ध्यानाभ्यास आपसी सहयोग को बढ़ाता है
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
दूसरों के साथ मिलकर काम करने को लेकर दो विचारधारायें हैं। पहली विचारधारा कहती है कि अगर आपको कोई कार्य करना है, तो आप स्वयं उसे करिए और अकेले ही करिए। दूसरी विचारधारा कहती है कि दूसरों के साथ मिलकर काम करना ज़रूरी है। जैसे-जैसे आधुनिक जीवन अधिक जटिल होता जा रहा है, एक-दूसरे पर निर्भर करना हमारी आवश्यकता बन चुका है। सब चीज़ों को सही ढंग से चलाने के लिए आपसी सहयोग बेहद ज़रूरी है।
जब हम इस संसार में आपसी सहयोग की बात करते हैं, तो यह काफ़ी नहीं है कि हम दूसरों को सहयोग करने की सलाह देते फिरें; हमें स्वयं इसे अपने जीवन में ढालना होगा, तभी हमारे शब्दों का दूसरों पर असर होगा।
सभी का सम्मान करें
हम आपसी सहयोग से भरपूर जीवन कैसे जी सकते हैं? इसके लिए पहला क़दम है यह सुनिश्चित करना कि हमारे दिल में उनके लिए कोई घृणा या पक्षपात की भावना न हो जो किसी भी मायने में हमसे अलग हैं। हमारे दिल में विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों के लिए सम्मान का भाव होना चाहिए। हमें पक्षपात और भेदभाव को अपने दिलो-दिमाग़ से मिटा देना चाहिए। कहा जाता है कि जो हमारे दिल में होता है, वही हमारी ज़ुबान पर होता है। यदि हम किसी से नफ़रत करते हैं, तो हम ज़्यादा देर तक उसे छुपा नहीं पाते हैं; वो या तो हमारे होंठों से बाहर निकल आती है या हमारे चेहरे पर दिख जाती है। हमारे कार्य, हमारे शब्दों से भी ऊँचा बोलते हैं। तो इस तरह, दूसरों के साथ सहयोग करने की शुरुआत होती है अपने दिल से अन्य लोगों के प्रति बैर-भाव को मिटाने से।
जब हम अपने दिल से दूसरों के लिए समस्त घृणा और पक्षपात साफ़ कर लेते हैं, तो फिर वहाँ अच्छाई को रहने की जगह मिल जाती है। अपने दिलो-दिमाग़ से दूसरों के प्रति नकारात्मक विचारों को मिटा देने से उसमें दया का प्रवेश हो जाता है।
दूसरों की सराहना करें
आपसी सहयोग के लिए दूसरा क़दम यह है कि हम अपने शब्दों के द्वारा दूसरों के प्रति सराहना व सहनशीलता व्यक्त करें। हमें अपने शब्दों की ओर ध्यान देना चाहिए, ताकि हम ग़लती से भी किसी का दिल न दुखायें। क्या हमारे शब्द लोगों को एक-दूसरे से दूर करते हैं, या उन्हें आपस में जोड़ते हैं?
प्रेम व सहानुभूति से भरे शब्द लोगों के दिलों को आराम पहुंचाते हैं और उन्हें आपस में जोड़ते हैं। हम प्यार और मिठास से भरपूर बोली बोलने को अपना आदर्श बना सकते हैं। हम हरेक परिस्थिति में दूसरों के लिए प्रेम, सहनशीलता, व सौहार्द का उदाहरण बन सकते हैं। समय के साथ-साथ, दूसरे भी हमारे उदाहरण से सीख लेकर उसी तरीके से बोलना शुरू कर देंगे।
ऐसे कार्य करें जो लोगों को साथ लायें
तीसरा क़दम है अपने कार्यों के द्वारा आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
हर दिन हमारे पास चुनने की आज़ादी होती है। क्या हम ऐसे कार्य करेंगे जो लोगों को एक-दूसरे से अलग कर देंगे, या ऐसे कार्य करेंगे जो लोगों को एक-दूसरे के साथ लायेंगे? अपने कार्यस्थल में, हमें अक्सर कमेटियों या समितियों का सदस्य बनना पड़ता है, या नीति-संबंधी निर्णयों में अपना मत देना पड़ता है। क्या हम ऐसी नीतियों का समर्थन करते हैं जो लोगों के प्रति प्रेम व सहनशीलता दर्शाती हैं, या जो पक्षपात, भेदभाव, और कट्टरता को बढ़ावा देती हैं?
