अपने ध्यानाभ्यास के समय को धीरे-धीरे बढ़ायें

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

4 जुलाई 2018

ध्यानाभ्यास के द्वारा हम अपनी आत्मा की शक्ति के साथ जुड़ सकते हैं। ज़्यादातर लोग इसकी शक्ति को महसूस किए बिना ही जीते रहते हैं। सभी ख़ज़ाने, जैसे ज्ञान, प्रेम, निर्भयता, संबद्धता, और परमानंद, हमारे भीतर ही गहराई में दबे पड़े हैं।

हमारी आत्मा अत्यधिक विवेक, प्रेम, और शक्ति का स्रोत है, लेकिन हम इससे अनजान ही बने रहते हैं क्योंकि हम इस समय बाहरी संसार के मायाजाल में उलझे हुए हैं।

हमारी इस अवस्था के बावजूद, हमारी आत्मा अंतर में पूरी तरह से सशक्त बनी रहती है। वो ही हमारा सच्चा स्वरूप है, और उसके साथ दोबारा जुड़ने के लिए – ताकि हम उसके गुणों का उपयोग कर अपने जीवन को समृद्ध बना सकें – हमें ध्यानाभ्यास में नियमित होना होगा।

ध्यानाभ्यास में संचयी प्रभाव

धैर्य – देखिए, हमें पलक झपकते ही अपने लक्ष्य तक पहुँच जाने की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। उदाहरण के लिए, जब हमें अपने घरों, सड़कों, या पार्कों की मरम्मत करानी होती है, तो हम ज़्यादातर गर्म और सूखे मौसम का इंतज़ार करते हैं। एक बार जब हम मरम्मत शुरू कर देते हैं, तो हम जान जाते हैं कि बहुत कोशिश करने पर भी ये काम रातोंरात पूरा नहीं होगा। इसमें समय लगेगा। धीरे-धीरे, एक-एक दिन करके, हमारे प्रयत्नों और लगन के कारण, हमारा काम आगे बढ़ता जाता है और आख़िरकार पूरा हो जाता है। ऐसा ही ध्यानाभ्यास के साथ भी है। हमारे रोज़ाना के नियमित प्रयासों के संचयी प्रभाव से ही हम अपने आध्यात्मिक लक्ष्य तक पहुँच पाते हैं।

एक-एक मिनट कर समय बढ़ायें

चेतनता की बढ़ती हुई अवस्थाएँ – जब हम ध्यानाभ्यास करते हैं, तो हमारे रोज़ाना के प्रयास हमें चेतनता की बढ़ती हुई अवस्थाओं में ले जाते हैं। अगर आज हम तीस मिनट ध्यान में बैठे हैं, तो आइए कल हम इकतीस मिनट बैठें। इस तरह अगर हम रोज़ एक-एक मिनट करके ध्यानाभ्यास का समय बढ़ाते जायेंगे, तो समय के साथ-साथ, हम दिन का दसवाँ हिस्सा ध्यानाभ्यास में दे पायेंगे, जोकि लगभग ढाई घंटे के करीब है। जब एक बार हम दो घंटे से अधिक ध्यानाभ्यास करने लगेंगे, तो धीरे-धीरे हम उस समय को तीन घंटे तक बढ़ा सकते हैं। अगर हम ध्यानाभ्यास के लाभों को लेकर उत्साहित होंगे, तो फिर हम अपने समय को धीरे-धीरे बढ़ाते चले जायेंगे, ताकि हम चार घंटे, और फिर पाँच घंटे के लिए बैठ सकें।

