संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज (20 सितम्बर 2019 को दिल्ली, भारत, में जन्म) एक अंतर्राष्ट्रीय ग़ैर-लाभकारी संगठन के अध्यक्ष हैं, जिसे भारत में ‘सावन कृपाल रूहानी मिशन’ और पश्चिमी देशों में ‘साइंस औफ़ स्पिरिच्युएलिटी’ (SOS) के नाम से जाना जाता है। साइंस औफ़ स्पिरिच्युएलिटी के दुनिया भर में लाखों सदस्य हैं। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म के द्वारा तथा आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने के द्वारा आंतरिक और बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सराहा गया है।
जीवनी
जीवन और करियर
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने इंडियन इंस्टीट्यूट औफ़ टैक्नोलौजी, मद्रास, भारत, से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की स्नातक डिग्री प्राप्त की, तथा इलिनोई इंस्टीट्यूट औफ़ टैक्नोलौजी, शिकागो, इलिनोई, यू.एस.ए., से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की मास्टर्स डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक शिक्षा भारत के दो महापुरुषों से प्राप्त कीः संत कृपाल सिंह जी महाराज (1894-1974) और संत दर्शन सिंह जी महाराज (1921-1989)। विज्ञान और अध्यात्म, इन दोनों क्षेत्रों में प्रशिक्षित होने के कारण महाराज जी पुरातन आध्यात्मिक शिक्षाओं को आधुनिक काल की स्पष्ट व सरल भाषा में प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं। विज्ञान, कम्प्यूटर्स, और संचार के क्षेत्र में महाराज जी का बीस वर्षों का उल्लेखनीय करियर रहा है।
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज, संत दर्शन सिंह जी महाराज (1921-1989) के पुत्र तथा संत संत कृपाल सिंह जी महाराज (1894-1974) के पोते हैं।
महाराज जी फ़र्माते हैं, “ध्यानाभ्यास का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे न केवल हमारे अपने घर में शांति होगी, बल्कि हम संपूर्ण विश्व में शांति लाने में भी अपना योगदान दे पायेंगे। आज पूरी दुनिया में लोग शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। लेकिन जैसे कि कहावत है, परोपकार पहले अपने घर से शुरू होता है। विश्व में शांति तभी आ सकती है जब हम में से हरेक व्यक्ति ख़ुद शांत हो और अपने-अपने दायरे में शांति लाए। यदि हम अपने-अपने व्यक्तिगत दायरों में शांति ले आयेंगे, तो उनका प्रभाव एक साथ मिलकर जुड़ता चला जाएगा, और इस तरह संपूर्ण विश्व में शांति फैल जाएगी।”
वर्ष 2000 में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज सैकड़ों धर्माचार्यों के उस प्रतिनिधि-मंडल के सदस्य थे जो न्यूयौर्क में आयोजित किए गए मिलैनियम वल्र्ड पीस सम्मिट औफ़ रिलीजियस ऐन्ड स्पिरिच्युअल लीडर्स (धार्मिक और आध्यात्मिक अध्यक्षों का सहस्राब्दि विश्व शांति सम्मेलन) में भाग लेने के लिए आए थे। न्यूयौर्क टाइम्स के अनुसार, “यह कार्यक्रम अपनी धार्मिक विविधता के कारण और यूनाइटेड नेशन्स में आयोजित होने के कारण असाधारण था।” संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने न्यूयौर्क टाइम्स को बताया, “जब हम बैठकर उनसे (अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों) बात करते हैं, तो हम देखते हैं कि वो हमसे ज़्यादा अलग नहीं हैं।”
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें शामिल है ध्यान के द्वारा आंतरिक व बाह्य शांति, जोकि बारन्स ऐन्ड नोबल प्रकाशक की प्रथम नम्बर की बैस्टसेलर ध्यानाभ्यास पुस्तक थी।
