प्रभु की बनाई सृष्टि की सेवा

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

हर शाम एक परिवार रात का भोजन करने के लिए बैठता था और भोजन से पहले प्रभु से प्रार्थना करता था। प्रार्थना के अंत में पिता हमेशा प्रभु से निवेदन करता था कि वे अतिथि के रूप में आयें और उसके परिवार के साथ भोजन ग्रहण करें। हर रात भोजन से पहले, प्रार्थना की समाप्ति पर पिता यही शब्द दोहराता था। उसका छोटा बेटा रोज़ रात को बहुत ध्यान से यह प्रार्थना सुनता था।

 

एक दिन बेटे ने अपने पिता से पूछा, “आप रोज़ रात को प्रभु को बुलाते क्यों रहते हैं जबकि प्रभु कभी भी नहीं आते?”

 

पिता के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था, फिर भी उसने कहा, “ बेटा, हम प्रतीक्षा करते रहेंगे। मुझे विश्वास है कि प्रभु रोज़ रात को हमारा आमंत्रण अवश्य सुनते हैं।”

 

“पिता जी, अगर आप सच में प्रभु से अपेक्षा रखते हैं कि वे हमारे यहाँ भोजन के लिए आयें, तो आप कभी भी टेबल पर प्रभु के लिए प्लेट क्यों नहीं लगाते? अगर आप सच में चाहते हैं कि प्रभु आयें, तो हमें उनके लिए प्लेट अवश्य लगानी चाहिए।”

 

पिता अपने बेटे के इन सवालों और गहरी सूझबूझ के आगे शर्मिंदा हो गया। बेटे के सवालों का अंत करने के लिए उसने टेबल पर प्रभु के लिए स्थान लगा दिया। उसने बढ़िया चम्मच, प्लेट, नैपकिन और गिलास वहाँ रख दिया।

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उसने यह सब टेबल पर रखा ही था कि उसी समय दरवाज़े पर दस्तक हुई। बेटा यह सोचकर उत्साहित हो गया कि प्रभु आ गए हैं। जब उसने दरवाज़ा खोला, तो देखा कि एक छोटा निर्धन, बेघर लड़का बाहर खड़ा है। वो काँप रहा था, क्योंकि बाहर कड़कड़ाती ठंड थी। बेटा पहले तो हैरान हो गया क्योंकि उसने सोचा था कि बाहर प्रभु आए होंगे। लेकिन फिर उसने एक पल सोचा और बोला, “मुझे लगता है कि प्रभु आज आ नहीं पाए, इसीलिए उन्होंने इस लड़के को भेज दिया है।”

 

“अंदर आओ,” वो बोला, और उसने लड़के को टेबल पर उसी खाली स्थान पर बैठाया जिसे प्रभु के लिए सजाया गया था।

यह कहानी हमें याद दिलाती है कि हमें नहीं पता प्रभु किस रूप में हमारे पास आयेंगे। कई लोग केवल प्रभु की ही सेवा करना चाहते हैं। हम यह नहीं जानते कि प्रभु की बनाई सृष्टि की सेवा करना प्रभु की सेवा करना ही है। हर दिन जीवन में हमें दूसरों की मदद करने के अनेक मौके मिलते हैं। जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हम प्रभु की संतानों की ही मदद करते हैं।

सब लोग प्रभु का ही अंश हैं। जब हम किसी की सहायता करने से मना कर देते हैं, तो हम प्रभु की एक संतान को ही मना कर रहे होते हैं। जब हम प्रभु की बनाई किसी कृति की मदद नहीं करते हैं, तो हम यह अपेक्षा कैसे रख सकते हैं कि प्रभु हमसे ख़ुश होंगे?

 

अध्यात्म का अर्थ है दूसरों की ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील और समझदार होना। जहाँ एक ओर हम ध्यानाभ्यास के द्वारा आध्यात्मिक रूप से तरक्की करने का प्रयास करते हैं, वहीं दूसरी ओर हमें अपने दिल को बड़ा करना चाहिए ताकि हम समस्त सृष्टि को एक ही परिवार की तरह देख सकें। तब हम देखेंगे कि बदले में अपने लिए कुछ भी चाहे बिना, हम पूरे दिल से दूसरों की मदद करने लगेंगे। जब हम ऐसा करेंगे, तो हम देखेंगे कि हमने सही मायनों में प्रभु की ख़ुशी हासिल कर ली है।

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लेखक के बारे में

Sant Rajinder Singh Ji sos.org

 

 

 

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म व ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक व बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सम्मानित किया गया है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक अध्यक्ष होने के नाते, वे संसार भर में यात्राएँ कर लोगों को आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की प्रक्रिया सिखाते हैं, जिससे शांति, ख़ुशी, और आनंद की प्राप्ति होती है।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें। Facebook YouTube Instagram पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को फ़ॉलो करें।

 

 

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