ख़ुशी एक मानसिक अवस्था है

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

जीवन कई चुनौतियों से भरपूर है और कई बार, दबावों के कारण, लोग टूट जाते हैं। उन्हें लगता है कि वे अब अपने सामने खड़ी परेशानियों से जूझ नहीं पा रहे हैं। कुछ लोगों को लगता है कि उनकी नौकरी दुनिया की सबसे ख़राब नौकरी है। कुछ को लगता है कि उनकी स्वास्थ्य समस्याएँ सबसे ज़्यादा गंभीर हैं; कि उनके जितनी शारीरिक तकलीफ़ें किसी और को हो ही नहीं सकती हैं। जीवन में कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि हम जितनी ज़्यादा तकलीफ़ें झेल रहे हैं, उतनी किसी और के जीवन में नहीं हैं।

एक यादगार कहानी

 

एक लोककथा है, जिसमें एक जंगल में एक सन्यासी रहते थे, जो अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध थे। लोग दूर-दूर से उनके पास अपनी समस्याओं का हल पूछने के लिए आते थे। एक दिन एक स्त्री उनके पास सलाह लेने के लिए आई।

उन्होंने पूछा, “बेटी, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?”

वो बोली, “मेरे घर की हालत बहुत ख़राब है। मैं अपने पति और दो बच्चों के साथ एक छोटी सी झोंपड़ी में रहती हूँ। उस झोंपड़ी में मुश्किल से हम चारों ही समा पाते हैं। मैं एक बड़ी झोंपड़ी में रहना चाहती थी, लेकिन मेरे पति का काम ठीक नहीं चल रहा है और हम बड़ी झोंपड़ी नहीं ले सकते हैं। अब हालात और अधिक बिगड़ गए हैं – मेरे पति के पिता की नौकरी भी चली गई है, तो उसके माता-पिता भी हमारे साथ आकर रहने लगे हैं। हम तो पहले ही मुश्किल से रह रहे थे, लेकिन अब तो छोटी सी जगह में छः लोगों का इकट्ठे रहना बिल्कुल ही दूभर हो गया है। मुझसे अब और अधिक बर्दाश्त नहीं होता है। मेरा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने का मन करता है!”

सन्यासी ने एक पल सोचा और फिर कहा, “क्या तुम्हारे पास गाय है?”

स्त्री बोली, “हाँ, हमारे पास गाय है।”

सन्यासी ने कहा, “मेरी सलाह है कि तुम गाय को झोंपड़ी के अंदर ले आओ और एक सप्ताह उसे अपने साथ रखो। उसके बाद तुम मेरे पास दोबारा आना।”

वो स्त्री हैरान हो गई। लेकिन उसने सोचा कि क्योंकि सन्यासी बहुत बुद्धिमान थे, तो ज़रूर गाय को घर के अंदर लाने से कोई चमत्कार होगा। इसीलिए उसने वैसा ही किया।

अगला सप्ताह बहुत ही मुश्किल रहा। झोंपड़ी में इतनी अधिक भीड़ हो गई थी कि जब भी गाय किसी दिशा में मुड़ती, परिवार के सभी छः लोगों को अपनी-अपनी जगह बदलनी पड़ती। जब वो सोने की कोशिश करते, तो बदबू के कारण सो नहीं पाते, और गाय रात भर आवाज़ें भी निकालती रहती, जिससे वो बार-बार जाग जाते।

जब सप्ताह ख़त्म हुआ, तो वो स्त्री दोबारा सन्यासी के पास गई और चिल्लाने लगी, “ये आपने क्या किया? मैं आपके पास आई थी ताकि चीज़ें बेहतर हो सकें, लेकिन अब तो मैं पहले से भी ज़्यादा परेशान हूँ। आपकी सलाह बिल्कुल भी काम नहीं आई है।”

सन्यासी ने एक क्षण सोचकर कहा, “क्या तुम्हारे पास मुर्गियाँ हैं?”

“हाँ,” वो बोली।

सन्यासी ने कहा, “उन्हें भी अपने साथ एक सप्ताह के लिए झोंपड़ी के अंदर ले जाओ।” स्त्री को समझ में नहीं आया कि इससे क्या फ़ायदा होगा, लेकिन क्योंकि वो एक बुद्धिमान सन्यासी थे और उनकी सलाह से गाँव में हर किसी को लाभ हुआ था, इसीलिए उसने सोचा कि वो उनकी सलाह पर अमल करके देखती है।

जब वो घर लौटी, तो उसने झोंपड़ी के पीछे से सारी मुर्गियाँ इकट्ठी कीं और उन्हें घर के अंदर ले आई। अगले एक सप्ताह तक मुर्गियाँ झोंपड़ी में यहाँ-वहाँ फुदकती रहीं, और उन्होंने हर चीज़ अस्त-व्यस्त कर दी।

एक सप्ताह बाद वो स्त्री फिर से सन्यासी के पास आई और रोते हुए बोली, “आप तो पूरे पागल हैं। आपकी सलाह बहुत ही ख़राब निकली। अब तो झोंपड़ी में रहना असंभव हो गया है। गाय इधर-उधर मुड़ती रहती है और हमसे टकराती रहती है। मुर्गियाँ पूरी झोंपड़ी में उड़ती रहती हैं। मेरे सास-ससुर इतनी बदबू के कारण ठीक से साँस नहीं ले पा रहे हैं और हर वक़्त शिकायत करते रहते हैं कि हमारे साथ रहना कितना तकलीफ़दायी है। मेरे बच्चों को खाने में मुर्गियों के पंख मिलते हैं। मेरे पति रोज़ घर की हालत को लेकर मुझसे लड़ते हैं और कहते हैं, ‘ये सब तुम्हारी गलती है!’”

