ध्यानाभ्यास संबंधी सुझाव
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
ध्यानाभ्यास एक बहुत ही सरल प्रक्रिया है, जिसमें हम स्थिर बैठकर अपने अंतर में एकाग्र होते हैं, ताकि अंदरूनी रूहानी ख़ज़ानों का अनुभव कर सकें। एक सवाल जो मुझसे अक्सर पूछा जाता है, वो यह है कि “मैं ध्यानाभ्यास के दौरान विचारों को अपनी एकाग्रता भंग करने से कैसे रोक सकता हूँ?” यह समस्या दुनिया भर के लोगों द्वारा महसूस की जाती है, जब वो ध्यान टिकाने के लिए बैठते हैं।
ऐसा क्यों होता है? हमारा मन बहुत ही चंचल और अस्थिर है, और उसे स्थिर होना या टिक जाना बिल्कुल पसंद नहीं है ताकि आंतरिक नज़ारों का आनंद ले सके। हमारे अंतर में सदा-सदा की शांति और ख़ुशियाँ पाने का प्रवेशद्वार मौजूद है। लेकिन इन ख़ज़ानों तक पहुँचने के लिए हमें ध्यानाभ्यास करने की, मौन अवस्था में बैठने की, और अंतर में एकाग्रता बनाए रखने की, आवश्यकता है।
ध्यानाभ्यास में हमारी मदद करने के लिए तीन सुझाव निम्नलिखित हैं
1) प्राथमिकताएँ तय करें
जब हमें किसी परीक्षा के लिए पढ़ाई करनी होती है, तो हम उसके लिए समय निश्चित करते हैं और पूरी तरह से उसी तरफ़ ध्यान लगाते हैं। इसी प्रकार, जब हम ध्यानाभ्यास के लिए समय निश्चित करते हैं, तो हम उस वक़्त केवल ध्यानाभ्यास ही करते हैं। फिर दिन के बाकी बचे वक़्त में हम अलग-अलग गतिविधियों के लिए समय निश्चित कर सकते हैं। इससे हम ध्यानाभ्यास के लिए निश्चित किए गए समय में केवल ध्यानाभ्यास ही करने के लिए प्रेरित होते हैं।
2) ध्यानाभ्यास के लिए एक स्थान निश्चित करें
रोज़ाना एक ही स्थान पर ध्यानाभ्यास करने की आदत बनाने से, हम जब भी उस जगह पर जाकर बैठते हैं, तो अन्य चीज़ों की ओर से हमारा ध्यान आसानी से हट जाता है। जब हम उस स्थान पर बैठते हैं, तो हमारे अंदर स्वाभाविक रूप से ध्यानाभ्यास करने की इच्छा पैदा होती है।
3) ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने लक्ष्य को पाने के लिए समर्पित रहें
जब हमारे सामने कोई ऐसा लक्ष्य होता है जिसे हम सच्चे दिल से पाना चाहते हैं, तो फिर उसे पाने की कोशिश करने से हमें कोई नहीं रोक सकता। चाहे हम किसी खेल में अव्वल आना चाहते हों, या किसी आर्थिक लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं, या वज़न कम करना चाहते हों, या अपने रिश्तों में सुधार लाना चाहते हों, हमें उसमें सफलता पाने के लिए समय और प्रयास देना पड़ता है।
ऐसा ही ध्यानाभ्यास के साथ भी है। लोग अलग-अलग कारणों से ध्यानाभ्यास करते हैं, चाहे शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक वजहों से, या आध्यात्मिक विकास के लिए, या किसी अन्य कारण से। जब हम उस लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं, तो हम उसे पाने के लिए समय निकालने से पीछे नहीं हटते। इस दृढ़-निश्चय के कारण हम ध्यानाभ्यास के समय बेहतर तरीके से एकाग्र हो पाते हैं, और विचार हमारा ध्यान भंग नहीं कर पाते।
जो लोग साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी में सिखाई जाने वाली, प्रभु की ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की विधि का अभ्यास करते हैं, वो अपनी एकाग्रता को भंग होने से बचाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह से उनका ध्यानाभ्यास अधिक फलदायी सिद्ध होता है।
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हम कौन सी रेस में दौड़ रहे हैं?
क्या आपको ऐसा लगता है कि आपके दिन ऐसे गुज़रते हैं मानो आप एक ट्रैडमिल (व्यायाम की मशीन) पर दौड़ रहे हों और कहीं भी न पहुँच रहे हों? क्या आप दिन के अंत में बहुत अधिक थक जाते हैं, और फिर भी ऐसा महसूस करते हैं कि कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं कर पाये हैं?
सैद्धांतिक को व्यावहारिक में बदलना
हम सभी यह जानते हैं कि जब भी हम इस संसार के किसी भी क्षेत्र का अध्ययन करना चाहते हैं, तो हम एक ऐसे शिक्षक के पास जाते हैं जो उस क्षेत्र में माहिर होता है। अगर हम भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र पढ़ना चाहते हैं, तो हम किसी वरिष्ठ शिक्षक या प्रोफ़ेसर के पास जाते हैं। वो शिक्षक हमें उस विषय का सैद्धांतिक ज्ञान प्रदान करता है। यदि मूल बातें स्पष्ट हैं, तो हम अपना पूरा ज्ञान उन मजबूत बुनियादी बातों पर बना सकते हैं। यही अध्यात्म के लिए भी सच है।
ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप
जिस प्रकार खिलाड़ी अलग-अलग खेलों में वर्ल्ड कप के लिए स्पर्धा करते हैं, उसी प्रकार हम भी ध्यानाभ्यास का वर्ल्ड कप पाने के लिए प्रयास कर सकते हैं। वर्ल्ड कप, ओलम्पिक्स, या एन.बी.ए., एन.एफ़.एल., एन.एच.एल., एम.एल.बी., या फीफा जैसी प्रतियोगिताएँ हमें इस बात पर हैरान होने को मजबूर कर देती हैं कि इंसानी साहस से क्या-क्या संभव हो सकता है।