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चिंता से मुक्ति पायें

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

मैं आप सभी को फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई (चार जुलाई को मनाया जाने वाला अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस) की बधाई देता हूँ, जिस दिन कई लोग अपने देश की आज़ादी की ख़ुशी मनाते हैं। विश्व के अनेक देश अपने-अपने स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। यूनाइटेड स्टेट्स में इस अवसर को बड़ी धूमधाम से, पटाख़ों, परेड, और पिकनिक के साथ मनाया जाता है।

Bright radiant fireworks

इस दिन के अधिकतर कार्यक्रम बाहर खुले में, आँगन में, पार्क में, या सड़कों पर मनाए जाते हैं। इस समय लोगों की ज़्यादातर रूचि मौसम की जानकारी पाने में होती है, चाहे टीवी पर, या रेडियो या इंटरनेट पर। उन्हें यही चिंता होती है कि मौसम ज़्यादा गर्म तो नहीं होगा, या बारिश और तूफ़ान उनके कार्यक्रम पर पानी तो नहीं फेर देंगे। कार्यक्रमों की तैयारी के दौरान ज़्यादातर लोग ख़राब मौसम के बारे में चिंता करते रहते हैं। कुछ स्थानों में तो बवंडर और आंधी-तूफ़ान के कारण कार्यक्रम के तहस-नहस होने का ख़तरा बना रहता है। जीवन में अपने भविष्य के बारे में, या आगे आने वाली घटनाओं के बारे में, चिंता करना स्वाभाविक ही है।

चिंता से तनाव कैसे उत्पन्न होता है

पिछले कुछ सालों से चिंता के हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर डॉक्टरों, शोधकर्ताओं, और मनोवैज्ञानिकों में रूचि बहुत बढ़ गई है। चिंता, तनाव के कारणों में से एक प्रमुख कारण है, जिससे फिर तनाव-संबंधी रोगों का जन्म होता है। मज़ेदार बात यह है कि अंग्रेज़ी शब्द ‘वरी’ (जिसका अर्थ होता है ‘चिंता’) का मौलिक अर्थ था ‘गला दबाना’ या ‘गला घोंटना’। जब हम ‘वरी’ शब्द के मौलिक अर्थ की ओर देखते हैं, तो हम पाते हैं कि यह बिल्कुल सटीक बताता है कि चिंता हम पर क्या प्रभाव डालती है।

जब हमारा गला घोंटा जाता है, तो हम साँस नहीं ले पाते हैं। हम हवा को अंदर नहीं ले पाते और जीवन के लिए संघर्ष करने लगते हैं। हालाँकि हम शायद चिंता को गला दबाने के साथ जोड़कर नहीं देखते, लेकिन अगर हम इस बारे में ध्यान से सोचें, तो पायेंगे कि चिंता से वास्तव में हमारा जीवन घुटकर रह जाता है। हमें इसके शारीरिक दुष्प्रभाव उसी समय देखने को नहीं मिलते, लेकिन धीरे-धीरे, समय के साथ-साथ, हमारे शरीर में कोई न कोई ख़राबी पैदा हो जाती है। तनाव से उन हॉर्मोनों का जन्म होता है जो असल में हमें ख़तरे से बचाने के लिए उत्पन्न होने चाहियें। ये हॉर्मोन हमें लड़ने या भागने के लिए प्रेरित करते हैं। इन हॉर्मोनों से हमारी बाँहों और टाँगों में एकदम से अधिक ताकत आ जाती है, ताकि हम लड़ या भाग सकें। लेकिन जब हमें लड़ने या भागने की ज़रूरत तो नहीं होती पर हम तनाव महसूस कर रहे होते हैं, तो ये हॉर्मोन व्यर्थ में ही हमारे शरीर में घूमने लगते हैं। इन हॉर्मोनों की अधिकता से दीर्घकाल में हमारे शरीर के विभिन्न भागों पर बुरा असर पड़ता है। हालाँकि इनसे हमारा गला तो नहीं घुटता, लेकिन ये हमें धीरे-धीरे शारीरिक रूप से बीमार अवश्य बना देते हैं।

इसीलिए, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक अपना ध्यान इस ओर लगा रहे हैं कि कैसे लोगों को चिंता से मुक्त होने में सहायता कर सकें, ताकि उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सके। ज़्यादातर शोध यही बताते हैं कि चिंता ऐसी अवस्था है जिसका जन्म भय से होता है।

