कई लोग है जिन्होंने अपना पूरा जीवन इसी चीज़ के लिए समर्पित कर दिया है। हम में से हरेक व्यक्ति एक बेहतर भविष्य बनाने में अपना योगदान दे सकता है, और इस सबका आरंभ होता है मौन से।

यदि हम अपने ग्रह का उपचार करना चाहते हैं, तो हमें ख़ुद अपना उपचार करने से शुरुआत करनी होगी। हम हफ़्तों, सालों, या जीवन भर में भी किसी अन्य व्यक्ति को बदल नहीं सकते, लेकिन हम ख़ुद को फ़ौरन बदल सकते हैं। यदि हरेक व्यक्ति ख़ुद को बदलने का प्रयास करे, तो उसका संयुक्त प्रभाव बहुत ही महान् होगा। अगर हरेक व्यक्ति अपना उपचार कर ले, तो उसे मिलने वाले लाभों को देखकर दूसरों को भी ऐसा ही करने की प्रेरणा मिलेगी। एक लहर की तरह, इसका प्रभाव फैलता ही जाएगा, और धीरे-धीरे पूरे विश्व में छा जाएगा। तो आइए हम शुरुआत करते हुए देखें कि किन-किन तरीकों से हम अपना उपचार कर सकते हैं। अपना उपचार करने से, हम पूरे विश्व के उपचार में अपना योगदान देंगे।

अपना उपचार करना

जब हम अपना उपचार करने की बात करते हैं, तो हम मेडिकल या डॉक्टरी उपचार की बात नहीं कर रहे। “उपचार” शब्द का अर्थ है अपने जीवन के सभी पहलुओं को परिपूर्ण करना। हम अपने शरीर, मन, और आत्मा का उपचार करने की बात कर रहे हैं। उपचार में शामिल है रोग को दूर करना। हम शायद किन्हीं डॉक्टरी कारणों से शारीरिक रूप से स्वस्थ न महसूस कर रहे हों। शायद ऑफ़िस में, घर में, समुदाय में, समस्याओं का सामना होने के कारण हम मानसिक, भावनात्मक, या मनोवैज्ञानिक रूप से स्वस्थ न महसूस कर रहे हों।

हो सकता है कि हम आत्मिक रूप से स्वस्थ न महसूस कर रहे हों, क्योंकि हमें अभी तक आत्मा और परमात्मा से संबंधित, और अपने जीवन के उद्देश्य से संबंधित, सवालों के जवाब न मिले हों, और इसी कारण से हमारी आत्मा बेचैन हो। इसीलिए, अपना उपचार करने के लिए, हमें इन अस्वस्थताओं को दूर करना होगा, तथा शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्तर पर स्वस्थ होना होगा।

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शरीर का उपचार

विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्रों में हुई प्रगति ने हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के बारे में, और इसे बेहतरीन स्थिति में रखने के बारे में, बहुत कुछ सिखाया है। हम आज पोषण और व्यक्तिगत स्वास्थ्य और साफ़-सफ़ाई के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। हम जानते हैं कि कुछ ख़ास रोगों से बचने के लिए हमें क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहियें। अगर हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखना है, तो हमारी जीवनशैली स्वस्थ होनी चाहिए – हमें शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त रहना चाहिए; हमें काम, आराम, और व्यायाम के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना चाहिए; हमें ऐसा भोजन करना चाहिए जो हमारे शरीर को पूरा पोषण दे सके; हमें ऐसी आदतें और चीज़ें छोड़ देनी चाहियें जो हमारे लिए हानिकारक हैं, जैसे कि सिग्रेट पीना, शराब पीना, या ड्रग्स लेना; हमें बीमारियों से बचने के लिए ज़रूरी कदम उठाने चाहियें। मुख्य बात है प्रकृति के नियमों का पालन करना, ताकि हम जाने-अनजाने अपने शरीर को कोई नुकसान न पहुँचा बैठें।

