त्यौहार के उपहार के रूप में दयालुता फैलायें
– संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
12 दिसम्बर 2018
जहाँ लोग त्यौहार के लिए दुकानों में या ऑनलाइन उपहार ख़रीदते हैं, वहीं एक ऐसा उपहार भी है जो मुफ़्त में दिया जा सकता है और जो स्थाई असर भी छोड़ता है। एक अनमोल उपहार जो हम दे सकते हैं, और जिसे पैसे देकर ख़रीदना नहीं पड़ता है, वो है प्यार भरी दयालुता। प्यार भरी दयालुता दुनिया की सबसे ताकतवर शक्तियों में से एक है।

 

दयालुता में इतनी ज़्यादा ताकत है कि वो दिलों को अपनी ओर खींच लेती है। यह दिल को सामने वाले के लिए प्यार से भरपूर कर देती है। अगर हम अपने अंदर दयालुता का विकास कर लेंगे, तो हम देखेंगे कि लोग हमारी तरफ़ खिंचने लगेंगे।

 

प्यार भरी दयालुता का मतलब यह भी है कि हम जानें कि दूसरों से किस तरह से बात करनी है। इसका मतलब है कि हमें न केवल ख़ुद को स्पष्ट तरीके से व्यक्त करना आना चाहिए, बल्कि अपनी बात को ऐसे तरीके से कहना भी आना चाहिए जिससे दोस्ती और सहयोग की भावना बढ़े।

 

ज़रा सोचिए कि एक पानी का गिलास माँगने के कितने सारे तरीके हैं! कोई रौब के साथ बोल सकता है, “मुझे अभी पानी दो।” कोई अकड़ के साथ बोल सकता है, “तुम अपने काम पूरे करो, इससे ज़्यादा ज़रूरी है कि तुम मुझे पानी दो। तो तुम अपने सभी काम छोड़कर पहले मुझे पानी दो।” कोई रौब के साथ बोल सकता है, “मुझे अभी पानी दो।” कोई साधारण तरीके से बोल सकता है, “मुझे पानी दो।” या कोई विनम्र तरीके से बोल सकता है, “क्या आप कृपा करके मेरे लिए पानी ले आयेंगे?” या “कृपया मेरे लिए पानी ले आइए।” या “बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप मेरे लिए पानी ले आयेंगे।”

 

आपको सुनने में कौन सा तरीका बेहतर लग रहा है? बात एक ही कही जा रही है, कि पानी दे दो, लेकिन वो बात कहने का तरीका और आवाज़ पूरी बात के असर को ही बदलकर रख देती है।

 

अगर हम रौब से बात करते हैं, तो उसका दूसरों पर क्या असर होता है? उन्हें लगता है कि हम उन पर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं। अगर हम अकड़ के साथ बात करते हैं, तो सामने वाले को लगता है कि हम उन्हें बराबरी का दर्ज़ा नहीं दे रहे। अगर हम प्यार और नम्रता के साथ बात करते हैं, तो सामने वाले के साथ हमारा रिश्ता और भी अधिक गहरा और मज़बूत हो जाता है।

 

तो यह ज़रूरी है कि हम जानें कि हमें दूसरों के सामने अपनी बात को स्पष्ट रूप से, लेकिन प्यार और नम्रता के साथ, कैसे रखना है। अगर हम टीम लीडर हैं, या किसी विभाग के प्रमुख हैं, तो कोई भी हमारे साथ काम नहीं करना चाहेगा अगर हम उनसे रौब से, या अकड़ से, या गुस्से से बात करेंगे। अपने बराबर के पद वालों के साथ काम करते हुए भी, हमें चाहिए कि हम दीवारें खड़ी करने के बजाय अच्छे रिश्ते और दोस्तियाँ कायम करें। प्यार भरी दयालुता लोगों के बीच खड़ी दीवारों को गिराने में मदद करती है।

 

“जब हम दयालु होते हैं, तो हम ख़ुद को प्रभु के संपर्क में ले आते हैं।

 

जब हम दूसरों के साथ जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, तो हम ख़ुद को प्रभु के साथ जोड़ लेते हैं।”

