सैद्धांतिक को व्यावहारिक में बदलना
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
हम सभी यह जानते हैं कि जब भी हम इस संसार के किसी भी क्षेत्र का अध्ययन करना चाहते हैं, तो हम एक ऐसे शिक्षक के पास जाते हैं जो उस क्षेत्र में माहिर होता है। जब हम छोटे होते हैं, तो हम नर्सरी स्कूल में जाते हैं। जब हम थोड़ा बड़े होते हैं, तो हम माध्यमिक स्कूल, हाई स्कूल, और फिर कॉलेज में जाते हैं। अगर हम आगे भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ना चाहते हैं, तो हम किसी वरिष्ठ शिक्षक या प्रोफ़ेसर के पास जाते हैं। वो शिक्षक हमें उस विषय का सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करता है।
जब भी हमारे सामने कोई समस्या आती है, तो हम अपने शिक्षक से सवाल पूछते हैं और वो हमें अपने साथ बैठाकर हमें उस बारे में समझाते हैं, जब तक कि वो विषय हमारे लिए पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो जाता। यदि किसी विषय के आधारभूत सिद्धांत हमारे सामने स्पष्ट हो जाएँ, तो उस शक्तिशाली नींव पर हम ज्ञान का महल खड़ा कर सकते हैं।
सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ, हमारे शिक्षक हमें अलग-अलग तरह के प्रयोग करना भी सिखाते हैं, ताकि हमें उस विषय का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सके। वे हमें अपने मार्गदर्शन में स्वयं ये सभी प्रयोग करना सिखाते हैं, ताकि हम व्यावहारिक रूप से भी जान सकें कि उस विषय के सैद्धांतिक ज्ञान का उद्देश्य क्या है।
इसीलिए, उस विषय को पूरी गहराई से समझने के लिए, हमें न केवल सैद्धांतिक ज्ञान बल्कि व्यावहारिक ज्ञान की भी आवश्यकता होती है।
अध्यात्म के विषय को यदि सही तरीके से समझा जाए, तो यह बिल्कुल भी जटिल नहीं है। जिस प्रकार हमें भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक के यदि अपने ही आधारभूत सिद्धांत स्पष्ट नहीं हैं, तो वो हमें सही तरीके से पढ़ा नहीं पाएगा। उसी प्रकार अध्यात्म, जोकि एक युगों पुराना विज्ञान है, का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भी हमें किसी ऐसे शिक्षक के पास जाना होगा जो इस विषय को गहराई से जानता हो, जो स्वयं इस क्षेत्र में प्रयोग कर चुका हो, जो आंतरिक आध्यात्मिक मार्ग से पूरी तरह परिचित हो, ताकि वो हमें भी मार्ग में आने वाली मुश्किलों से बचाकर आगे ले जा सके। एक शिक्षक हमें कितनी दूर तक ले जा सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वो ख़ुद कितनी दूर तक पहुँचा हुआ है।
जिस प्रकार हम स्कूल की प्रयोगशाला में भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र के प्रयोग कर सकते हैं, उसी प्रकार यह मानव शरीर हमें प्रभु द्वारा दी गई प्रयोगशाला है। एक आध्यात्मिक शिक्षक हमें सिखाता है कि हम कैसे अपने शरीर के अंदर प्रयोग कर सकते हैं। वो हमें हमारे अंदर मौजूद ज्योति और श्रुति के साथ जोड़ देता है, ताकि हम स्वयं अपने भीतर प्रयोग कर सकें, और स्वयं अपनी तरक्की को देख सकें। वो हमें न केवल आत्म-अनुभव और प्रभु-प्राप्ति के मार्ग का सैद्धांतिक ज्ञान देते हैं, बल्कि इस मार्ग का व्यावहारिक ज्ञान भी प्रदान करते हैं, ताकि हम स्वयं प्रभु का अनुभव कर सकें।
एक आध्यात्मिक शिक्षक यही चाहता है कि हम जानें कि हम वास्तव में कौन हैंं। वो चाहता है कि हम प्रभु को जानें। वो चाहता है कि हम प्रभु के पास वापस पहुँचने के मार्ग पर चलें। वो हमें यह अनुभव कराता है कि हम यह भौतिक शरीर नहीं हैं; कि हमारे शरीर के अंदर मौजूद आत्मा ही हमारा असली स्वरूप है। वो चाहता है कि हम जानें कि हम सभी के अंदर मौजूद आत्मा एक ही परमात्मा का अंश है, और इसीलिए हम सभी इंसानों के साथ, और न केवल इंसानों बल्कि इस सृष्टि के हरेक प्राणी के साथ, प्रेम व आदर का व्यवहार करें।
अगर हम ऐसी अवस्था में पहुँच जाएँ जिसमें हम जान जाएँ कि इस सृष्टि की प्रत्येक आत्मा, परमात्मा का ही अंश है, तो हम सभी के अंदर प्रभु की रोशनी को देखना शुरू कर देंगे। जैसे ही हम उस अवस्था में पहुँच जाते हैं जहाँ हम सबके अंदर प्रभु के प्रकाश को देखना शुरू कर देते हैं, तो हमारी आत्मा उसी समय प्रभु के साथ जुड़ जाती है।
एक आध्यात्मिक शिक्षक लोगों को प्रेरित करता है कि एक बार चिंगारी प्रज्ज्वलित हो जाने के बाद, वे स्वयं रोज़ाना ध्यानाभ्यास रूपी प्रयोग करें। एक बार जब हम अपने अंतर में जाकर उस प्रयेगशाला में प्रयोग करेंगे जो प्रभु ने हमें दी है, तो हम स्वयं ध्यानाभ्यास के लाभों को देख पायेंगे। हम स्वयं देख पायेंगे कि हम प्रभु-प्राप्ति के मार्ग पर तेज़ी से तरक्की कर रहे हैं।
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हम कौन सी रेस में दौड़ रहे हैं?
क्या आपको ऐसा लगता है कि आपके दिन ऐसे गुज़रते हैं मानो आप एक ट्रैडमिल (व्यायाम की मशीन) पर दौड़ रहे हों और कहीं भी न पहुँच रहे हों? क्या आप दिन के अंत में बहुत अधिक थक जाते हैं, और फिर भी ऐसा महसूस करते हैं कि कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं कर पाये हैं?
ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप
जिस प्रकार खिलाड़ी अलग-अलग खेलों में वर्ल्ड कप के लिए स्पर्धा करते हैं, उसी प्रकार हम भी ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप पाने के लिए प्रयास कर सकते हैं। वर्ल्ड कप, ओलम्पिक्स, या एन.बी.ए., एन.एफ़.एल., एन.एच.एल., एम.एल.बी., या फीफा जैसी प्रतियोगिताएँ हमें इस बात पर हैरान होने को मजबूर कर देती हैं कि इंसानी साहस से क्या-क्या संभव हो सकता है।
खुले हाथों का अर्थ
अनन्त सुख की खोज
भगवान का आभार
ध्यानाभ्यास उत्प्रेरक
रूहानी ख़ज़ानों की सुप्त चिंगारी आपके भीतर मौजूद है। वो जल उठने के लिए एक उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) की प्रतीक्षा कर रही है, ताकि उसकी चमकीली लौ प्रज्ज्वलित हो सके। ध्यानाभ्यास के सिद्धांत, उन्हीं वैज्ञानिक सिद्धांतों के समान हैं जिनके अनुसार यह ग्रह चल रहा है। जो नियम हमारे भौतिक संसार को नियंत्रित करते हैं, वो उन्हीं नियमों के प्रतिबिंब हैं जो आंतरिक मंडलों का संचालन कर रहे हैं।