जियो और जीने दो
आज के अपने वेब प्रसारण में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने हमें याद दिलाया कि हम अपने जीवन के सच्चे उद्देश्य की ओर ध्यान दें। अगर हमें इस मानव चोले में आने के उद्देश्य को पूरा करना है, तो हमें अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहना चाहिए और अपने प्रयासों में नियमित बने रहना चाहिए।
नैतिक जीवन जीने और रोज़ाना ध्यानाभ्यास करने के साथ-साथ, यह ज़रूरी है कि हम दूसरों के साथ “जियो और जीने दो” का व्यवहार करें। ज़्यादातर हम अपनी समझ को ही सबसे सही मानते हैं, महाराज जी ने आगे फ़र्माया; हम अपने सीमित दृष्टिकोण से सबको सही या गलत ठहराते रहते हैं, और उनमें कमियाँ ढूंढते रहते हैं। फिर, उनकी मदद करने के इरादे से, हम अपने विचार और नज़रिया उन पर थोपने लगते हैं। हमें यह एहसास ही नहीं होता है कि इससे उनकी कोई मदद नहीं होती है।
जब हम यह मान लेते हैं कि हम दूसरों से बेहतर हैं और हमें पता है कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं, तो हम अपने अहंकार को बढ़ावा देते हैं, जिससे हमारी आध्यात्मिक तरक्की में बाधा आती है। जब हम अपने विचारों को ज़बरदस्ती दूसरों के ऊपर थोपते हैं, तो हम दूसरों को तकलीफ़ पहुँचाते हैं और हलचल पैदा करते हैं, जिससे सभी की शांति भंग हो जाती है।
हमें चाहे जो भी लग रहा हो, हम किसी की परिस्थिति को तब तक पूरी तरह से नहीं समझ सकते जब तक हम उनके जूतों में एक मील चलकर न देख लें, संत राजिन्दर सिंह जी ने फ़र्माया। हम में से हरेक की प्रभु के पास वापस जाने की अलग-अलग यात्रा है, और हालांकि हमें ज़रूरत पड़ने पर दूसरों की सहायता अवश्य करनी चाहिए, लेकिन जिस व्यक्ति को सुधारने की ओर हमें ध्यान देना चाहिए वो हम ख़ुद हैं। हमें ईमानदारी से अपनी कमियां सुधारने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम अपने जीवन को बेहतर बना सकें। जब हम अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहते हैं और बाहरी भटकावों से बचे रहते हैं, तो हम अपनी आत्मा की मिलाप परमात्मा में करवाने के लिए तेज़ी से कदम उठाते जाते हैं। इससे न केवल हमारे अपने जीवन में बल्कि हमारे आसपास के लोगों के जीवन में भी शांति आती है।