बास्केटबॉल कौशल को
ध्यानाभ्यास में इस्तेमाल करना
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
जहाँ अधिकतर उत्तरी अमेरिका इस महीने “मार्च मैडनस” नामक कॉलेज खेल प्रतियोगिता का आनंद लेता है, वहीं आइए हम देखें कि ध्यानाभ्यास और बास्केटबॉल में कौन-कौन सी बातें एक समान हैं। बास्केटबॉल में जीतने का कौशल, ध्यानाभ्यास में पारंगत होने में किस प्रकार हमारी सहायता कर सकता है? संत राजिन्दर सिंह जी महाराज यहाँ समझा रहे हैं।
पूरे विश्व के लोगों में विभिन्न खेल बहुत ही प्रसिद्ध हैं। कई लोग बेसबॉल, फुटबॉल, बास्केटबॉल, गोल्फ़, सॉकर, टेनिस, और क्रिकेट जैसे खेल देखते और खेलते हैं। इन सभी खेलों में एक बात समान है। इन सभी में किसी न किसी तरह की गेंद का प्रयोग अवश्य होता है। विभिन्न खेल बहुत ही लोकप्रिय शगल हैं, और लाखों लोग अपनी पसंदीदा टीम या खिलाड़ी के जीतने की आशा में बहुत सारा समय और ध्यान लगा देते हैं।
खेलों के प्रतियोगी स्वभाव के कारण, खिलाड़ियों को अपना पूरा जीवन जीतने के प्रयास में समर्पित कर देना पड़ता है। उन्हें प्रतिदिन कई घंटे अपने खेल का अभ्यास करना पड़ता है, स्वयं को फ़िट रखना पड़ता है, और स्वास्थ्यवर्धक भोजन खाना पड़ता है। इतना सब करने के बाद भी, जीत अक्सर एक ही कौशल पर निर्भर करती है। वो कौशल है : अपनी आँखें गेंद या बॉल पर जमाए रखना।
आइए बास्केटबॉल को करीबी से देखें
यदि हम बास्केटबॉल की ओर देखें, तो पायेंगे कि उसका लक्ष्य है बॉल को बास्केट में डालना। बॉल एक खिलाड़ी से दूसरे खिलाड़ी के पास जाती रहती है जब तक कोई उसे बास्केट में डाल नहीं देता। ऐसे में ज़रूरी है कि खिलाड़ी हर वक़्त बॉल पर नज़रें गड़ाए रहें ताकि उसके नज़दीक आते ही उसे कब्ज़े में ले सकें। खिलाड़ियों को अक्सर दौड़ते, भागते, दूसरे खिलाड़ियों से टकराते हुए ही बॉल को बास्केट में डालना पड़ता है। साथ ही, जिस टीम के पास बॉल नहीं होती, उसके खिलाड़ी हर समय दूसरी टीम के खिलाड़ियों से बॉल छीनने की कोशिशों में लगे रहते हैं। बास्केटबॉल में चाहे खिलाड़ी के पास बॉल हो या वो उसे पाने की कोशिश कर रहा हो, उसकी नज़रें हर वक़्त बॉल पर ही जमी रहती हैं। बॉल से नज़र न हटाने का यह कौशल दूसरे बॉल-संबंधी खेलों में भी ज़रूरी होता है, जैसे गोल्फ़, बेसबॉल, सॉकर, और क्रिकेट।
अध्यात्म के मैदान में हमारा लक्ष्य
बॉल पर नज़रें टिकाए रखने का यह कौशल अध्यात्म के मैदान में भी हमारे काम आता है, जिसमें हमारा लक्ष्य होता है अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करवाना। अध्यात्म में, हमें अपनी अंदरूनी आँख को बॉल पर टिकाए रखना होता है, और यह बॉल होती है ध्यानाभ्यास के दौरान अंतर में हमें दिखने वाली प्रभु की ज्योति।
ध्यानाभ्यास के लिए एकाग्रता की ज़रूरत होती है। इसका अर्थ है अपने शरीर को बिल्कुल स्थिर करके बैठना, जिस तरह खिलाड़ी अपने शरीर को उस स्थिति में रखते हैं जिसमें वो बॉल को पकड़ सकें। हमें भी आंतरिक बॉल के साथ जुड़ना है, इसीलिए हमारे शरीर का स्थिर होना ज़रूरी है, नहीं तो हमारी एकाग्रता भंग हो जाएगी।
आंतरिक ज्योति रूपी बॉल पर अपनी अंदरूनी आँख टिकाए रखने के लिए, हमें अपने मन को भी स्थिर रखना होगा। कोई भी विचार आने से तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो हमारी अंदरूनी आँख को ज्योति रूपी बॉल से हटा देती हैं।
बास्केटबॉल की तरह ही, समय और नियमित अभ्यास की मदद से हम बेहतर तरीके से एकाग्र होने लगेंगे, और ध्यानाभ्यास के दौरान आंतरिक ज्योति रूपी बॉल पर ही नज़रें टिकाए रहेंगे।
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आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई
जब हम अपने विचारों को साफ़ करने की ओर ध्यान देते हैं, तो हमें देखना होता है कि हम अपने कौन-कौन से पहलुओं की सफ़ाई करना चाहते हैं। हमें यह समझना होता है कि हमारे मन और हृदय में कौन-कौन सी चीज़ें ग़ैर-ज़रूरी हैं और हमें प्रभु के प्रेम को अनुभव करने से रोक रही हैं।
अपना उपचार करना और विश्व का उपचार करना
मैं आपके सामने एक ऐसा समाधान रखना चाहता हूँ जो परिणाम अवश्य देगा – हम में से हरेक अपना उपचार करे। यदि हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने शरीर, मन, और आत्मा का उपचार कर सकें, तो हम विश्व की जनसंख्या में एक और परिपूर्ण इंसान जोड़ पायेंगे।
क्रोध पर काबू पाना
हमारे मन की शांति को सबसे बड़ा ख़तरा क्रोध से होता है। कार्यस्थल पर, हम पाते हैं कि हमें अक्सर अपने बॉस, अपने सहकर्मियों, या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर गुस्सा आता रहता है। मुश्किल से ऐसा एक भी दिन गुज़रता होगा जब कार्यस्थल पर कोई व्यक्ति या कोई चीज़ हमारे मन की शांति को भंग नहीं करती है। हम देखते हैं कि घर में भी हमारी प्रतिक्रियाएँ अक्सर क्रोधपूर्ण होती हैं।
ध्यानाभ्यास के द्वारा क्रोध और तनाव पर काबू कैसे पायें
क्रोध और तनाव आज हमारे जीवन के नाटक में अनचाहे किरदारों की तरह जगह बना चुके हैं। यहाँ कुछ व्यवहारिक तरीके दिए गए हैं जिनका इस्तेमाल कर हम इन पर काबू पा सकते हैं।