अंतर में प्रभु का अनुभव करें

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

16 जुलाई 2020

रेगिस्तान की रेत के ज़र्रे-ज़र्रे में प्रभु मौजूद हैं। सृष्टि के कण-कण में प्रभु मौजूद हैं। मछलियों में प्रभु हैं। कीड़े-मकौड़ों में प्रभु हैं। पशु-पक्षियों में प्रभु हैं। प्रत्येक इंसान के अंदर प्रभु हैं।

प्रभु प्रेम हैं। जब हम यह पहचान जाते हैं कि प्रभु हर जगह हैं, तो हम दिव्य प्रेम की ताकत को पहचान जाते हैं। हम प्रभु को लेकर दृष्टिहीन हैं, लेकिन ध्यानाभ्यास हमें वो नज़र देता है जिससे हम प्रभु को देख पाते हैं। प्रभु हर क्षण हमारे चारों ओर मौजूद हैं। प्रभु हमारे अंदर धड़क रहे हैं। प्रभु हमारी शाहे-रग, या गले की नस, से भी ज़्यादा हमारे नज़दीक हैं।

ध्यानाभ्यास हमें यह अनुभव करने में मदद करता है। हो सकता है कि हमें लगता हो हम ध्यानाभ्यास में काफ़ी समय दे रहे हैं और हमें फिर भी प्रभु दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि हम सही तरीके से ध्यानाभ्यास नहीं कर रहे होते हैं। हम सोच रहे होते हैं। हम मूल्यांकन कर रहे होते हैं। हम मन ही मन दूसरों की आलोचना कर रहे होते हैं। हम बैठे-बैठे सोच रहे होते हैं, “अरे, प्रभु आ नहीं रहे, प्रभु आ नहीं रहे।” यह ध्यान टिकाना नहीं है; यह तो सोचना है। अगर हम सच में प्रभु को पाना चाहते हैं, तो हमें अपने विचारों को स्थिर करने की आवश्यकता है। हमें केवल अपने अंतर में देखना है। प्रभु का अनुभव करने के लिए हमें अपने शरीर और मन को स्थिर करना होगा। मूल्यांकन करने, या आलोचना करने, या ज़बरदस्ती कुछ पाने की कोशिश करने से हम उस अनुभव से वंचित रह जायेंगे।

ध्यानाभ्यास के दौरान एक मददगार चीज़ होती है प्रेमपूर्वक बैठना, जैसे हम प्रभु के आने का इंतज़ार कर रहे हों। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा में हमारा रवैया ऐसा ही होना चाहिए। हमारे हृदय में प्रेम होना चाहिए। हमें उम्मीद अवश्य रखनी चाहिए, लेकिन उत्तेजना या जकड़ने की भावना के बिना। हमें प्रेमपूर्वक द्वार पर बैठना चाहिए और प्रभु के आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

समापन की इस वीडियो क्लिप (00.59) में, संत राजिन्दर सिंह जी महाराज समझा रहे हैं कि हम में से हरेक प्रभु का अनुभव कर सकता है जब हम अपने शरीर और मन को स्थिर करते हैं।

 

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लेखक के बारे में

Sant Rajinder Singh Ji sos.org

 

 

 

 

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को अध्यात्म व ध्यानाभ्यास के द्वारा आंतरिक व बाहरी शांति का प्रसार करने के अपने अथक प्रयासों के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से सम्मानित किया गया है। साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के आध्यात्मिक अध्यक्ष होने के नाते, वे संसार भर में यात्राएँ कर लोगों को आंतरिक ज्योति व श्रुति पर ध्यान टिकाने की प्रक्रिया सिखाते हैं, जिससे शांति, ख़ुशी, और आनंद की प्राप्ति होती है।

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यानाभ्यास की अपनी प्रभावशाली और सरल विधि को सत्संगों, सम्मेलनों, आध्यात्मिक कार्यक्रमों, और मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स के द्वारा विश्व भर में लाखों लोगों तक पहुँचाया है। महाराज जी अनेक बैस्टसैलिंग पुस्तकों के लेखक भी हैं, तथा उनके ब्लॉग्स, वीडियोज़, गतिविधियों की सूचनाएँ, और प्रेरणादायी आध्यात्मिक कथन नियमित रूप से साइंस ऑफ़ स्पिरिच्युएलिटी के वेबसाइट पर आते रहते हैं: www.sos.org। अधिक जानकारी के लिए और आगामी सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए यहाँ देखें। Facebook YouTube Instagram पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज को फ़ॉलो करें।

 

 

अतिरिक्त संदेश

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इस समय हम अपना दिल अपने साथी इंसानों के लिए खोल देते हैं, और उनका साथ पाने के लिए समय निकालते हैं जिनसे हम प्यार करते हैं और जिनके बारे में हम दूसरों से ज़्यादा सोचते हैं, तथा कोशिश करते हैं कि उन्हें दर्शा सकें कि हम उनके बारे में क्या महसूस करते हैं।

नम्रता क्या है?

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नम्रता का अर्थ है कि हम यह जानें कि हम सब एक बराबर हैं। हम हर किसी में प्रभु को देखें।

हमें अपनी आत्मा को शक्तिशाली करने की क्या ज़रूरत है?

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हमारी आत्मा मन, माया, और भ्रम की दुनिया में खो चुकी है। आत्मा को शक्तिशाली करने का अर्थ है कि हम मन और इंद्रियों को दी हुई ताकत को वापस ले लें, ताकि इनके बजाय हमारी आत्मा हमारे जीवन को नियंत्रित और निर्देशित कर सके।