अपने अंदर युवावस्था के स्रोत से जुड़ें

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है और हम वृद्धावस्था के बारे में चिंता करने लगते हैं, तो आज के ज़माने में कई लोग अलग-अलग तरीकों से अपनी युवावस्था कायम रखने की कोशिश करते हैं। वो शारीरिक व्यायाम करते हैं, स्वास्थ्यवर्धक खाना खाते हैं, या डॉक्टरी विधियों से अपने चेहरे या शरीर से बढ़ती उम्र के निशान मिटाने की कोशिश करते हैं। क्या ध्यानाभ्यास हमें युवा रहने में मदद कर सकता है?

मेडिकल शोधों द्वारा तरीके ढूंढे जा रहे हैं कि हम दीर्घायु कैसे हो सकते हैं, हमारी उम्र लंबी कैसे हो सकती है। लोग कोई ऐसी चमात्कारिक दवाई खाना चाहते हैं जो हमारी उम्र में दस, बीस, या और अधिक साल जोड़ दे। क्यों? क्योंकि लोगों को लगता है कि युवावस्था अधिक शक्ति, सुंदरता, ताकत, और हिम्मत का समय होता है। जवानी के समय में हमें लगता है कि हम जो चाहे, कर सकते हैं।

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है, हम महसूस करने लगते हैं, “अब मैं पहले जैसे तेज़ दौड़ नहीं पाता”, या “अब मैं पहले की तरह ज़्यादा वज़न नहीं उठा पाता।” अचानक हमें लगने लगता है कि हम ऐसी कई चीज़ें नहीं कर पा रहे हैं जो हम पहले आसानी से कर लेते थे।

युवावस्था में, अगर हम कोई शारीरिक काम नहीं भी कर पाते हैं, तो भी हम व्यायाम करते हैं और उस कार्य को पूरा करने की भरपूर कोशिश करते हैं। ये शारीरिक शक्ति का समय होता है। जब हम देखते हैं कि हमारी क्षमता और ताकत जा रही है, तो उसे सहना हमारे लिए मुश्किल हो जाता है। इस कठिनाई से चालीस, पचास, साठ, या सत्तर से ऊपर के कई लोगों को गुज़रना पड़ता है। वो परेशान हो जाते हैं कि आख़िर उनके साथ हो क्या रहा है।

यह अवस्था हर किसी के जीवन में आती है, क्योंकि वृद्ध होना जीवन का वो अनिवार्य अंग है जिससे हरेक व्यक्ति को गुज़रना पड़ता है। यह अनुभव केवल किसी एक व्यक्ति को ही नहीं होता है। हम सभी चालीस, पचास, साठ, सत्तर, अस्सी, नब्बे, या सौ से अधिक साल के होने पर अनुभव करते हैं कि हमारे शरीर की हालत ख़राब हो रही है। हमें इस स्थिति का सामना करने के लिए ख़ुद को तैयार रखना चाहिए।

आज हम पाते हैं कि चिकित्सा और तकनीकी के क्षेत्रों में होने वाली प्रगति ने हमारे जीवन को सौ, दो सौ, या तीन सौ साल पहले से अधिक आसान बना दिया है। बेहतर दवाइयों से, हम क्या खायें इसकी जानकारी से, और सही जीवनशैली रखने से, आज इंसान के जीवन की अवधि भी बढ़ रही है। हम सीख रहे हैं कि एक बेहतर, परिपूर्ण, अधिक ख़ुश, और लंबा जीवन कैसे जिया जा सकता है। फिर भी, हम देर-सवेर तो अपनी वृद्धावस्था में पहुँचते ही हैं।

क्या आप अपनी युवावस्था को फिर से पा सकते हैं?

क्या कोई ऐसा तरीका है जिससे हम अपनी युवावस्था को फिर से पा सकते हैं? जहाँ एक ओर डॉक्टर इसे रसायनिक तरीकों से पाने के लिए किसी चमात्कारिक दवाई की खोज कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसे पाने का एक प्राकृतिक तरीका भी है। इस चमात्कारिक तरीके से हम अपनी आयु बढ़ा सकते हैं, अपनी ताकत में बढ़ोतरी कर सकते हैं, और अपने जीवन में ख़ुशियों का संचार कर सकते हैं।

हम में से हरेक व्यक्ति हर समय ख़ुश रहना चाहता है। हम उदास, निराश, या तकलीफ़ में नहीं रहना चाहते। हम ख़ुशी और आनंद से जीना चाहते हैं। जिस उदासी से हम ख़ुद को घिरा पाते हैं, उससे बाहर निकलने का एक तरीका मौजूद है।