दर्शन ऐजूकेशन फ़ाउन्डेशन का संस्थापक होने के नाते, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने भारत के अनेक शहरों में दर्शन एकेडमी स्कूलों (प्री-किंडरगार्टन से लेकर बारहवीं कक्षा तक) की स्थापना की है। पारंपरिक शैक्षिक वातावरण में ध्यानाभ्यास और आध्यात्मिक पाठ्यक्रम को शामिल करने वाले इस फ़ाउन्डेशन के दो प्रमुख उद्देश्य हैं: पहला, ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण करना जो शारीरिक व मानसिक रूप से विकसित होने के साथ-साथ आध्यात्मिक रूप से भी उन्नत हों; और दूसरा, प्रत्येक विद्यार्थी के अंदर विश्व का एक संयुक्त दृष्टिकोण विकसित करना, जोकि जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, या आर्थिक दशा से परे व ऊपर हो। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज 1998 में 16वें अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता सम्मेलन के अध्यक्ष थे।
दर्शन
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज सभी धर्मों की मूल एकता और सद्भावना पर ज़ोर देते हैं। वे कहते हैं कि उनका उद्देश्य है “अध्यात्मवाद में से रहस्यवाद को मिटा देना, ताकि लोग अपने जीवन में अध्यात्म को सक्रिय रूप से अपना सकें। ऐसा करने से, वे स्वयं अपनी सहायता करेंगे, और साथ ही अपने आसपास के लोगों को भी आनंद और सार्वभौमिक प्रेम प्राप्त करने में सहायता करेंगे।” वे शांति प्राप्त करने के लिए ध्यानाभ्यास की विधि पर ज़ोर देते हैं। जैसा कि वे समझाते हैं, “हमारे अंदर एक दिव्य सत्ता मौजूद है, जिससे हमारी बुद्धि और विवेक उत्पन्न होते हैं। इस दिव्य सत्ता, बुद्धि, और विवेक से जुड़ने की विधि को ही ध्यानाभ्यास कहते हैं। अगर हम ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने ज्ञान को विवेक में बदल लें, और समस्त जीवन के पीछे की चलाने वाली शक्ति का अनुभव कर लें, तो हम मानव एकता की कुंजी को पा लेंगे। इस अनुभव से हमारे साथ-साथ हमारे आसपास के लोगों का जीवन भी बदल जाएगा। ये सभी व्यक्तिगत परिवर्तन आख़िरकार सामुदायिक, राष्ट्रीय, और वैश्विक स्तरों पर एकता और शांति ले आयेंगे।” (यूनाइटेड स्टेट्स तटरक्षक बल अकादमी में दिए गए व्याख्यान “नेत्तृत्व के नैतिक आयाम” में से उद्धृत)
ध्यानाभ्यास
ध्यानाभ्यास एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा एक जिज्ञासु अपने अंदर मौजूद प्रभु की ज्योति व श्रुति के संपर्क में आ सकता है। साइंस औफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक गुरु यही समझाते हैं कि (1) दिव्य ज्योति व श्रुति की धारा पूरी सृष्टि में गूंज रही है; (2) इस दिव्य धारा पर ध्यान टिकाने से हम आंतरिक रूहानी मंडलों की यात्रा पर जा सकते हैं; और (3) एक आध्यात्मिक गुरु की सहायता व मार्गदर्शन से, इस यात्रा के अंत में हम प्रभु को जान पाते हैं और अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करा पाते हैं। टाइम्स औफ़ इंडिया अख़बार में संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने कहा है, “इंसानों को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की विशेष क्षमता दी गई है। यह अवसर प्रत्येक इंसान को दिया गया है, लेकिन कुछ ही लोग इससे फ़ायदा उठाते हैं। इस देन से पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए हमें ध्यानाभ्यास करने की ज़रूरत है।”