तनाव और रोग

व्यक्तिगत स्वास्थ्य का एक और पहलू भी है, जो पिछले कुछ ही सालों में सामने आया है। डॉक्टरों और मेडिकल शोधकर्ताओं ने पाया है कि तनाव हमारे स्वास्थ्य में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्हें पता चला है कि तनाव हमारे शरीर की रोग-प्रतिरोधी क्षमता को कमज़ोर बना देता है और अनेक बीमारियों के लिए द्वार खोल देता है। तनाव हमारे शरीर की उन प्रणालियों के कार्य में रुकावट डालता है जो बीमारियों से लड़ने का काम करती हैं। तनाव के कारण हमारे शरीर में “लड़ो या भागो” प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, जिससे कुछ जैव-रासायनिक परिवर्तन होते हैं। जब हम तनाव में होते हैं, तो हमारा दिल तेज़ी से धड़कने लगता है। कुछ हॉरमोन पैदा होते हैं, जो हमें अपनी सुरक्षा करने के लिए तैयार होने में मदद करते हैं। एक बार पैदा होने के बाद, ये हॉरमोन ख़त्म नहीं किए जा सकते।

एक प्रणाली जिसका मौलिक उद्देश्य था हमें शारीरिक ख़तरे से बचने में मदद करना, वो रोज़मर्रा के उन तनावों में भी सक्रिय हो जाती है जिनमें हमारी जान को वास्तव में कोई ख़तरा नहीं होता। इस प्रकार, जो समस्याएँ केवल हमारे मन से संबंधित होती हैं, किसी शारीरिक ख़तरे से नहीं, उनमें भी हमारे शरीर में से हॉरमोन पैदा हो जाते हैं। क्योंकि उस स्थिति में हमें लड़ने या भागने की ज़रूरत नहीं होती है, तो हमारे शरीर के पास अपने अंदर जमा तनाव को ख़त्म करने का कोई तरीका नहीं होता है, और हम दिन भर उसे अपने अंदर ही लिए घूमते रहते हैं। आख़िरकार, यह तनाव हमारे लिए अंदरूनी समस्याएँ पैदा करने लगता है, और हमारे शरीर के विभिन्न अंग उस तनाव को लेकर प्रतिक्रिया करने लगते हैं। इस तरह, ये जमा किया हुआ तनाव हमारे हृदय, हमारे फेफड़ों, हमारी रक्त-परिसंचरण प्रणाली, हमारे पाचन-तंत्र, हमारी त्वचा, और हमारे तंत्रिका-तंत्र पर असर डालने लगता है। साथ ही, हमें तनाव-संबंधी सिरदर्द, पेटदर्द, साँस की तकलीफ़, और घबराहट जैसे रोग हो सकते हैं।

शरीर का उपचार करने के लिए तनाव पर नियंत्रण

हम कुछ ख़ास बीमारियों, जो आनुवांशिक होती हैं या जो हवा से फैलती हैं, से शायद ख़ुद को बचा न सकते हों, लेकिन हम अपने व्यक्तिगत तनाव पर काफ़ी हद तक नियंत्रण कर सकते हैं। हमारे जीवन में तनाव को कम करने, या ख़त्म करने, के लिए कुछ तरीके मौजूद हैं। जब हम तनाव को ख़त्म करने की बात करते हैं, तो इसका मतलब समस्याओं का ख़त्म हो जाना नहीं है। समस्याएँ तो हमेशा रहेंगी। लेकिन हम इन समस्याओं के लिए होने वाली अस्वस्थ शारीरिक प्रतिक्रियाओं को अवश्य ख़त्म कर सकते हैं।

एक तकनीक है जिसे हम अपने जीवन में ढाल सकते हैं, और जिसे मैंने तनाव का सामना करने में व्यक्तिगत रूप से प्रभावशाली पाया है। वो तकनीक है ध्यानाभ्यास। ध्यानाभ्यास की कला सीखने से हमारे पास तनाव से रक्षा करने का एक साधन आ जाता है। कुंजी यह है कि हम समस्याओं का सामना ऐसे करें जिससे शरीर में हानिकारक प्रतिक्रियाएँ पैदा न हों। अगर हम ध्यानाभ्यास करना सीख लें, तो हम समस्याओं का सामना इस तरीके से कर पायेंगे कि हमारे शरीर की प्रणालियाँ अस्त-व्यस्त नहीं होंगी। ध्यानाभ्यास हमें एक ऐसा तरीका मुहैया कराता है जिससे हम अपनी प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण करना सीख लेते हैं।