सन्यासी ने एक पल सोचा और फिर कहा, “बेटी, घर जाओ और एक अन्य उपाय आज़माओ। गाय और मुर्गियों को झोंपड़ी से बाहर कर दो। फिर एक सप्ताह बाद आकर मुझसे मिलो।”

वो स्त्री हालाँकि सन्यासी की सलाहों से तंग आ गई थी, लेकिन उसने सोचा कि एक आख़िरी बार उनकी सलाह पर अमल करके देखती है। वो घर आई और गाय को झोंपड़ी से बाहर निकाल दिया। उसने मुर्गियों को भी बाहर निकाला और घर के पिछवाड़े छोड़ दिया।

एक सप्ताह बाद वो स्त्री फिर से सन्यासी के पास आई।

 

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“अब हालात कैसे हैं?” सन्यासी ने पूछा।

“आपका बहुत-बहुत शुक्रिया! आप सच में बहुत बुद्धिमान हैं। जब से मैंने गाय और मुर्गियों को घर से बाहर निकाला है, तब से मैं बहुत ही खुश हूँ। वातावरण बहुत शांत हो गया है।”

सन्यासी बस मुस्करा दिए। वो स्त्री घर लौट गई और अपने पति, बच्चों, और सास-ससुर के साथ खुशी-खुशी रहने लगी।

यह कहानी दर्शाती है कि हम ज़्यादातर अपनी परिस्थितियों से नाखुश ही रहते हैं, जब तक हमें यह एहसास नहीं होता कि चीज़ें इससे भी बदतर हो सकती हैं। हम सोचते रहते हैं कि हमारी नौकरी बहुत ख़राब है, जब तक कि हमारी नौकरी छूट नहीं जाती है और हमें पता चलता है कि आमदनी के बिना जीवन और ज़्यादा ख़राब है। हमें लगता है कि हमारा स्वास्थ्य बहुत ख़राब है, जब तक कि हम अस्पताल में समय नहीं बिताते हैं और अन्य लोगों को अपने से भी बदतर स्थिति में देखते हैं। हमें लगता है कि हमारे परिवार के सदस्य बहुत ख़राब हैं, जब तक कि हम ख़ुद को अकेला नहीं पाते हैं और महसूस करते हैं कि उनके बिना जीवन कितना कठिन है। हमें हमेशा लगता है कि दूसरों के घर की घास हमारे घर की घास से ज़्यादा हरी है।

उस स्त्री ने सीखा कि जिस परिस्थिति को वो ख़राब समझ रही थी, वो असल में उतनी ख़राब नहीं थी जितनी बाद में हो गई थी। यह सोचना इंसानी स्वभाव है कि बाकी सबका जीवन तो बहुत अच्छा चल रहा है और ये हम ही हैं जो मुश्किलों से घिरे हुए हैं।

 

प्रभु में विश्वास

 

अगली बार जब हम सोचें कि हालात बहुत ख़राब हैं और प्रभु हमारी सुन नहीं रहे हैं, तो हमें बैठकर गहरी साँस लेनी चाहिए और दिमाग़ को आराम देना चाहिए। हमें प्रभु को मौका देना चाहिए कि वो चीज़ों को होने दें, और हमें धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए। जब सब कुछ हो चुकेगा, तो हम देखेंगे कि अंत में प्रभु द्वारा की गई चीज़ें हमारे लिए ठीक ही निकली हैं। बाद में अगर हम गहराई से विचार करेंगे, तो हम पायेंगे कि अगर प्रभु ने हमारी शिकायतें सुनी होतीं और हमें अपने हिसाब से चीज़ें करने दी होतीं, तो परिणाम हमारे लिए दुखद ही होता।

ख़ुशी एक मानसिक अवस्था है। अगर हमें लगेगा कि प्रभु वो नहीं कर रहे हैं जो हमारे लिए सही है, तो हम हमेशा दुखी ही रहेंगे। अगर हमें लगेगा कि हम वैसा जीवन जी रहे हैं जैसा प्रभु हमारे लिए चाहते हैं, और प्रभु हमें वही दे रहे हैं जो हमारे लिए सही है, तो हम हमेशा ख़ुश और संतुष्ट रहेंगे।

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लेखक के बारे में

Sant Rajinder Singh Ji sos.org

 

 

 

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म व ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक व बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सम्मानित किया गया है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक अध्यक्ष होने के नाते, वे संसार भर में यात्राएँ कर लोगों को आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की प्रक्रिया सिखाते हैं, जिससे शांति, ख़ुशी, और आनंद की प्राप्ति होती है।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें। Facebook YouTube Instagram पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को फ़ॉलो करें।