विज्ञान और अध्यात्म
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज द्वारा सिखाई जाने वाली ध्यानाभ्यास विधि को विज्ञान कहते हैं; यह सभी संस्कृतियों के लोगों द्वारा अपनाई जा सकती है। इस विधि में, जिज्ञासु अपने शरीर की प्रयोगशाला के भीतर ही ध्यान टिकाने का प्रयोग करते हैं। ऐसा करने से, जिज्ञासु को दिव्य ज्योति व श्रुति का व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त होता है, और वो स्वयं जान जाता है कि इस भौतिक संसार से परे भी कुछ है।
इंडियन इंस्टीट्यूट औफ़ टैक्नोलौजी, मुंबई, के विद्यार्थियों व शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने बताया, “विज्ञान और अध्यात्म में एक बहुत अच्छी साँझेदारी है। अगर विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े लोग अपने अंतर के मौन में कुछ समय बितायें, तो उन्हें आंतरिक प्रेरणा मिलेगी, जो उन्हें उन जवाबों तक ले जाएगी जिन्हें वे ढूंढ रहे हैं। अगर अध्यात्म में रूचि रखने वाले लोग, किसी धारणा का परीक्षण करने के नियम को अपने शरीर की प्रयोगशाला में लागू करेंगे, तो उन्हें परिणाम अवश्य मिलेंगे। हरेक व्यक्ति आध्यात्मिक सच्चाइयों को प्रमाणित करने में सफल होने की क्षमता रखता है। ऐसी कोशिशें विश्व को एक बेहतर स्थान बनाती हैं, और साथ ही हमें अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने में मदद भी करती हैं।”
अवार्डस व सम्मान
अवार्डस
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अनेक अवार्डस व सम्मान प्राप्त हैं:
- जून 1997 में टैम्पल औफ़ अंडरस्टैन्डिग ऐन्ड द इन्टरफ़ेथ सेंटर औफ़ न्यूयौर्क के द्वारा “पीस अवार्ड” (शांति पुरस्कार)
- 2010 में सैन रैमोन, कैलीफ़ोर्निया, की नगरपालिका के द्वारा पुरस्कार
- बोगोटा, कोलम्बिया, के राष्ट्रीय शिक्षा मंत्री के द्वारा “द मैडल औफ़ कल्चरल मैरिट” (सांस्कृतिक श्रेष्ठता पदक)
- सितम्बर 2012 में न्यूयौर्क राज्य के द्वारा “एैक्ज़ेम्प्लरी सर्विस टू ह्यूमैनिटी अवार्ड” (मानवता की अनुकरणीय सेवा पुरस्कार)
- शिकागो, इलिनोई, में स्थित इलिनोई इंस्टीट्यूट औफ़ टैक्नोलौजी द्वारा “डिस्टिन्ग्विश्ड लीडरशिप अवार्ड” (विशिष्ट नेतृत्त्व पुरस्कार)
- नवम्बर 2008 में मैक्सिको राज्य के राष्ट्रपति के द्वारा पुरस्कार
- बोगोटा, कोलिम्बिया, के शिक्षा मंत्रालय में शिक्षा मंत्री के द्वारा साइमन बोलीवर अवार्ड
- मैक्सिको राज्य के मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष के द्वारा “ह्यूमन राइट्स अवार्ड” ( मानव अधिकार पुरस्कार)
- आटोनोमा यूनिवर्सिटी औफ़ मैक्सिको, टोलूका, के द्वारा शिक्षा, शांति, और अध्यात्म के क्षेत्रों में योगदान के लिए पुरस्कार
- नवम्बर 1998 में शिकागो, इलिनोई, में स्थित इलिनोई इंस्टीट्यूट औफ़ टैक्नोलौजी द्वारा शांति और अध्यात्म के क्षेत्रों में योगदान के लिए “डिस्टिन्ग्विश्ड लीडरशिप अवार्ड” (विशिष्ट नेतृत्त्व पुरस्कार)
डाक्टरेट उपाधियाँ
- संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को, विज्ञान एवं शिक्षा के क्षेत्रों में अध्यात्म का समावेश करने के लिए, और मानव एकता स्थापित करने के उनके अथक प्रयासों के लिए, विश्व के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा पाँच डाक्टरेट उपाधियों से सम्मानित किया गया है।
व्याख्यान और गतिविधियाँ
मुख्य व्याख्यान व संदेश