मन का उपचार

जब हम मन का उपचार करने की बात करते हैं, तो हम समस्याओं को लेकर इसकी प्रतिक्रिया की बात करते हैं, जोकि हमारे विचारों और भावनाओं पर असर डालती है। हर दिन हमारी इंद्रियों पर चारों ओर से संवेदनाओं का आक्रमण होता रहता है। पाँचों इंद्रियों के ज़रिए आने वाले संदेश फिर हमारे मस्तिष्क तक पहुँचते हैं। कुछ संदेशों की प्रतिक्रिया हम शारीरिक रूप से देते हैं, तो कुछ की मानसिक या बौद्धिक रूप से। हम समस्याओं के बारे में सोचते हैं, निर्णय लेते हैं, योजना बनाते हैं, विश्लेषण करते हैं, रचना करते हैं, और फिर अपने विचार दूसरों तक पहुँचाते हैं।

कई बार ये मानसिक संदेश हमारे अंदर भय, व्यग्रता, तनाव, उलझन, अनिश्चितता, और अन्य कई भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ पैदा कर देते हैं। मानसिक तनाव और भावनात्मक पीड़ा हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। इससे संसार में हमारे रचनात्मक और प्रभावशाली होने की क्षमता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।

स्वस्थ मन के लिए ध्यानाभ्यास

ध्यानाभ्यास की विधि सीखने से हम उस तनाव और व्यग्रता में कमी ला सकते हैं जो मानसिक स्तर पर हमें घेरे रहती है। ध्यानाभ्यास हमें मानसिक तनाव को कम करने में और अपने मन को स्वस्थ करने में सहायता करता है। मन के स्वस्थ होने का अर्थ है कि हम जीवन की चुनौतियों का सामना शांत भाव से कर पाते हैं और उनसे परेशान, निराश, उदास, या भयभीत नहीं होते हैं।

मन के स्वस्थ होने का अर्थ है कि हम जीवन की समस्याओं को अपने भावनात्मक संतुलन को बिगाड़ने नहीं देते हैं। हम चीज़ों को आराम से स्वीकार करते हैं, प्रभावशाली ढंग से उनका सामना करते हैं, सबसे अच्छा समाधान ढूंढने का प्रयास करते हैं, और फिर आगे बढ़ जाते हैं। हम रोज़मर्रा के जीवन की परिस्थितियों से परेशान या पराजित नहीं हो जाते हैं। ध्यानाभ्यास में बैठने से हमारे अंदर वो शांति आ जाती है जो हमें समस्याओं का सामना करने के लिए चाहिए होती है। जितना अधिक हम ध्यानाभ्यास करते हैं, उतना ही हम दिन भर में किसी भी समय उस शांति और सामंजस्य का अनुभव कर पाते हैं।

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आत्मा का उपचार

हमारी आत्मा हर समय सच्चाई, आनंद, और प्रेम की अवस्था में रहती है। वो स्वाभाविक रूप से परिपूर्ण और स्वस्थ है। अस्वस्थ बात तो यह है कि हम अपनी आत्मा को भूल चुके हैं। हमारी सभी बीमारियों की असली जड़ यह है कि हम स्वयं को आत्मा के रूप में नहीं पहचानते हैं। इसके बजाय हम ख़ुद को मन और शरीर ही समझते रहते हैं; हम बाहरी संसार में इतना अधिक लिप्त हो चुके हैं कि अपने सच्चे स्वरूप को ही भूल चुके हैं, जोकि आत्मिक है।

अपनी असली स्वरूप, या आत्मा, से जुड़े न होने के कारण हमें पीड़ा होती है। यह पीड़ा एक लगातार रहने वाली बेचैनी के रूप में, एक लगातार रहने वाली तलाश के रूप में, व्यक्त होती है। हम बाहरी दुनिया में ही ख़ुशियों की तलाश करते रहते हैं, और अक्सर दुखी व निराश हो जाते हैं जब वो ख़ुशी हमें नहीं मिलती या मिलकर जल्द ही ख़त्म हो जाती है। हमें लगता तो है कि कुछ गायब है, कुछ खालीपन है, लेकिन हमें समझ नहीं आता कि वो क्या है। असल में हम जिस चीज़ की तलाश कर रहे हैं, वो पहले से ही हमारे अंदर मौजूद है। जो चीज़ हमें सदा-सदा की ख़ुशियाँ दे सकती है, वो है हमारी आत्मा। कुछ लोगों के लिए यह आंतरिक बेचैनी, जीवन के रहस्यों का हल जानने की बेचैनी बन जाती है।

