शाकाहार और अध्यात्म

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

जो लोग अपने स्वास्थ्य को बेहतर करना चाहते हैं, उनके लिए यह जान लेना आवश्यक है कि आज अनेकों डॉक्टरों द्वारा शाकाहार को बढ़ावा दिया जा रहा है, जो बताते हैं कि शाकाहार से हमारे शरीर को अधिकतम पोषण मिलता है, तथा साथ ही माँसाहारी भोजन से होने वाली कई बीमारियों से भी बचाव हो जाता है। जब हम शाकाहारी भोजन के बारे में सोचते हैं, तो ज़्यादातर लोग इसके स्वास्थ्य-संबंधी लाभों की ओर ही ध्यान देते हैं।

Image of cooking vegetarian pasta sauce

वो सीखते हैं कि कौन-कौन से अलग-अलग प्रकार के शाकाहारी व्यंजन बनाए जा सकते हैं; वो पोषण-संबंधी कक्षाएँ लेते हैं, यह सीखने के लिए कि शाकाहारी खाद्य-पदार्थों का इस्तेमाल करते हुए एक संतुलित आहार कैसे लिया जा सकता है, तथा यह सीखने के लिए कि हम माँस के बजाय सोयाबीन, मेवे, और बीन्स जैसे खाद्य-पदार्थों से प्रोटीन कैसे प्राप्त कर सकते हैं।

लेकिन शाकाहार के अन्य पहलू भी उतने ही अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ-साथ हम जो खाते हैं, उसका हमारे आत्मिक पहलू के साथ भी गहरा संबंध होता है।

अपने अंदरूनी सार-तत्त्व के साथ जुड़ना

अध्यात्म का संबंध केवल अपने आत्मिक पहलू को जानने से ही नहीं है, बल्कि सृष्टि के समस्त प्राणियों के लिए प्रेम और करुणा रखने से भी है। अध्यात्म हमें हमारे सच्चे स्वरूप के करीब ले आता है, जोकि आत्मिक है, प्रभु के साथ एकमेक है।

क्योंकि प्रभु ने इस संपूर्ण सृष्टि की, इस पृथ्वी की, और इस पर मौजूद सभी जीवों की, रचना की है, इसीलिए हमारे लिए यह स्वाभाविक है कि हम प्रभु की बनाई रचना को नष्ट करने के बजाय उसका सम्मान करें। जो लोग वास्तव में प्रभु के साथ जुड़े हुए होते हैं, वो सभी जीवों के लिए प्रेम महसूस करते हैं, चाहे वो जीव बड़े हों या छोटे। वो सभी इंसानों में और जीवित प्राणियों में प्रभु के प्रकाश को जगमगाता हुआ देखते हैं।

यह प्रकाश जितना एक ताकतवर शेर में होता है, उतना ही एक छोटी सी चींटी में भी। वो साँप में भी चमकता है और गाय में भी। वो मछलियों में भी जगमगाता है और पक्षियों में भी। जब हम जीवन को आत्मा की आँखों से देखते हैं, तो हम छोटे से छोटे और भद्दे से भद्दे जीव में भी प्रभु को देख पाते हैं। ऐसा दृष्टिकोण रखने से, हम हरेक जीवित चीज़ से प्रेम करने लगते हैं।

जब हम जीवन को आत्मा की चेतनता के द्वारा देखते हैं, तो हम अधिक नर्मी से जीवन जीने लगते हैं और सभी प्रकार के जीवों का सम्मान करने लगते हैं। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से अपने आत्मिक पहलू से जुड़े हुए लोग शाकाहारी भोजन को अपना लेते हैं। उन्हें लगता है कि प्रभु ने पेड़-पौधों के रूप में उन्हें खाने के लिए पर्याप्त सामग्री दी है, और इसीलिए भोजन के लिए किसी जीव की हत्या करना ज़रूरी नहीं है।

ऐसा आहार जो ध्यानाभ्यास का पूरक है

शाकाहार वास्तव में ध्यानाभ्यास का पूरक है। शाकाहार सबसे ज़्यादा करुणामयी आहार है, क्योंकि इसमें जीवन का सबसे कम नुकसान होता है। जो लोग ध्यानाभ्यास में जल्द से जल्द तरक्की करना चाहते हैं, उनके लिए शाकाहार अपनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है।

अनेक महान् दार्शनिक, कलाकार, कवि, लेखक, और अन्य जागृत पुरुष शाकाहारी रहे हैं।

महान् कलाकार, लियोनार्डो डा विंची, एक शाकाहारी थे और करुणा से भरपूर थे। जब भी वो किसी पक्षी को पिंजरे में देखते थे, तो वो उसके मालिक को पैसे देकर पक्षी और पिंजरा ख़रीद लेते थे। फिर वो पिंजरे का दरवाज़ा खोलकर उस पक्षी को आज़ादी की उड़ान भरते देखकर ख़ुश होते थे।

सर आइज़ैक न्यूटन, महात्मा गांधी, और एल्बर्ट श्वाइट्ज़र ऐसे महान् दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, मानवतावादियों, और वैश्विक नेताओं के कुछ उदाहरण हैं, जिन्होंने दूसरों को भी समस्त जीवों के प्रति अहिंसा का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।

हम अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं

जागृत पुरुष हमें समझाते आए हैं कि पशुओं में भी चेतनता या आत्मा होती है, जिसकी वजह से वो भी प्रभु का अंश होते हैं। इस प्रकार, शाकाहार का आध्यात्मिक आधार यह है कि हमें किसी भी प्राणी की जान नहीं लेनी चाहिए, किसी भी जीव को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। यदि हम प्रभु को पाना चाहते हैं, तो हमें प्रभु के बनाए सभी जीवों के प्रति प्रेम और करुणा से पेश आना होगा। इसीलिए शाकाहार, आध्यात्मिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।