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को सालों से अनेक सम्मेलनों और कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि की हैसियत से भाषण व संदेश देने के लिए आमंत्रित किया गया है।
मई 2016 में न्यूयौर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में महाराज जी ने समझाया कि कैसे आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने से हमें आंतरिक शांति प्राप्त हो सकती है, जिससे फिर बाहरी संसार में भी एकता, प्रेम और शांति के पुल बनाने में मदद मिलती है।
अगस्त 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ, न्यूयौर्क, में धार्मिक और आध्यात्मिक अध्यक्षों के विश्व शांति शिखर सम्मेलन में अपने संदेश में, जिसका शीर्षक था “क्षमा और करुणा की प्रकृति”, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने फ़र्माया, “अध्यात्म इस सच्चाई को पहचानना है कि बाहरी नामों और लेबलों के पीछे हम सभी आत्माएँ हैं, एक ही परमात्मा के अंश हैं . . . . जब हम ऐसा दृष्टिकोण विकसित कर लेते हैं, तो हम पक्षपात और भेदभाव की आँखों से देखना बंद कर देते हैं।” संयुक्त राष्ट्र के महासचिव, कोफ़ी अन्नान, के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में भी महाराज जी ने अपना संदेश दिया।
नवम्बर 1999 में यूनाइटेड स्टेट्स कोस्टगार्ड एकेडमी, न्यू लंडन, कनैक्टीकट, में एकेडमी के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए, अपने संदेश “नेतृत्त्व के नैतिक आयाम” में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने उन्हें सफल नेतृत्त्व के लिए खाका प्रदान किया।
नवम्बर 1994 में रीवा डेल गार्ड, इटली, में विश्व धर्म और शांति सम्मेलन की छठी सभा में, अपने व्याख्यान “संसार के कष्ट का उपचार करना” में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने समझाया, “संसार का उपचार करने के लिए, हमें पहले स्वयं अपना उपचार करना होगा। संसार में शांति लाने के लिए, हमें पहले ख़ुद शांत होना होगा। ऐसा हम ध्यानाभ्यास के द्वारा कर सकते हैं।”
1998 में वियैना, आस्ट्रिया, में विश्व धर्म और शांति सम्मेलन की शिखरवार्ता में, अपने संदेश “विश्व शांति का निर्माण” में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अपनी आत्मा के साथ, और अपने अंतर में मौजूद दिव्य सत्ता के साथ, जुड़ने के लिए ध्यानाभ्यास के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने फ़र्माया, “जब हम अनुभव कर लेंगे कि दुनिया के सभी लोग उसी प्रकाश से बने हैं जिससे हम बने हैं, तो हम दूसरों के दर्द को महसूस करने लगेंगे . . . . हमारा दृष्टिकोण वैश्विक हो जाएगा, और हम ऐसे निर्णय लेने लगेंगे जो सारी दुनिया के हमारे भाइयों और बहनों को लाभ पहुँचायेंगे।”
शैक्षिक और चिकित्सक संस्थानों में व्याख्यान
- नवम्बर 1996 में हार्वर्ड यूनीवर्सिटी, कैम्ब्रिज, मैसाचुसैट्स, में आंतरिक और बाहरी संचार के विषय पर
- फरवरी 2002 में औल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ़ मेडिकल साइन्सेज़ में
- सितम्बर 1999 में यूनीवर्सिटी औफ़ कैलिफ़ोर्निया, बक्र्ली, में
- जुलाई 1993 में नेशनल इंस्टीट्यूट औफ़ हैल्थ, वाशिंगटन, डी.सी., में
वैजी फ़ैस्ट