ध्यानाभ्यास के द्वारा आध्यात्मिक जागृति

अपने आपको आत्मा के रूप में अनुभव करने के लिए, और एक पूर्ण इंसान बनने के लिए, एक आसान हल मौजूद है। अपनी आत्मा के साथ जुड़ने की यह तकनीक है ध्यानाभ्यास। ध्यानाभ्यास के अनेक लाभों में से सबसे बड़ा लाभ है कि ये हमें अपने असली स्वरूप के साथ, अपनी आत्मा के साथ, जोड़ देता है। ध्यानाभ्यास के दौरान हम पूरी तरह से स्थिर होकर, अपने ध्यान को बाहरी दुनिया के विचारों से, अपने शरीर से, और अपने मन से हटा लेते हैं।

जब हम मौन अवस्था में बैठते हैं, तो हम स्वयं को आत्मा के रूप में अनुभव कर पाते हैं। जब हम अपनी आत्मा के साथ जुड़ जाते हैं, तो हम ख़ुद के प्रति आध्यात्मिक रूप से जागृत हो जाते हैं। हमें उन सवालों के जवाब मिल जाते हैं जो ज़िंदगी भर हमें परेशान किए हुए थे। हम समझ जाते हैं कि हम इस शरीर और मन के अलावा भी कुछ हैं; हम आत्मा हैं, और ऐसे अनमोल रूहानी ख़ज़ानों से भरपूर हैं जैसे हम बाहरी दुनिया में कभी भी नहीं पा सकते हैं। हम प्रेम, शांति, और अनंत ख़ुशियों से भरपूर हो जाते हैं। एक पूरी नई दुनिया हमारे सामने खुल जाती है।

विश्व का उपचार

विश्व को उपचार की बेहद आवश्यकता है। हमें अपने ग्रह के पर्यावरण का उपचार करने की आवश्यकता है, ताकि हमें स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी मिल सके, तथा सभी प्रकार के जीवों की रक्षा हो सके। हमें अपने स्रोतों का समझदारी से इस्तेमाल करने की आवश्यकता है, ताकि सभी को पर्याप्त मिल सके। हमें भूख से तड़प रहे लोगों का उपचार करने की आवश्यकता है, और उनका भी जिनके पास घर नहीं है, दवाई नहीं है, शिक्षा नहीं है, और सामान्य मानव अधिकार भी नहीं हैं। विश्व के अलग-अलग भागों में कई समूह सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, ताकि हमारे ग्रह का उपचार हो सके। लोगों के दिलों और समझ को बदलना बहुत ही बड़ा कार्य है।

रोशनी बनें

मैं आपके सामने एक ऐसा समाधान रखना चाहता हूँ जो परिणाम अवश्य देगा – हम में से हरेक अपना उपचार करे। यदि हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने शरीर, मन, और आत्मा का उपचार कर सकें, तो हम विश्व की जनसंख्या में एक और परिपूर्ण इंसान जोड़ पायेंगे। अगर हम में से हरेक ऐसा करेगा, तो हमें जल्द ही इसके परिणाम देखने को मिल जायेंगे। हम इस बात पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं कि दूसरे क्या कर रहे हैं; हम केवल इस बात पर नियंत्रण कर सकते हैं कि हम ख़ुद क्या करते हैं। अगर हम ऐसे इंसान बन जायें जो शरीर से, मन से, और आत्मा से स्वस्थ है, तो दूसरे भी इस परिवर्तन को अनुभव करेंगे। हमारे कार्यस्थल के लोग, हमारे समुदाय के लोग, या हमारे अपने परिवार के लोग, हमारे अंदर आए परिवर्तन को देखकर प्रभावित होंगे। हमारी शांति, सामंजस्य, और ख़ुशी देखकर वो भी उसे पाना चाहेंगे जो हमें मिला है। वो ये जानना चाहेंगे कि हमें ये ख़ज़ाने कहाँ से मिले हैं। इस प्रकार, अपनी रोशनी से हम उन्हें भी रोशन कर देंगे। लेकिन हम दूसरों को केवल खोखले शब्दों से रोशन नहीं कर सकते। वो अपने अंदर का दीया जलाने के लिए तभी प्रेरित होंगे जब वो हमारे दीये को तेज़ रोशनी से जलता हुआ देखेंगे।