शाकाहार ध्यानाभ्यास में तरक्की करने में मदद करता है

जो लोग ध्यानाभ्यास में तरक्की करना चाहते हैं, आध्यात्मिक रूप से विकसित होना चाहते हैं, उनके लिए शाकाहार का एक अन्य लाभ भी है। जो लोग अपनी आत्मा का, अपने आंतरिक पहलू का, अनुभव करना चाहते हैं, वो ऐसा ध्यानाभ्यास के द्वारा कर सकते हैं, जिसमें शाकाहार भी सहायक सिद्ध होता है।

ध्यानाभ्यास में स्थिरता की ज़रूरत होती है। हमारा ध्यान अक्सर बाहरी दुनिया के दृश्यों, आवाज़ों, गंधों, स्वादों, और अनुभूतियों की ओर ही लगा रहता है, और इसीलिए हम अपने अंदर मौजूद रूहानी ख़ज़ानों का अनुभव नहीं कर पाते। इसके लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है।

ध्यानाभ्यास में एकाग्र होने के लिए, हमारा शांत और हलचल-रहित होना ज़रूरी है। तो मरे हुए पशुओं का माँस न खाने से हमें क्या लाभ होता है? एक लाभ तो यह होता है कि ऐसा भोजन न खाने से हमारी चेतनता में बढ़ोतरी होती है। हम जानते हैं कि हॉरमोनों का हमारे शरीर पर क्या असर होता है। ज़रा सोचिए कि जब वो पशु, पक्षी, या मछलियाँ भोजन के लिए मारे या काटे जा रहे होते हैं, तो उनके शरीर में कितने सारे तनाव-संबंधी हॉरमोन पैदा होते हैं, और उनका माँस खाने से वो सभी नुकसानदायी हॉरमोन हमारे शरीर में भी आ जाते हैं! उन्हें खाने से वो हमारा ही अंग बन जाते हैं। जो भोजन हम खाते हैं, वो न केवल हमारे शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक स्वास्थ्य पर असर डालता है, बल्कि हमारी आत्मिक चेतनता को भी प्रभावित करता है।

अगर हम अहिंसा और करुणा का जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं, अगर हम अधिक शांत और हलचल-रहित होना चाहते हैं, अगर हम अंतर में मौजूद रूहानी ख़ज़ानों का अनुभव करने के लिए अपने मन को स्थिर करना चाहते हैं, तो स्वाभाविक है कि हम ऐसा आहार ग्रहण करना चाहेंगे जो हमें अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सहायता करे।

जब रोमन कवि, सेनेका, को पाइथागोरस की शिक्षाओं के बारे में पता चला, तो वो शाकाहारी बन गए। उन्हें यह परिवर्तन बहुत सुखद लगा और उन्होंने आश्चर्यचकित होकर कहा कि उनका “मन पहले से अधिक सजग और अधिक जागृत हो गया है।”

महान् भौतिकशास्त्री, एल्बर्ट आइन्स्टीन, ने कहा है, “मानव स्वास्थ्य को और कोई चीज़ इतना अधिक लाभ नहीं पहुँचा सकती, और न ही धरती पर जीवन के कायम रहने की संभावना में कोई चीज़ इतनी बढ़ोतरी कर सकती है, जितना कि शाकाहार।”

जो लोग आध्यात्मिक विकास करना चाहते हैं, तथा अहिंसा व समस्त जीवों के प्रति प्रेम से भरपूर जीवन बिताना चाहते हैं, तो इसमें शाकाहार उनकी सहायता कर सकता है। ऐसा करने से, हम न केवल दूसरे इंसानों के प्रति और प्रभु की बनाई सृष्टि के छोटे सदस्यों के प्रति करुणा दर्शाते हैं, बल्कि स्वयं अपने ऊपर भी दया करते हैं।

और अधिक जानना चाहेंगे?

शाकाहार क्यों?

जो आहार हम चुनते हैं, वो हमारे स्वास्थ्य के सभी पहलुओं को और हमारे पर्यावरण को प्रभावित करता है। अलग-अलग पृष्ठभूमियों और संस्कृतियों के लोग शाकाहार को अपना रहे हैं, और आज शाकाहार काफ़ी प्रसिद्धि पा चुका है। यहाँ तक कि कई लोग कहते हैं कि अब हमें दूसरों से यह नहीं पूछना चाहिए कि “क्या आप शाकाहारी या वीगन (जो लोग पशु-उत्पादों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करते, जैसे दूध या दूध से बनी चीज़ें) हैं?”, बल्कि यह पूछना चाहिए कि “आप क्यों नहीं हैं?”

आगे पढ़िए

शाकाहारी होने के लाभ

एक कहावत है, “जैसा आप खाते हैं, वैसे ही आप बन जाते हैं”। पूर्वी देशों में, जहाँ हज़ारों सालों से शाकाहार ही प्रमुख भोजन रहा है, वहाँ लोग यह जानते हैं कि जो कुछ भी हम खाते हैं, वो हमारे शरीर का हिस्सा बन जाता है और हमारे विचारों पर भी प्रभाव डालता है।

आगे पढ़िए

एक स्वस्थ जीवनशैली के उपाय

हम में से हरेक के पास यह शक्ति है कि एक स्वस्थ जीवन का निर्माण कर सके। जो चुनाव हम आज करते हैं, वो कल हमारे शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। तो आज जो हम करेंगे, वो महीनों या सालों बाद, भविष्य की हमारी सेहत को प्रभावित करेगा।

आगे पढ़िए