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ही वैजी फ़ैस्ट के पीछे की प्रेरणा हैं, जोकि उत्तरी अमेरिका का सबसे बड़ा शाकाहार जीवनशैली महोत्सव है। साइंस औफ़ स्पिरिच्युएलिटी के द्वारा आयोजित, और 30 से भी अधिक विक्रेताओं की भागीदारी वाले, इस महोत्सव में शाकाहारी जीवनशैली के लाभों और ख़ुशियों को प्रदर्शित किया जाता है। यह लाइल/नेपरविल, इलिनोई, में आयोजित किया जाता है। 2016 में वैजी फ़ैस्ट का 11वाँ साल था, और यह अब तक का सबसे बड़ा आयोजन भी था: पूरी दुनिया से आए 800 से भी अधिक सेवादारों ने इस दो-दिवसीय महोत्सव में कई हज़ार अतिथियों का स्वागत किया। हर साल यहाँ आने वाले प्रतिभागी बहु-आयामी कार्यक्रमों में भाग लेते हैं, जिनमें शामिल होते हैं: एक अंतर्राष्ट्रीय फूड कोर्ट; विक्रेताओं के टेन्ट और प्रसिद्ध शेफ़्स के द्वारा खाना बनाने की विधियों का प्रदर्शन; लाइव संगीत; रक्तदान कैम्प; “शाकाहार चुनौती लीजिए” टेन्ट; और “ध्यानाभ्यास चुनौती लीजिए” टेन्ट।
अतिथि दिन भर अलग-अलग डाक्टरों और चिकित्सकों के व्याख्यान भी सुन सकते हैं, जिनमें बताया जाता है कि शाकाहार के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया जाता है, तथा हमारे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, और आत्मिक स्वास्थ्य पर शाकाहार के सकारात्मक असर के बारे में समझाया जाता है। दोनों दिन का मुख्य संदेश देते हैं संत राजिन्दर सिंह जी महाराज।
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज के आगामी कार्यक्रम
प्रकाशन
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तकें व लेख, पचास से भी अधिक भाषाओं में उपलब्ध हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं:
- 2016 – बिल्डिंग ब्रिजस थ्रू मेडिटेशन (ध्यान के द्वारा पुल बनाना)
- 2012 – मेडिटेशन ऐज़ मेडिकेशन फ़ौर द सोल (ध्यान के द्वारा आत्मा का उपचार)
- 1999 – एैम्पावरिंग योर सोल थ्रू मेडिटेशन (ध्यान के द्वारा आत्मा का सशक्तिकरण)
- 1996 – इनर ऐन्ड आउटर पीस थ्रू मेडिटेशन (ध्यान के द्वारा आंतरिक व बाह्य शांति)
और अधिक जानना चाहेंगे?
हम कौन सी रेस में दौड़ रहे हैं?
क्या आपको ऐसा लगता है कि आपके दिन ऐसे गुज़रते हैं मानो आप एक ट्रैडमिल (व्यायाम की मशीन) पर दौड़ रहे हों और कहीं भी न पहुँच रहे हों? क्या आप दिन के अंत में बहुत अधिक थक जाते हैं, और फिर भी ऐसा महसूस करते हैं कि कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं कर पाये हैं?
सैद्धांतिक को व्यावहारिक में बदलना
हम सभी यह जानते हैं कि जब भी हम इस संसार के किसी भी क्षेत्र का अध्ययन करना चाहते हैं, तो हम एक ऐसे शिक्षक के पास जाते हैं जो उस क्षेत्र में माहिर होता है। अगर हम भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ना चाहते हैं, तो हम किसी वरिष्ठ शिक्षक या प्रोफ़ेसर के पास जाते हैं। वो शिक्षक हमें उस विषय का सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करता है। यदि मूल बातें स्पष्ट हैं, तो हम अपना पूरा ज्ञान उन मजबूत बुनियादी बातों पर बना सकते हैं। यही अध्यात्म के लिए भी सच है।
ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप
जिस प्रकार खिलाड़ी अलग-अलग खेलों में वर्ल्ड कप के लिए स्पर्धा करते हैं, उसी प्रकार हम भी ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप पाने के लिए प्रयास कर सकते हैं। वर्ल्ड कप, ओलम्पिक्स, या एन.बी.ए., एन.एफ़.एल., एन.एच.एल., एम.एल.बी., या फीफा जैसी प्रतियोगिताएँ हमें इस बात पर हैरान होने को मजबूर कर देती हैं कि इंसानी साहस से क्या-क्या संभव हो सकता है।