एक शोध करके देखा गया कि लोगों को किस-किस तरह की विभिन्न चिंताएँ होती हैं। लोग अक्सर जिन बातों के बारे में चिंता करते रहते हैं, उनमें से एक-तिहाई तो होती ही नहीं हैं। दूसरा एक-तिहाई हिस्सा उन बातों से संबंधित होता है जो अतीत में हो चुकी होती हैं और जिन्हें बदला नहीं जा सकता है। अंतिम एक-तिहाई हिस्से में से कुछ तो ऐसी बातें होती हैं जो दूसरों के जीवन से संबंधित होती हैं और जिनसे हमारा कोई मतलब नहीं होता है, कुछ ऐसी बातें होती हैं जो हमारे असली या काल्पनिक रोगों से संबंधित होती हैं, और केवल कुछ थोड़ी सी ही बातें ऐसी होती हैं जिनके बारे में हमें वास्तव में चिंता करनी चाहिए।

ज़रा सोचिए, हम कितनी ही ऐसी चीज़ों के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता करते रहते हैं जो असल में कभी होती ही नहीं हैं। उदाहरण के लिए, ज़रा सोचिए कि पिछले सालों में कितनी ही बार भारी बारिश और आँधी-तूफ़ान के पूर्वानुमानों ने हमारे चार जुलाई के कार्यक्रमों को तहस-नहस कर देने की आशंका जताई है। लेकिन फिर भी वो दिन ख़ूबसूरत धूप और सुहावने मौसम से भरपूर रहा है।

हमारा मन भविष्य के बारे में ऐसी कल्पनाएँ करता रहता है जो हमें चिंता में डाल देती हैं, और कुछ लोग तो आने वाली विपदाओं के बारे में सोच-सोचकर ख़ुद को बीमार ही कर लेते हैं। वो दिन-रात उस काल्पनिक ख़तरे के बारे में सोचते रहते हैं। वो दूसरों से भी इस बारे में चर्चा करते रहते हैं। कई लोगों को तो चिंता से नींद ही नहीं आती है। ज़्यादातर तो लोग जिस बारे में चिंता करते रहते हैं, वो कभी होता ही नहीं है। नतीजतन, उस बारे में सोच-सोचकर वो अपने अनमोल समय को व्यर्थ ही ज़ाया करते रहते हैं। उनका भय ही मानो उनका गला घोंट देता है। ख़ुद को मिली साँसों को वे बेकार ही में नष्ट कर देते हैं। अपनी चिंता के कारण वे अपने जीवन की गुणवत्ता ही ख़त्म कर लेते हैं।

 

चिंता से कैसे बचें

अगली बार जब हम चिंता करने लगें, तो हमें सोचना चाहिए कि क्या ऐसी चीज़ों के बारे में सोचना जो पता नहीं होंगी भी या नहीं, हमारे अनमोल समय और जीवन को व्यर्थ ही बर्बाद करना नहीं है? अगर असल में कोई ख़तरा या समस्या है, तो चिंता करने के बजाय हमें उसका सामना करने की ठोस योजना बनानी चाहिए। यदि हम उसका सामना करने के लिए कदम उठा चुके हैं, तो फिर हम इससे अधिक कुछ नहीं कर सकते। उस बारे में चिंता करते रहने से हमारी कोई अतिरिक्त मदद नहीं होगी। उपाय करना तो हमारे लिए फ़ायदेमंद होता है, लेकिन चिंता करने से हमें कोई फ़ायदा नहीं होता है। हमें अपनी ओर से बेहतर से बेहतर प्रयास करना चाहिए, और बचे हुए समय में ऐसे काम करने चाहियें जो दूसरों के लिए या हमारे लिए फ़ायदेमंद साबित हों। इस तरह, हम अपनी एक-तिहाई चिंताओं का ख़ात्मा कर सकते हैं।

चिंता का अन्य कारण होता है अतीत की बातें, जिन्हें हम बदल नहीं सकते। हो सकता है कि हमारे अतीत में कोई ऐसी बात हुई हो जो हमें या दूसरों को अच्छी न लगी हो। लेकिन एक बार जब वो घटना हो गई, तो फिर उस बारे में चिंता करने से कोई फ़ायदा नहीं होता। जो होना था, वो तो हो ही गया। उस बारे में चिंता करने से वो बदल नहीं जाएगा; चिंता करने से तो केवल हमारी तबीयत ही ख़राब होगी। ऐसे में तो हमें उस घटना से दोहरा नुकसान होता है। एक बार तो हम तब कष्ट सहते हैं जब वो घटना वास्तव में हुई होती है। और दोबारा हम तब कष्ट सहते हैं जब हम बार-बार उस बारे में सोचकर ख़ुद को तकलीफ़ देते रहते हैं। यह ऐसे ही है मानो हम किसी ख़राब फ़िल्म को बार-बार देखते रहें। क्या एक बार ही उस अनुभव से गुज़रना काफ़ी नहीं था जो हम बार-बार उसे दोहराते रहते हैं?

