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ध्यानाभ्यास उत्प्रेरक

रूहानी ख़ज़ानों की सुप्त चिंगारी आपके भीतर मौजूद है। वो जल उठने के लिए एक उत्प्रेरक (कैटेलिस्ट) की प्रतीक्षा कर रही है, ताकि उसकी चमकीली लौ प्रज्ज्वलित हो सके। ध्यानाभ्यास के सिद्धांत, उन्हीं वैज्ञानिक सिद्धांतों के समान हैं जिनके अनुसार यह ग्रह चल रहा है। जो नियम हमारे भौतिक संसार को नियंत्रित करते हैं, वो उन्हीं नियमों के प्रतिबिंब हैं जो आंतरिक मंडलों का संचालन कर रहे हैं।

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इन नियमों के मूल में कार्य करने वाले सिद्धांत, भौतिक संसार में भी काम करते हैं और ध्यानाभ्यास के दौरान भी।

हमें अपने अंदर मौजूद चिंगारी को हवा देने के लिए एक उत्प्रेरक की ज़रूरत है। एक बार जब वो चिंगारी जल उठती है, तो हम जब चाहे ध्यानाभ्यास के द्वारा अंतर में जाकर उसका उज्ज्वल प्रकाश देख सकते हैं। हमें अपने अंदर मौजूद ख़ज़ानों का व्यक्तिगत अनुभव हो जाता है, और हम अपने सच्चे आंतरिक स्वरूप के बारे में जान जाते हैं।

उत्प्रेरक के द्वारा ध्यानाभ्यास में सहायता पाने के लाभ

हम अपने भीतर मौजूद चिंगारी को भड़का कैसे सकते हैं?

इस प्रक्रिया को समझने के लिए, ज़रा सोचिए कि इस भौतिक संसार में वैज्ञानिक और इंजीनियर कैसे ऊर्जा के स्रोतों को लोगों के घरों से जोड़ देते हैं। इंजीनियर ऐसी प्रणालियाँ बनाते हैं जिनके द्वारा पावर प्लांट में पैदा होने वाली ऊर्जा, लोगों के घरों तक पहुँचकर कई चीज़ों में काम आती है, जैसे गर्म करना, ठंडा करना, रोशनी देना, उपकरणों और तकनीकी यंत्रों को चलाना आदि। एक इंजीनियर या वैज्ञानिक जानता है कि लोगों को ऊर्जा के स्रोत के साथ कैसे जोड़ा जाए। वो नए तार जोड़ता है और पुरानों की मरम्मत करता है।

वैज्ञानिक रेडियो को रेडियो तरंगों के साथ जोड़ते हैं, टेलीविज़न को प्रसारण सिग्नल के साथ जोड़ते हैं, और कम्प्यूटर को नेटवर्क के साथ जोड़ते हैं ताकि हम ईमेल, टैक्स्ट मैसेज और इंटरनेट के द्वारा एक-दूसरे के साथ संपर्क कर सकें।

इस भौतिक संसार में इलैक्ट्रॉनिक या डिजिटल सिग्नलों को ग्रहण करने के लिए कनैक्शन बनाना, ठीक वैसे ही है जैसे अपनी आत्मा और परमात्मा के बीच कनैक्शन बनाना। दोनों ही के लिए हमें एक सैन्डर (प्रेषक या भेजने वाला) और एक रिसीवर (ग्रहण करने वाला) चाहिए होता है। सैन्डर है परमात्मा। उनके प्रसारण को ग्रहण करने वाला रिसीवर है हमारी आत्मा। आध्यात्मिक मार्गदर्शक वो विशेषज्ञ है जो जानता है कि ऐसा कनैक्शन कैसे बनाया जाए जिससे हमारी आत्मा, प्रभु के प्रसारण को ग्रहण कर सके।

हमें ऐसे विशेषज्ञ की ज़रूरत इसलिए होती है क्योंकि प्रभु का प्रसारण केवल आत्मिक स्तर पर ही आता है, और उसमें भौतिक पदार्थ बिल्कुल भी शामिल नहीं होता। क्योंकि हमारे शरीर में रिसीवर है हमारी भौतिक बुद्धि और हमारी भौतिक इंद्रियाँ, इसीलिए वो केवल इस भौतिक संसार के प्रसारणों को ही ग्रहण कर सकता है। हमारी आँखें केवल कुछ ख़ास वेवलैंग्थ (तरंग-लंबाई) के प्रकाश को ही देख पाती हैं – लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, और बैंगनी। कुछ वैज्ञानिक उपकरण इससे ऊपर की और नीचे की वेवलैंग्थ का प्रकाश भी देख पाते हैं, जैसे अल्ट्रावायलेट (पराबैंगनी) और इन्फ्ऱारेड (अवरक्त) तरंगें।

लेकिन हमारी आँखें और वैज्ञानिक उपकरण इनसे परे का प्रकाश ग्रहण नहीं कर पाते। हालाँकि उच्चतर आध्यात्मिक तरंगें हर समय प्रसारित हो रही होती हैं, लेकिन हम अपनी भौतिक इंद्रियों द्वारा उन्हें ग्रहण नहीं कर पाते।

