ध्यानाभ्यास गहन निराशा से कैसे लड़ सकता है
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
29 सितम्बर 2018
विश्व भर में लाखों लोग गहन निराशा या अवसाद से पीड़ित हैं। इससे हमारी शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह की सेहत पर असर पड़ता है। मानसिक चिकित्सकों से इलाज करवाने के साथ-साथ, ध्यानाभ्यास भी निराशा के प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
ध्यानाभ्यास किस प्रकार गहन निराशा या अवसाद से लड़ सकता है?
सबसे पहले, जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हमारी हृदय-गति और श्वास-गति धीमी हो जाती है। इससे हमारा तनाव कम होता है, तथा हमारे शरीर में कॉर्टिसोल और एड्रीनेलिन के स्तरों में गिरावट आती है। इन तनाव-संबंधी हॉरमोनों में कमी आ जाने से, हम शांत होते चले जाते हैं।
दूसरा, ध्यानाभ्यास के दौरान हमारे मस्तिष्क की तरंगें धीमी होकर 4-7 हर्ट्ज़ तक पहुँच जाती हैं, जिससे हमारा मस्तिष्क शांत व संतुलित अवस्था में आ जाता है। अपने मन को शांत करने से हम नकारात्मक, दुखी, और तनावग्रस्त विचारों के चक्र को तोड़ पाते हैं।
तीसरा, और सबसे बड़ा प्रभाव, ध्यानाभ्यास का यह है कि हम अपने अंतर में एक शांति और ख़ुशी के स्थान में पहुँच जाते हैं। जहाँ बाहरी तौर पर लोग दवाई लेने के लिए अपने मेडिसिन कैबिनेट की ओर जाते हैं, वहीं हमारे अंतर में भी एक ऐसा कैबिनेट मौजूद है जो हमें एक ऐसे प्राकृतिक आनंद और शांति के साथ जोड़ देता है जिसके कोई हानिकारक उप-प्रभाव नहीं हैं और जो बिल्कुल मुफ़्त है।
जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हम अपने अंतर में एक ऐसे शांतिपूर्ण स्थल के साथ जुड़ जाते हैं जो हमें ख़ुशियों से भरपूर कर देता है। जब हम उस अवस्था में पहुँच जाते हैं, तो हमारी उदासी और निराशा अपने आप मिट जाती है। जब हम ध्यानाभ्यास कर रहे होते हैं, तो हम मानो अपने जीवन की समस्याओं से छुट्टी पर होते हैं। हम कुछ समय के लिए ख़ुशी की अवस्था में आराम कर पाते हैं। और ध्यानाभ्यास से बाहर आने के बाद भी वो आंतरिक ख़ुशी दिन भर हमारे साथ बनी रहती है।
आज ज़्यादा से ज़्यादा डॉक्टर अपने मरीज़ों को निराशा से लड़ने के लिए दवाइयों आदि के साथ-साथ ध्यानाभ्यास करने की भी सलाह देते हैं। ध्यानाभ्यास उन लोगों की मदद करता है जो अपने जीवन से निराशा को हटाना चाहते हैं और ख़ुशियाँ पाना चाहते हैं।