ध्यानाभ्यास की मदद से आप युवावस्था के आंतरिक स्रोत के साथ जुड़ सकते हैं

हम सभी अपने अंदर मौजूद युवावस्था के स्रोत के साथ ध्यानाभ्यास के द्वारा जुड़ सकते हैं। जब हम इस आंतरिक फव्वारे में स्नान करते हैं, तो हम जान जाते हैं कि हम वास्तव में आत्मा हैं, और यह कि हम अविनाशी हैं। आत्मा हमेशा जवान रहती है, सदा कायम रहती है। आत्मा कभी भी वृद्ध नहीं होती। इस तरह, हम अंदर से बदल जाते हैं और स्वयं को केवल शरीर ही नहीं समझते, जोकि उम्र के साथ-साथ ढलता जाता है, बल्कि ख़ुद को आत्मा समझने लगते हैं, जोकि चिरयुवा रहती है।

चाहे हम अधेड़ हों या वृद्ध, ध्यानाभ्यास की शक्ति हमें परिवर्तित कर देती है। ये हमें अपने सच्चे आत्मिक स्वरूप का अनुभव कराती है, जोकि चिरयुवा और अविनाशी रहता है।

हमें अपनी युवावस्था को दोबारा पाने के लिए वैज्ञानिकों पर और उनकी चमत्कारिक दवाइयों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। ध्यानाभ्यास के ज़रिए हम स्वयं को सदाबहार कर सकते हैं, सदा-सदा रहने वाली ख़ुशियों की अवस्था को पा सकते हैं।

और अधिक जानना चाहेंगे?

आध्यात्मिक वसंत की साफ़-सफ़ाई

जब हम अपने विचारों को साफ़ करने की ओर ध्यान देते हैं, तो हमें देखना होता है कि हम अपने कौन-कौन से पहलुओं की सफ़ाई करना चाहते हैं। हमें यह समझना होता है कि हमारे मन और हृदय में कौन-कौन सी चीज़ें ग़ैर-ज़रूरी हैं और हमें प्रभु के प्रेम को अनुभव करने से रोक रही हैं।

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शाकाहार क्यों?

जो आहार हम चुनते हैं, वो हमारे स्वास्थ्य के सभी पहलुओं को और हमारे पर्यावरण को प्रभावित करता है। अलग-अलग पृष्ठभूमियों और संस्कृतियों के लोग शाकाहार को अपना रहे हैं, और आज शाकाहार काफ़ी प्रसिद्धि पा चुका है। यहाँ तक कि कई लोग कहते हैं कि अब हमें दूसरों से यह नहीं पूछना चाहिए कि “क्या आप शाकाहारी या वीगन (जो लोग पशु-उत्पादों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं करते, जैसे दूध या दूध से बनी चीज़ें) हैं?”, बल्कि यह पूछना चाहिए कि “आप क्यों नहीं हैं?”

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Heal the Soul through Meditation

Being unconnected with our inner core or soul causes pain. The pain may manifest as a continual restlessness for something of which we are not aware. We rush around trying to find happiness in outer pursuits and are confused when the happiness we thought we would gain eludes us. We know there is something missing, yet we know not what it is.

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अपना उपचार करना और विश्व का उपचार करना

मैं आपके सामने एक ऐसा समाधान रखना चाहता हूँ जो परिणाम अवश्य देगा – हम में से हरेक अपना उपचार करे। यदि हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने शरीर, मन, और आत्मा का उपचार कर सकें, तो हम विश्व की जनसंख्या में एक और परिपूर्ण इंसान जोड़ पायेंगे।

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शाकाहारी होने के लाभ

एक कहावत है, “जैसा आप खाते हैं, वैसे ही आप बन जाते हैं”। पूर्वी देशों में, जहाँ हज़ारों सालों से शाकाहार ही प्रमुख भोजन रहा है, वहाँ लोग यह जानते हैं कि जो कुछ भी हम खाते हैं, वो हमारे शरीर का हिस्सा बन जाता है और हमारे विचारों पर भी प्रभाव डालता है।

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बास्केटबॉल कौशल को ध्यानाभ्यास में इस्तेमाल करना

ध्यानाभ्यास के लिए एकाग्रता की ज़रूरत होती है। इसका अर्थ है अपने शरीर को बिल्कुल स्थिर करके बैठना, जिस तरह खिलाड़ी अपने शरीर को उस स्थिति में रखते हैं जिसमें वो बॉल को पकड़ सकें। हमें भी आंतरिक बॉल के साथ जुड़ना है, इसीलिए हमारे शरीर का स्थिर होना ज़रूरी है।

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