बैन्जामिन फ्ऱैंकलिन ने जब सड़क पर लगाए जाने वाले बिजली के बल्ब की खोज की, तो उन्होंने पाया कि कोई भी व्यक्ति उसे अपने घर के बाहर लगाकर देखने के लिए राज़ी नहीं हुआ। तब दूसरों को उसके लाभों के बारे में यकीन दिलाने के बजाय, उन्होंने ख़ुद अपने घर के बाहर सड़क पर बिजली का बल्ब लगा लिया। थोड़े ही समय में, उनके इलाके में सभी ने अपने-अपने घरों के बाहर वो बिजली के बल्ब लगवा लिए। और आज देखिए, पूरी दुनिया में सड़कों पर कितने ही बल्ब रोशनी देने के लिए लगे हुए हैं।

ध्यानाभ्यास के द्वारा हम अपना ख़ुद का बल्ब जला सकते हैं। फिर उसकी रोशनी दूसरों तक भी फैलेगी, और इस तरह पूरे विश्व के प्रकाशमान होने की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी। अपना उपचार करने से हम पूरे विश्व के उपचार में तेज़ी ले आयेंगे। आइए, हम अपने अंदर की शांति और आनंद के साथ जुड़ जायें ताकि हमारी पीड़ाओं और घावों का उपचार हो सके, तथा हम संपूर्ण विश्व के उपचार में अपना योगदान दे सकें।

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आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई

जब हम अपने विचारों को साफ़ करने की ओर ध्यान देते हैं, तो हमें देखना होता है कि हम अपने कौन-कौन से पहलुओं की सफ़ाई करना चाहते हैं। हमें यह समझना होता है कि हमारे मन और हृदय में कौन-कौन सी चीज़ें ग़ैर-ज़रूरी हैं और हमें प्रभु के प्रेम को अनुभव करने से रोक रही हैं।

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क्रोध पर काबू पाना

हमारे मन की शांति को सबसे बड़ा ख़तरा क्रोध से होता है। कार्यस्थल पर, हम पाते हैं कि हमें अक्सर अपने बॉस, अपने सहकर्मियों, या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर गुस्सा आता रहता है। मुश्किल से ऐसा एक भी दिन गुज़रता होगा जब कार्यस्थल पर कोई व्यक्ति या कोई चीज़ हमारे मन की शांति को भंग नहीं करती है। हम देखते हैं कि घर में भी हमारी प्रतिक्रियाएँ अक्सर क्रोधपूर्ण होती हैं।

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ध्यानाभ्यास के द्वारा क्रोध और तनाव पर काबू कैसे पायें

क्रोध और तनाव आज हमारे जीवन के नाटक में अनचाहे किरदारों की तरह जगह बना चुके हैं। यहाँ कुछ व्यवहारिक तरीके दिए गए हैं जिनका इस्तेमाल कर हम इन पर काबू पा सकते हैं।

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तनावमुक्त जीवन

हमारा रोज़मर्रा का जीवन समस्याओं से भरा पड़ा है। जैसे ही एक समस्या सुलझती है, वैसे ही दूसरी सामने खड़ी हो जाती है। जीवन के दबाव इतने अधिक हो चुके हैं कि वो हम पर शारीरिक व मानसिक, दोनों रूप से प्रभाव डालते हैं। इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं है कि आज लोग अत्यधिक तनाव और दबाव के बोझ तले जी रहे हैं। तो क्या कोई ऐसा तरीका है जिस से हम तनावमुक्त जीवन बिता सकें?

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