अतीत से सीखें अवश्य, लेकिन उसके बारे में चिंता न करें

अतीत के बारे में सोचने का फ़ायदा तभी होता है जब हम उससे कोई सबक सीखें, ताकि हम फिर से उन गलतियों को दोहरायें नहीं। चिंता करने से अतीत बदल नहीं जाएगा। केवल चिंता करने से ही हम उन गलतियों को दोहराने से बच नहीं जायेंगे। हमें अतीत से सबक सीखना चाहिए, और भविष्य में बेहतर करने का निर्णय लेना चाहिए। यदि हम अतीत को भुला सकें, तो अपनी चिंताओं का एक बड़े भाग को ख़त्म कर पायेंगे।

बीमारी के बारे में चिंता करना

कई लोग बीमारी के बारे में चिंता करते रहते हैं। इसके दो पहलू होते हैं : पहला पक्ष है उन बीमारियों के बारे में चिंता करना जो हमें होती हैं। वास्तव में हमें उनके बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए; इसके बजाय हमें उसके इलाज के लिए ज़रूरी कदम उठाने चाहियें। या तो हमें डॉक्टरी मदद लेनी चाहिए या उसे दूर करने के लिए अन्य तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। चिंता हमें बीमारी से मुक्ति नहीं दिला सकती है। इसके बजाय, चिंता तो उल्टा हमारी बीमारी को बढ़ा देती है, क्योंकि उसमें तनाव की परत भी जुड़ जाती है।

बीमारियों के बारे में चिंता करने का दूसरा पहलू है, उन बीमारियों की चिंता करना जो हमें नहीं हैं। कई लोग किसी बीमारी के बारे में कोई लेख पढ़ते हैं, और उसे पढ़कर उन्हें लगने लगता है कि उन्हें भी वही बीमारी है या होने वाली है। अगर हमें सच में वो बीमारी है, तो हमें डॉक्टर के पास जाना चाहिए। लेकिन अगर हमें वो नहीं है, तो हम इस चिंता में क्यों जियें कि हमें वो बीमारी लग जाएगी? ऐसे में तो अच्छा स्वास्थ्य होते हुए भी हम चिंता से ही ख़ुद को बीमार कर लेंगे।

ऐसी तो हज़ारों बीमारियाँ हैं जो हमें लग सकती हैं। उनके बारे में चिंता करने से क्या फ़ायदा? हमें अवश्य अपने स्वास्थ्य का ख़याल रखना चाहिए और ख़ुद को बीमार होने से बचाने के लिए कदम उठाने चाहियें। हमें ऐसी चीज़ों से बचना चाहिए जो हमें बीमार कर सकती हैं, और अपनी जीवनशैली को स्वस्थ रखना चाहिए। ये सभी सकारात्मक, फ़ायदेमंद कदम हैं। लेकिन चिंता करना बेकार है। चिंता करने से हम बीमार होने से बच नहीं जायेंगे, और न ही बीमार होने पर चिंता करने से हम ठीक हो जायेंगे। अगर हम अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंता करना बंद कर दें, तो हम पायेंगे कि हमारा स्वास्थ्य असल में बेहतर हो गया है।

अपने जीवन में तनाव लाए बिना सकारात्मक कदम उठायें

जब हम बेकार की चिंताएँ करना बंद कर देते हैं, तो हम पाते हैं कि असल में चिंता करने लायक बहुत ही कम चीज़ें होती हैं। ये समस्याएँ आर्थिक हो सकती हैं, या वास्तविक स्वास्थ्य समस्याएँ, नौकरी से संबंधित समस्याएँ, रिश्तों से संबंधित समस्याएँ, या पारिवारिक समस्याएँ हो सकती हैं। लेकिन चिंता करने से ये समस्याएँ हल नहीं हो सकतीं। इसके बजाय, हमें इन समस्याओं को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहियें। इन कदमों को उठाते समय हमें इनके बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे समस्या के समाधान में मदद नहीं मिलती। इसके बजाय हमें अपने जीवन में तनाव लाए बिना सकारात्मक कदम उठाने चाहियें।