इसी प्रकार, इंसानी कान केवल कुछ ही फ्ऱीक्वैंसी (आवृत्ति) की आवाज़ें सुन पाते हैं। कुछ जानवर, जैसे कुत्ता या ह्वेल, अधिक फ्ऱीक्वैंसी की आवाज़ें भी सुन पाते हैं। लेकिन हमारे भौतिक कान, प्रभु द्वारा प्रसारित की जा रही उच्चतर आध्यात्मिक फ्ऱीक्वैंसी की आवाज़ों को सुनने में असमर्थ रहते हैं।

इसी तरह, हम अपनी इंद्रियों के द्वारा कुछ ख़ास गंधों, स्वादों, और शारीरिक अनुभूतियों का अनुभव कर पाते हैं। भौतिक स्तर पर, हम बस इसी सीमा तक कोई प्रसारण ग्रहण कर पाते हैं।

प्रभु भौतिक नहीं हैं; वो परम आत्मा हैं। दुर्भाग्यवश, ध्यानाभ्यास के दौरान हम अंतर में जो कुछ भी अनुभव करते हैं, उसे हमारे भौतिक शरीर की इंद्रियाँ ग्रहण नहीं कर पातीं। अंतर में जो कुछ भी प्रसारित हो रहा है, उसे ग्रहण करने के लिए हमें एक दूसरी ही प्रणाली के साथ जुड़ना होगा, जो है हमारी आत्मा। हमारी आत्मा भी भौतिक पदार्थ से नहीं बनी है, इसीलिए वो आध्यात्मिक तरंगों को ग्रहण करने के काबिल है, और उन रूहानी ख़ज़ानों का अनुभव कर सकती है जो ध्यानाभ्यास के दौरान हमें अंतर में मिलते हैं।

एक अनुभवी उत्प्रेरक हमें ध्यानाभ्यास में सफलता का शॉर्टकट प्रदान करता है

हालाँकि हम ध्यानाभ्यास से शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक लाभ प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन एक पूर्ण सत्गुरु एक उत्प्रेरक का काम करते हुए हमें ध्यानाभ्यास के आध्यात्मिक लाभों को ग्रहण करने के लायक बनाता है।

यदि हम ट्रायल ऐन्ड ऐरर (परीक्षण त्रुटि विधि) के द्वारा अपनी आंतरिक देनों को पाना चाहें, तो इसमें बहुत समय लग सकता है। लेकिन एक पूर्ण सत्गुरु, जिसने स्वयं इस विधि में दक्षता हासिल की है और जो इसके शॉर्टकट्स (छोटा मार्ग) को जानता है, हमें भी ध्यानाभ्यास की वो विधि सिखा सकता है जो हमारे अंदर की सुप्त चिंगारी को जागृत कर दे। इस प्रकार, हम सबसे छोटे और सबसे आसान तरीके से ध्यानाभ्यास में सफलता हासिल कर सकते हैं, तथा आंतरिक शांति, आनंद, व ख़ुशियों का अनुभव कर सकते हैं।

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हम कौन सी रेस में दौड़ रहे हैं?

क्या आपको ऐसा लगता है कि आपके दिन ऐसे गुज़रते हैं मानो आप एक ट्रैडमिल (व्यायाम की मशीन) पर दौड़ रहे हों और कहीं भी न पहुँच रहे हों? क्या आप दिन के अंत में बहुत अधिक थक जाते हैं, और फिर भी ऐसा महसूस करते हैं कि कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं कर पाये हैं?

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सैद्धांतिक को व्यावहारिक में बदलना

हम सभी यह जानते हैं कि जब भी हम इस संसार के किसी भी क्षेत्र का अध्ययन करना चाहते हैं, तो हम एक ऐसे शिक्षक के पास जाते हैं जो उस क्षेत्र में माहिर होता है। अगर हम भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ना चाहते हैं, तो हम किसी वरिष्ठ शिक्षक या प्रोफ़ेसर के पास जाते हैं। वो शिक्षक हमें उस विषय का सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करता है। यदि मूल बातें स्पष्ट हैं, तो हम अपना पूरा ज्ञान उन मजबूत बुनियादी बातों पर बना सकते हैं। यही अध्यात्म के लिए भी सच है।

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ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप

जिस प्रकार खिलाड़ी अलग-अलग खेलों में वर्ल्ड कप के लिए स्पर्धा करते हैं, उसी प्रकार हम भी ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप पाने के लिए प्रयास कर सकते हैं। वर्ल्ड कप, ओलम्पिक्स, या एन.बी.ए., एन.एफ़.एल., एन.एच.एल., एम.एल.बी., या फीफा जैसी प्रतियोगिताएँ हमें इस बात पर हैरान होने को मजबूर कर देती हैं कि इंसानी साहस से क्या-क्या संभव हो सकता है।

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