हर मौक़े पर हमें अपने साथ काम करने वाले लोगों को प्रेरित करना चाहिए कि वे ऐसे निर्णय लें और ऐसे कार्य करें जिनसे आपसी सहयोग को बढ़ावा मिले। हमारे घरों में, बच्चे अक्सर वही कार्य करते हैं जो वे अपने माता-पिता को करता हुआ देखते हैं। यदि वे देखते हैं कि उनके माँ-बाप अपनी बाँहें खोलकर हरेक को गले लगाते हैं, चाहे वो लोग उनसे कितने ही अलग क्यों न हों, तब वे भी बड़े होकर ऐसा ही करते हैं।
अगर हमारे विश्व में आपसी सहयोग की भावना को फलना-फूलना है, तो आवश्यक है कि विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोग उन सभी लोगों के प्रति सम्मान व सहनशीलता का भाव रखें जो उनसे किसी भी मायने में अलग हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा आपसी सहयोग को बढ़ावा दें
आपसी सहयोग को अपने दिलों में स्थान देने के लिए जो सबसे कारगर तरीका मैंने पाया है, वो ध्यानाभ्यास है। रोज़ाना कुछ देर मौन ध्यानाभ्यास में समय बिताने से हम अपने भीतर मौजूद शांति-स्थल के संपर्क में आ जाते हैं, जो सहयोग को बढ़ावा देता है। ध्यानाभ्यास में बिताए गए क्षण परमानंद, शांति, व प्रेम से भरपूर होते हैं।
जब हम अपने ह्रदय के अंदरूनी कक्ष में प्रवेश करते हैं, तो हम अपने भीतर प्रकाश पाते हैं। तब हम जान जाते हैं कि जो प्रकाश हमारे अंदर है, वही प्रकाश अन्य सभी इंसानों के अंदर भी है। फिर हम उस प्रकाश को दूसरों के अंदर देखने भी लगते हैं। तब हमें दूसरों से अलग करने वाले सभी बाहरी फ़र्क मिटने लग जाते हैं। हम सामने वाले के बालों का रंग, आँखों का रंग, या त्वचा का रंग देखना बंद कर देते हैं। हम यह देखना बंद कर देते हैं कि लोग कैसे कपड़े पहनते हैं या किस तरीके से बात करते हैं। इसके बजाय, हम एक ही रोशनी को अलग-अलग रूपों में देखना शुरू कर देते हैं, और पाते हैं कि हर रूप अपने आप में बेहद ख़ूबसूरत है।
जिस तरह बिजली अलग-अलग आकार के बल्बों और लैम्पों से प्रकाशित होकर भी वही बिजली रहती है, उसी तरह हमारे अंदर का प्रकाश भी अलग-अलग इंसानी रूपों, तथा अलग-अलग पशुओं, मछलियों, पक्षियों, और कीड़े-मकौड़ों के रूप में प्रकट होकर भी वही प्रकाश रहता है। हम देखने लगते हैं कि समस्त जीवन वास्तव में एक ही है।
हम जान जाते हैं कि हम सभी महत्वपूर्ण हैं, और जब हम आपसी सहयोग से काम करते हैं, तो सभी चीज़ें बढ़िया तरीके से चलती हैं। तब हम समझ जाते हैं कि हम सभी एक ही पहिए के भाग हैं, और यह कि किसी भी चीज़ के सुचारू रूप से काम करने के लिए आपसी सहयोग का होना बहुत ज़रूरी है।
ध्यानाभ्यास में बैठने से हम आपसी सहयोग की अपनी समझ को और अधिक बढ़ा सकते हैं। तब हम अपने आसपास के लोगों को भी अपने उदाहरण द्वारा प्रेरित कर सकते हैं।
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आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई
जब हम अपने विचारों को साफ़ करने की ओर ध्यान देते हैं, तो हमें देखना होता है कि हम अपने कौन-कौन से पहलुओं की सफ़ाई करना चाहते हैं। हमें यह समझना होता है कि हमारे मन और हृदय में कौन-कौन सी चीज़ें ग़ैर-ज़रूरी हैं और हमें प्रभु के प्रेम को अनुभव करने से रोक रही हैं।
अपना उपचार करना और विश्व का उपचार करना
मैं आपके सामने एक ऐसा समाधान रखना चाहता हूँ जो परिणाम अवश्य देगा – हम में से हरेक अपना उपचार करे। यदि हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने शरीर, मन, और आत्मा का उपचार कर सकें, तो हम विश्व की जनसंख्या में एक और परिपूर्ण इंसान जोड़ पायेंगे।
क्रोध पर काबू पाना
हमारे मन की शांति को सबसे बड़ा ख़तरा क्रोध से होता है। कार्यस्थल पर, हम पाते हैं कि हमें अक्सर अपने बॉस, अपने सहकर्मियों, या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर गुस्सा आता रहता है। मुश्किल से ऐसा एक भी दिन गुज़रता होगा जब कार्यस्थल पर कोई व्यक्ति या कोई चीज़ हमारे मन की शांति को भंग नहीं करती है। हम देखते हैं कि घर में भी हमारी प्रतिक्रियाएँ अक्सर क्रोधपूर्ण होती हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा क्रोध और तनाव पर काबू कैसे पायें
क्रोध और तनाव आज हमारे जीवन के नाटक में अनचाहे किरदारों की तरह जगह बना चुके हैं। यहाँ कुछ व्यवहारिक तरीके दिए गए हैं जिनका इस्तेमाल कर हम इन पर काबू पा सकते हैं।