 

– संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

 

दूसरों के साथ हमारे रिश्ते हमारे जीवन पर बहुत असर डालते हैं। हमारे अपने परिवार के सदस्यों, अपने दोस्तों, और अपनी जान-पहचान के लोगों के साथ रिश्ते होते हैं। हमारा अपने पड़ोसियों के साथ रिश्ता होता है। हमारे परिवार के बाहर भी हमारे बहुत सारे रिश्तेदार होते हैं, जैसे चाचा-चाची, मामा-मामी, चचेरे और ममेरे भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी, पोते-पोतियाँ, और नाती-नातिनें। हमारे अपने आफ़िस में या व्यवसाय की जगह पर रिश्ते बन जाते हैं। घूमने-फिरने जाने पर भी हमारी कई ऐसे लोगों से दोस्ती हो जाती है जो उसी क्षेत्र में रूचि रखते हैं। कई बार सड़क पर चलते हुए, या हाईवे पर ड्राइव करते हुए, या किसी दुकान में, या किसी अन्य सार्वजनिक जगह पर, हमारी बातचीत अजनबियों से भी हो जाती है।

 

आज के आधुनिक समाज में दूसरों के साथ बातचीत किए बिना रहना संभव नहीं है। अगर कोई व्यक्ति घर पर अकेले, सबसे अलग-थलग होकर भी रहने लगे, फिर भी उसे कुछ लोगों से तो मिलना ही पड़ता है, जैसे चिट्ठी या किसी पैकेज की डिलीवरी करने वाला, खाने के सामान का या रेस्तराँ का बिल लेने वाला, पैट्रोल पम्प का कर्मचारी, या बीमार पड़ने पर डॉक्टर। इन मुलाकातों से बचने का कोई तरीका नहीं है।

 

अगर हम अपनी सभी मुलाकातों और बातचीत को सकारात्मक बनाना चाहते हैं, तो हम दयालुता का व्यवहार करके ऐसा कर सकते हैं।

 

त्यौहारों के इस मौसम में, जब हम ऑनलाइन या ईंट-पत्थर से बनी दुकानों में अपने परिवार, दोस्तों, और सहकर्मिंयों के लिए उपहार ख़रीदेंगे, तब हमें अपनी शॉपिंग लिस्ट में एक ऐसे उपहार को भी शामिल करना चाहिए जिसके लिए हमें कोई पैसा ख़र्च नहीं करना पड़ता, लेकिन जो अनमोल है। अपने सभी मिलने-जुलने वालों में दयालुता फैलाना, यही त्यौहारों का सबसे अच्छा उपहार है।

 

 

लेखक के बारे में

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म व ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक व बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सम्मानित किया गया है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक अध्यक्ष होने के नाते, वे संसार भर में यात्राएँ कर लोगों को आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की प्रक्रिया सिखाते हैं, जिससे शांति, ख़ुशी, और आनंद की प्राप्ति होती है।

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें।

 

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अतिरिक्त संदेश

त्यौहारों का मौसम

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इस समय हम अपना दिल अपने साथी इंसानों के लिए खोल देते हैं, और उनका साथ पाने के लिए समय निकालते हैं जिनसे हम प्यार करते हैं और जिनके बारे में हम दूसरों से ज़्यादा सोचते हैं, तथा कोशिश करते हैं कि उन्हें दर्शा सकें कि हम उनके बारे में क्या महसूस करते हैं।

नम्रता क्या है?

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नम्रता का अर्थ है कि हम यह जानें कि हम सब एक बराबर हैं। हम हर किसी में प्रभु को देखें।

हमें अपनी आत्मा को शक्तिशाली करने की क्या ज़रूरत है?

हमें अपनी आत्मा को शक्तिशाली करने की क्या ज़रूरत है?

हमारी आत्मा मन, माया, और भ्रम की दुनिया में खो चुकी है। आत्मा को शक्तिशाली करने का अर्थ है कि हम मन और इंद्रियों को दी हुई ताकत को वापस ले लें, ताकि इनके बजाय हमारी आत्मा हमारे जीवन को नियंत्रित और निर्देशित कर सके।