यदि हम चिंता के मूल अर्थ, यानी गला घोंटना, की तरफ़ देखें, तो यह हमें चिंता न करने की याद दिला सकता है। हमें अपनी ओर से बेहतर से बेहतर प्रयास करना चाहिए, और परिणाम को प्रभु के हाथों में छोड़ देना चाहिए। इस तरह, हम जीवन की प्रत्येक साँस का पूरा-पूरा लाभ उठा सकते हैं। ऐसे में हम पायेंगे कि हमारा अपने जीवन पर नियंत्रण बढ़ गया है। जब हम अपने जीवन की बागडोर को अपने हाथों में ले लेते हैं और चिंता करना बंद कर देते हैं, तो हमें जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर कदम उठाने के लिए अधिक समय मिल जाता है। हमारा ध्यानाभ्यास भी बेहतर हो जाता है, हम अपने करीबियों के साथ अधिक प्यार से समय बिता पाते हैं, और हमारा जीवन चिंताओं से मुक्त होकर अधिक शांत हो जाता है।

प्रभु में भरोसा

चिंता से मुक्त होने का सबसे अच्छा तरीका है, प्रभु में भरोसा रखना। कई बार जीवन में अच्छे समय से गुज़रते हैं, तो कई बार मुश्किल दौर से। जब चीज़ें हमारे लिए बढ़िया चल रही हों, तो हम प्रभु में विश्वास करने लगते हैं। लेकिन अपने बेहतरीन प्रयासों और दिल की अच्छाई के बावजूद हमें कभी न कभी बुरे समय से गुज़रना ही पड़ता है, और तब हम प्रभु के अस्तित्व पर सवाल उठाने लगते हैं।

अपने जीवन में, हम उन गुज़रे हुए अवसरों को याद कर सकते हैं जब हम अपने हालात को लेकर चिंता में डूब गए थे। हम सोचने लगे थे कि प्रभु हैं भी या नहीं, और यह कि हमारे साथ इतना बुरा क्यों हो रहा है। लेकिन बाद में हमें पता चला था कि जो कुछ हुआ, वो असल में अच्छा ही हुआ। जो चीज़ हमें ख़राब लग रही थी, वो असल में एक वरदान थी, क्योंकि अंत में चीज़ें उससे बेहतर ही निकलीं जितना शायद हम अपने प्रयासों से कर पाते।

तब हम जान जाते हैं कि प्रभु हर समय हमारे साथ हैं और हमारी देखभाल कर रहे हैं। कई बार हमें इस बात का अनुभव उसी समय नहीं होता है, लेकिन सही समय पर हमें अवश्य इस बात का एहसास हो जाता है कि प्रभु ही वास्तव में जानते थे कि उस वक़्त हमारे लिए क्या सही था।

इस फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई पर, ध्यानाभ्यास के द्वारा, चिंता से मुक्ति पायें

प्रभु में विश्वास दृढ़ करने का एक तरीका है ध्यानाभ्यास। जब हम ध्यान टिकाकर अपने अंतर में जाते हैं, तो हम वहाँ प्रभु को पाते हैं। तब हमारे अंदर इस बात को लेकर कोई शक नहीं रह जाता कि प्रभु हैं या नहीं। हम अपने अंतर में स्वयं प्रभु को और अन्य रूहानी नज़ारों को देख पाते हैं। यह अनुभव होने से हम प्रभु के निर्णयों पर सवाल उठाना बंद कर देते हैं। हम सभी चीज़ों के पीछे प्रभु के हाथ को देखने लगते हैं, और यह जान जाते हैं कि जो भी हो रहा है, हमारी बेहतरी के लिए ही हो रहा है।

इस फ़ोर्थ ऑफ़ जुलाई को मनाते समय, आइए हम चिंता से भी मुक्ति पा लें, अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रभु पर भरोसा करके। ऐसा हम ध्यानाभ्यास के द्वारा कर सकते हैं, जिसकी वजह से हम स्वयं अपने जीवन में प्रभु की उपस्थिति का अनुभव करने लगते हैं।

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