अपने ध्यान को प्रशिक्षित/नियंत्रित करना

रोज़ाना अभ्यास – कई लोग ध्यान टिकाने की विधि तो सीख लेते हैं, लेकिन उसका इतना अधिक अभ्यास नहीं करते कि उनका ध्यान अंतर में पूरी तरह से एकाग्र होना शुरू हो जाए। इस अवस्था तक पहुँचने के लिए, हमें रोज़ाना ध्यानाभ्यास करने की ज़रूरत है। शुरू-शुरू में अपने ध्यान को बाहर से हटाकर अंतर में एकाग्र करना मुश्किल होता है, क्योंकि हमारी आदत होती है कि हम अपने आसपास की बाहरी दुनिया में ही ध्यान लगाए रखते हैं। लेकिन हमें अपने मन को स्थिर करने की आवश्यकता है। हमें अपनी आँखें बंद करनी हैं, और जो कुछ भी हमारे सामने हो, उसे एकटक देखते रहना है। इसका मतलब है कि हमारी एकाग्रता बिल्कुल भी भंग नहीं होनी चाहिए; हमें कोई विचार भी नहीं आना चाहिए। अगर हम अपने मन को स्थिर कर पायें, तो हम अपने अंतर में दिव्य नूरानी ख़ज़ानों का अनुभव करने लगेंगे।

इसके साथ ही हमें यह समझ लेना भी ज़रूरी है कि हम फ़ौरन ही ध्यानाभ्यास में अपनी मंज़िल तक पहुँच नहीं जायेंगे। इसके बजाय, हमें धीरे-धीरे और पक्के तरीके से आगे बढ़ना चाहिए। ये वही तरीका है जो हम किसी भारी चीज़ को उठाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई चीज़ बहुत भारी हो और हमसे उठाई न जा रही हो, तो हम उसे कई छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट लेते हैं। इस तरीके से हम उसे उठाने में सफल रहते हैं। इसी तरीके का इस्तेमाल करने से हम ध्यानाभ्यास में भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं और आध्यात्मिक जागृति की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।

आदत से लाभ उठायें

अपने लक्ष्य तक पहुँचना – एक संतुलित जीवन जीना संभव है, जिसमें हम रोज़ाना ध्यानाभ्यास भी करें और अपने परिवार का पालन-पोषण भी करें, नौकरी या व्यापार करें, और निष्काम सेवा में भी समय दें। रोज़ाना ऐसा करने से हमारी आदत बन जाएगी, और फिर हमें उसका लाभ मिलेगा; हमारी एकाग्रता में बढ़ोतरी होगी, और साथ ही हम अधिक शांत व स्वस्थ जीवन जीने लगेंगे। इसीलिए, हमें अपने रोज़ाना धीरे-धीरे अपने ध्यानाभ्यास के समय को बढ़ाना चाहिए, और अपने आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर बढ़ते जाना चाहिए।

जैसे-जैसे हमारी एकाग्रता बढ़ती चली जाएगी, वैसे-वैसे हमें स्वयं अपनी क्षमता का एहसास होता जाएगा। हमारे अंदर एक बहुत बड़ा परिवर्तन आ जाएगा, जो हमारे जीवन के हरेक क्षेत्र को समृद्ध कर देगा – हमारे रिश्तों को; हमारे शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक स्वास्थ्य को; हमारे आध्यात्मिक विकास को; और हमारे जीवन के सभी लक्ष्यों की प्राप्ति को। इस परिवर्तन से हमारे जीवन में शांति व ख़ुशी का संचार हो जाएगा, और हम विश्व की शांति व ख़ुशी में भी योगदान दे पायेंगे।

अतिरिक्त संदेश

त्यौहारों का मौसम

त्यौहारों का मौसम

इस समय हम अपना दिल अपने साथी इंसानों के लिए खोल देते हैं, और उनका साथ पाने के लिए समय निकालते हैं जिनसे हम प्यार करते हैं और जिनके बारे में हम दूसरों से ज़्यादा सोचते हैं, तथा कोशिश करते हैं कि उन्हें दर्शा सकें कि हम उनके बारे में क्या महसूस करते हैं।

नम्रता क्या है?

नम्रता क्या है?

नम्रता का अर्थ है कि हम यह जानें कि हम सब एक बराबर हैं। हम हर किसी में प्रभु को देखें।

हमें अपनी आत्मा को शक्तिशाली करने की क्या ज़रूरत है?

हमें अपनी आत्मा को शक्तिशाली करने की क्या ज़रूरत है?

हमारी आत्मा मन, माया, और भ्रम की दुनिया में खो चुकी है। आत्मा को शक्तिशाली करने का अर्थ है कि हम मन और इंद्रियों को दी हुई ताकत को वापस ले लें, ताकि इनके बजाय हमारी आत्मा हमारे जीवन को नियंत्रित और निर्देशित कर सके।